India Fiscal Deficit: सरकार का बढ़ता राजकोषीय घाटा: आधे साल में ही 36.5% के पार, अर्थव्यवस्था पर दबाव
India Fiscal Deficit - सरकार का बढ़ता राजकोषीय घाटा: आधे साल में ही 36.5% के पार, अर्थव्यवस्था पर दबाव
वित्त वर्ष 2025-26 के पहले छह महीनों में केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा चिंताजनक स्तर पर पहुंच गया है, जो वार्षिक लक्ष्य का 36. 5% पार कर चुका है। यह आंकड़ा देश की आर्थिक स्थिरता के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती पेश करता है, खासकर जब सरकार विकास परियोजनाओं, बुनियादी ढांचे और सामाजिक कल्याण योजनाओं पर लगातार भारी खर्च कर रही है। पिछले वित्त वर्ष 2024-25 की इसी अवधि में यह घाटा केवल 29% था, जो मौजूदा स्थिति की गंभीरता को दर्शाता है। यह स्थिति ऐसे समय में आई है जब कर राजस्व और अन्य आय में अपेक्षित। वृद्धि नहीं हो पाई है, जिससे सरकार के वित्तीय स्वास्थ्य पर सीधा असर पड़ रहा है।
राजकोषीय घाटे के नवीनतम आंकड़े
कंट्रोलर जनरल ऑफ अकाउंट्स (CGA) द्वारा शुक्रवार को जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल से सितंबर 2025 के बीच केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा 5,73,123 करोड़ रुपये दर्ज किया गया है। यह आंकड़ा पूरे वित्त वर्ष के लिए अनुमानित राजकोषीय घाटे, जो कि 15 और 69 लाख करोड़ रुपये (सकल घरेलू उत्पाद का 4. 4%) है, का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसका सीधा अर्थ है कि वित्त वर्ष के आधे समय में ही सरकार ने अपने पूरे साल के लक्ष्य का एक-तिहाई से अधिक हिस्सा खर्च कर लिया है, जो वित्तीय प्रबंधन के लिए एक बड़ी चुनौती है। इन आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि सरकार को अपने खर्चों। और आय के बीच संतुलन बनाने के लिए तत्काल कदम उठाने होंगे।राजस्व संग्रह की स्थिति
CGA की रिपोर्ट के अनुसार, सितंबर तक सरकार को कुल 16 और 95 लाख करोड़ रुपये की प्राप्ति हुई है। यह राशि सालाना बजट अनुमान का 49. 6% है। इस कुल प्राप्ति में 12. 29 लाख करोड़ रुपये टैक्स रेवेन्यू से, 4. 6 लाख करोड़ रुपये नॉन-टैक्स रेवेन्यू से और 34,770 करोड़ रुपये नॉन-डेब्ट कैपिटल रिसिप्ट के रूप में प्राप्त हुए हैं। ये आंकड़े दर्शाते हैं कि राजस्व संग्रह की गति अपेक्षा से धीमी रही है, खासकर जब इसे वार्षिक लक्ष्य के सापेक्ष देखा जाता है। टैक्स रेवेन्यू, जो सरकार की आय का मुख्य स्रोत है, में। अपेक्षित वृद्धि न होना घाटे के बढ़ने का एक प्रमुख कारण है।घाटे के बढ़ने के प्रमुख कारण
विशेषज्ञों का मानना है कि राजकोषीय घाटे में वृद्धि के पीछे दो मुख्य कारण हैं: राजस्व संग्रह में सुस्ती और पूंजीगत व्यय में तेजी। सरकार ने इस वित्त वर्ष में कई बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स, विभिन्न सब्सिडी और ग्रामीण योजनाओं पर भारी निवेश किया है, जिससे खर्चों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। वहीं, कर वसूली में सुधार की गति धीमी रही है, विशेष रूप से कॉरपोरेट टैक्स और कस्टम ड्यूटी से प्राप्त होने वाली आय में। यह दोहरी मार सरकार के वित्तीय संतुलन को बिगाड़ रही है और उसे अपने खर्चों पर लगाम लगाने या राजस्व बढ़ाने के लिए नए तरीके खोजने पर मजबूर कर रही है।सरकार की उम्मीदें और चुनौतियां
वित्त मंत्रालय ने इस स्थिति पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि उन्हें दूसरी छमाही में टैक्स कलेक्शन और डिविडेंड इनकम में सुधार की उम्मीद है और मंत्रालय का मानना है कि इन सुधारों से घाटे को नियंत्रित रखा जा सकेगा और पूरे वित्त वर्ष के लिए राजकोषीय घाटे को 4. 4% के भीतर रखने का लक्ष्य प्राप्त किया जा सकेगा। हालांकि, यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य होगा, क्योंकि इसके लिए न केवल राजस्व में वृद्धि की आवश्यकता होगी, बल्कि खर्चों पर भी प्रभावी नियंत्रण रखना होगा और सरकार को अपनी वित्तीय नीतियों की समीक्षा करनी होगी ताकि वह अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सके।आर्थिक विशेषज्ञों की चेतावनी
आर्थिक जानकार इस बढ़ती हुई स्थिति पर चिंता व्यक्त कर रहे हैं और वे चेतावनी दे रहे हैं कि यदि सरकार अपने खर्चों पर प्रभावी ढंग से लगाम नहीं लगाती है, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। इसका सीधा असर महंगाई और ब्याज दरों पर दबाव के रूप में देखा जा सकता है। बढ़ती महंगाई आम आदमी की क्रय शक्ति को कम करती है, जबकि उच्च ब्याज दरें निवेश और आर्थिक विकास को धीमा कर सकती हैं। ऐसे में, सरकार को न केवल अपने वित्तीय लक्ष्यों को पूरा करने के लिए, बल्कि व्यापक आर्थिक स्थिरता बनाए रखने के लिए भी सतर्क रहना होगा। आने वाले महीनों में सरकार के वित्तीय फैसलों पर सबकी नजर रहेगी।