Maharashtra Politics: साथ आएंगे राज-उद्धव, 20 साल बाद ठाकरे परिवार के एकजुट होने की क्या है वजह?

Maharashtra Politics - साथ आएंगे राज-उद्धव, 20 साल बाद ठाकरे परिवार के एकजुट होने की क्या है वजह?
| Updated on: 27-Jun-2025 02:20 PM IST

Maharashtra Politics: महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा उलटफेर होता नजर आ रहा है। सालों की दूरी के बाद ठाकरे परिवार के दो अहम चेहरे—उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे—एक साथ आने की तैयारी में हैं। ये संभावित एकजुटता महज पारिवारिक मेल नहीं, बल्कि एक सियासी रणनीति भी मानी जा रही है, जिसका आधार है राज्य में हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाए जाने का विरोध।

हिंदी के विरोध में साझा मंच

शिवसेना (UBT) के नेता संजय राउत ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर एक पोस्ट में इस साझा विरोध की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र में स्कूलों में हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा बनाए जाने के प्रस्ताव का शिवसेना UBT और MNS एक साथ विरोध करेंगे। राउत ने अपने पोस्ट में लिखा, "महाराष्ट्र की पुरानी ग्लोरी वापस लाई जाएगी।" इस संदेश के साथ उन्होंने एक तस्वीर भी साझा की, जिसमें उद्धव और राज ठाकरे एक साथ नजर आ रहे हैं—जो इस संभावित गठबंधन का प्रतीक बन चुकी है।

बाला साहेब की विरासत की ओर इशारा?

इस "पुरानी ग्लोरी" की चर्चा सीधे बाला साहेब ठाकरे की शिवसेना की ओर इशारा करती है, जो मराठी अस्मिता और सांस्कृतिक गर्व की पहचान रही है। माना जा रहा है कि दोनों भाई अब उस विरासत को फिर से संजोने की कोशिश कर रहे हैं, जो 2005 में राज ठाकरे के अलग होने के बाद बिखर गई थी।

बगावत की 20 साल पुरानी कहानी

2005 में राज ठाकरे ने पार्टी उत्तराधिकार विवाद के चलते शिवसेना छोड़ दी थी। उन्हें बाला साहेब का उत्तराधिकारी माना जा रहा था, लेकिन पार्टी की कमान उद्धव ठाकरे को सौंपे जाने पर राज ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) का गठन किया। तब से दोनों भाई अलग-अलग सियासी रास्तों पर थे।

मौजूदा सियासी गणित और कमजोर होती पकड़

अब सवाल यह है—आख़िर क्यों हो रही है ये नजदीकी?

इसका जवाब महाराष्ट्र की मौजूदा राजनीतिक तस्वीर में छिपा है:

उद्धव ठाकरे अपनी पार्टी शिवसेना UBT को कमजोर होते देख रहे हैं। एकनाथ शिंदे न सिर्फ पार्टी का नाम और चुनाव चिन्ह ले गए, बल्कि ज़्यादातर विधायक और सांसद भी साथ ले गए।

राज ठाकरे की MNS की स्थिति और भी खराब हो गई है। पिछली विधानसभा चुनाव में पार्टी खाता तक नहीं खोल पाई।

इस पृष्ठभूमि में, दोनों भाइयों के लिए यह गठबंधन न केवल सांस्कृतिक मुद्दों पर मजबूती देने का मौका है, बल्कि सियासी ज़मीन बचाने की कोशिश भी है।

क्या फिर से होगी ‘एक शिवसेना’?

यह सवाल अब चर्चा में है कि क्या यह साझा विरोध भविष्य में एक राजनीतिक एकता में बदल सकता है? क्या राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे फिर से एक ही मंच पर आकर "एक शिवसेना" की शुरुआत कर सकते हैं?

फिलहाल, हिंदी को लेकर शुरू हुआ विरोध इस एकजुटता का पहला पड़ाव है, लेकिन इसका अगला कदम महाराष्ट्र की सियासत को पूरी तरह हिला सकता है। बाला साहेब की विरासत के नाम पर अगर ठाकरे परिवार फिर से एक होता है, तो महाराष्ट्र की राजनीतिक धारा में बड़ी हलचल मच सकती है।

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