आमतौर पर यह धारणा होती है कि उद्योगपतियों के मुकाबले छोटे दुकानदारों को दिए गए कर्ज पर जोखिम ज्यादा रहता है। लेकिन, वास्तव में ऐसा नहीं है। एसबीआई रिपोर्ट के मुताबिक, रेहड़ी-पटरी वाले छोटे दुकानदार कर्ज चुकाने के मामले में ज्यादा ईमानदार होते हैं।देश के सबसे बड़े बैंक ने रेहड़ी-पटरी वालों को जितना कर्ज दिया, उनमें एनपीए की हिस्सेदारी 20 फीसदी से भी कम रही। इससे बैंक की वित्तीय सेहत पर भी ज्यादा असर नहीं हुआ क्योंकि इस कर्ज पर सरकार की गारंटी थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि पीएम स्वनिधि योजना के तहत दूसरी बार कर्ज लेने वाले रेहड़ी-पटरी वालों ने समय पर बकाया चुकाया। इसमें सिर्फ 1.7 फीसदी कर्ज ही एनपीए बना। 90 दिन में भुगतान नहीं करने पर कर्ज एनपीए बन जाता है।
- स्वनिधि योजना के तहत दूसरी बार कर्ज लेने वाले छोटे दुकानदारों ने समय पर चुकाया बकाया
- सरकार की गारंटी होने से एनपीए के कारण बैंक की वित्तीय सेहत पर असर नहीं
बड़ी संख्या में लोग बैंकिंग प्रणाली से जुड़ेखारा ने कहा, स्वनिधि योजना से हमें बड़ी संख्या में लोगों के ब्यूरो रिकॉर्ड व क्रेडिट हिस्ट्री की जानकारी मिली। इनमें कई ऐसे लोग हैं, जिन्हें पहली बार बैंकिंग प्रणाली के जरिये कर्ज लिया है। लोगों को अब समय पर कर्ज चुकाने की अहमियत समझ में आ रही है।
172 करोड़ की मामूली चपत पर फायदे अनेकएसबीआई चेयरमैन दिनेश खारा ने बताया कि योजना के तहत बैंक ने 955 करोड़ रुपये के कर्ज बांटे थे। इनमें सिर्फ 18 फीसदी यानी 172 करोड़ का कर्ज ही एनपीए बना। क्रेडिट गारंटी ट्रस्ट फॉर माइक्रो एंड स्मॉल इंटरप्राइजेज (सीजीटीएमएसई) के तहत गारंटी की वजह से 78 करोड़ के कर्ज की वसूली कर ली गई है। बैंक को करीब 94 करोड़ रुपये की चपत लगी, लेकिन कई फायदे भी हुए। इससे कहीं ज्यादा नुकसान तो बैंकों को कॉरपोरेट क्षेत्र के एक ही एनपीए से होता है।
पिछले माह बंटे 3,170 करोड़ रुपये के कर्जकेंद्र की इस योजना के तहत पिछले महीने रेहड़ी-पटरी वालों को 3,170 करोड़ का कर्ज दिया गया। एसबीआई की हिस्सेदारी एक चौथाई से ज्यादा रही। योजना के तहत 10 फीसदी के बजाय 7 फीसदी ब्याज दर पर कर्ज मिलता है, जिस पर सरकार की गारंटी रहती है। योजना के तहत उन रेहड़ी-पटरी वालों को कर्ज मिलता है, जिनके रोजगार महामारी के दौरान चले गए। सरकार ऐसे लोगों को 10,000 रुपये तक का कर्ज देती है।