Russian Oil: रूसी तेल पर रिलायंस को मिली अमेरिकी प्रतिबंधों से एक महीने की खास छूट

Russian Oil - रूसी तेल पर रिलायंस को मिली अमेरिकी प्रतिबंधों से एक महीने की खास छूट
| Updated on: 24-Dec-2025 06:15 PM IST
भारत की सबसे बड़ी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) को अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद रूसी तेल की आपूर्ति जारी रखने के लिए एक महीने की विशेष छूट मिली है। यह छूट, जो पहले सार्वजनिक नहीं की गई थी, ने रिलायंस को रूस की। सरकारी तेल कंपनी रोसनेफ्ट से कच्चे तेल की खेपें प्राप्त करने में सक्षम बनाया। यह घटनाक्रम ऐसे समय में आया है जब यूक्रेन युद्ध के बाद से भारत समुद्री मार्ग से रूसी कच्चे तेल का दुनिया। का सबसे बड़ा खरीदार बन गया है, और अमेरिका लगातार भारत पर इन आयातों को कम करने का दबाव बना रहा है। अक्टूबर महीने में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने रूस की प्रमुख ऊर्जा कंपनियों, जिनमें रोसनेफ्ट और लुकोइल शामिल हैं, पर कड़े प्रतिबंध लगाए थे और इन प्रतिबंधों का उद्देश्य रूसी अर्थव्यवस्था पर दबाव डालना था। वैश्विक कंपनियों को इन प्रतिबंधित संस्थाओं के साथ अपने सभी लेनदेन को 21 नवंबर तक धीरे-धीरे बंद करने के लिए एक समय-सीमा दी गई थी। इस कदम का वैश्विक तेल बाजार पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ने की उम्मीद थी, क्योंकि कई कंपनियां रूस से तेल खरीदने से परहेज करने लगी थीं।

रिलायंस को मिली विशेष छूट

इन व्यापक प्रतिबंधों के बावजूद, रिलायंस इंडस्ट्रीज को वॉशिंगटन से एक महीने की खास छूट मिली। इस अस्थायी राहत ने कंपनी को उन पहले से तय सौदों को पूरा करने की अनुमति दी जो प्रतिबंधों के लागू होने से पहले किए गए थे और इस छूट का विवरण पहले सार्वजनिक नहीं किया गया था, जिससे यह मामला और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। यह छूट रिलायंस के लिए एक बड़ी राहत थी, क्योंकि यह उसे अपनी रिफाइनरियों के लिए कच्चे तेल की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने में मदद करती थी, खासकर ऐसे समय में जब वैश्विक ऊर्जा बाजार में अनिश्चितता बनी हुई है।

रोसनेफ्ट के साथ दीर्घकालिक करार

रिलायंस इंडस्ट्रीज का रोसनेफ्ट के साथ एक महत्वपूर्ण और दीर्घकालिक समझौता है। इस करार के तहत, रिलायंस प्रतिदिन लगभग 5 लाख बैरल रूसी कच्चा तेल खरीदती है और यह भारी मात्रा में कच्चा तेल गुजरात में स्थित रिलायंस के विशाल रिफाइनिंग कॉम्प्लेक्स में प्रोसेस किया जाता है। यह कॉम्प्लेक्स 14 लाख बैरल प्रति दिन की क्षमता के साथ दुनिया का सबसे बड़ा रिफाइनरी कॉम्प्लेक्स माना जाता है। रोसनेफ्ट के साथ यह दीर्घकालिक संबंध रिलायंस की ऊर्जा सुरक्षा और परिचालन दक्षता के लिए महत्वपूर्ण है।

यूरोपीय संघ के नए नियम और चुनौतियां

इसी बीच, यूरोपीय संघ (EU) ने एक नया नियम घोषित किया है जो भारतीय रिफाइनरियों के लिए नई चुनौतियां खड़ी कर सकता है। इस नियम के अनुसार, 21 जनवरी के बाद यूरोपीय संघ उस ईंधन का आयात नहीं करेगा जो ऐसी रिफाइनरियों। में तैयार हुआ हो, जहां बिल ऑफ लोडिंग की तारीख से 60 दिन पहले रूसी तेल प्रोसेस किया गया हो। यह नियम भारतीय रिफाइनरियों के लिए यूरोप को ईंधन निर्यात करना और भी जटिल बना सकता है, क्योंकि उन्हें अपने कच्चे। तेल के स्रोतों और प्रसंस्करण समय-सीमा को सावधानीपूर्वक प्रबंधित करना होगा ताकि वे यूरोपीय बाजार में अपनी पहुंच बनाए रख सकें।

शिपमेंट और रिलायंस का स्पष्टीकरण

ट्रेड डेटा एजेंसी क्लर (Kpler) के आंकड़ों के अनुसार, 22 नवंबर के बाद से रिलायंस को रोसनेफ्ट से लगभग 15 खेपें मिल चुकी हैं और इन आंकड़ों के सामने आने के बाद, रिलायंस इंडस्ट्रीज ने एक सफाई भरा बयान जारी किया। कंपनी ने स्पष्ट किया कि ये सभी खेपें पहले से हुए सौदों का हिस्सा थीं और इन्हें अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के नियमों के तहत पूरा किया जा रहा है। रिलायंस ने यह भी बताया कि रोसनेफ्ट के साथ आखिरी कार्गो 12 नवंबर को लोड किया। गया था, जो यह दर्शाता है कि कंपनी प्रतिबंधों के नियमों का पालन कर रही है।

भारत पर बढ़ता अमेरिकी दबाव

यूक्रेन युद्ध के बाद से, भारत समुद्री मार्ग से आने वाले रूसी कच्चे तेल का दुनिया का सबसे बड़ा खरीदार बन गया है, जिससे रूस को अपनी अर्थव्यवस्था को बनाए रखने में मदद मिली है और हालांकि, संयुक्त राज्य अमेरिका लगातार भारत पर इन आयातों को कम करने का दबाव बना रहा है। अमेरिका का मानना है कि रूसी तेल की खरीद से रूस को युद्ध जारी रखने के लिए वित्तीय सहायता मिलती है और इस दबाव के परिणामस्वरूप, दिसंबर में भारत का रूसी तेल आयात घटकर 12 से 15 लाख बैरल प्रति दिन रहने का अनुमान है, जो नवंबर के मुकाबले कम है। यह दर्शाता है कि भारत अमेरिकी चिंताओं को ध्यान में रखते हुए अपने आयात पैटर्न को समायोजित करने का प्रयास कर रहा है, जबकि अपनी ऊर्जा जरूरतों को भी पूरा कर रहा है।

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