इतिहास का पाठ्यक्रम: 'हल्दी लगी महिलाएं युद्ध में लड़ीं, इसलिए उस जगह को हल्दीघाटी कहते हैं' मेवाड़ का इतिहास कलंकित करने की कोशिश

इतिहास का पाठ्यक्रम - 'हल्दी लगी महिलाएं युद्ध में लड़ीं, इसलिए उस जगह को हल्दीघाटी कहते हैं' मेवाड़ का इतिहास कलंकित करने की कोशिश
| Updated on: 22-Jun-2020 02:05 PM IST
Udaipur | यह है अपना राजपूताना, नाज जिसे तलवारों पे, इसने अपना जीवन काटा बरछी तीर कटारों पे, ये प्रताप का वतन पला है आजादी के नारों पे... जैसी पंक्तियां सुन राजस्थान का गौरवशाली इतिहास (History of Rajasthan) बरबस हमें अपनी ओर खींच लेता है। परन्तु राजस्थान में मेवाड़ (History of Mewar) के उज्ज्वल इतिहास के साथ छेड़छाड़ बंद नहीं हो रही है। ऐरे—गैरे कलमकारों के आधारहीन तथ्यों वाली भांडवृत्ति को राजस्थान के माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (Rajasthan Secondary Education Board) की पु​स्तकों में भी जगह दे दी गई है। फिल्मी गॉसिप (Gossip History in Rajasthan) की तरह लिखे गए इतिहास को सरकारी पाठ्यक्रमों (Govt. School Education Syllabus) में जगह मिलना मेवाड़ के उजले ​इतिहास के साथ सरासर अन्याय है और इस पर सरकारी जिम्मेदार मौन है। मेवाड़ के पूर्व राज परिवार (Royal Family of Mewar) के वशंजों ने राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की किताबों में ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ पर कड़ी आपत्ति जताई है। विश्वराज सिंह मेवाड़ (Vishwaraj Singh Mewar) ने कहा कि स्कूली किताबों में इतिहास को बेतुके ढंग से पढ़ाना पाठ्यक्रम निर्धारकों की भूमिका में बैठे लोगों की अज्ञानता और कमजोर मानसिकता का प्रदर्शन है।

पाठ्यक्रम में उल्लेख किया गया हैं हल्दी चढ़ी कई नव विवाहिताएं पुरुष वेश में हल्दीघाटी युद्ध (Battle of Haldighati) में लड़ मरीं। यही नहीं, हकीम खां सूर (Hakim Khan Suri) के सामने मुगल सेना का नेतृत्वकर्ता जगन्नाथ कच्छवाहा (Jagannath Kacchhawa) काे बताया है, जबकि इतिहासकार कहते हैं कि मुगल सेना का नेतृत्व मानसिंह (Man Singh of Jaipur) ने किया था। कच्छवाहा 1576 में लड़े इस युद्ध के आठ साल बाद पहली बार मेवाड़ आया था।

राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (RBSE) इस बार 10वीं कक्षा में जो नई किताब ‘राजस्थान का इतिहास और संस्कृति’ (Rajasthan History and Culture) पढ़ाएगा। इस किताब में महाराणा उदयसिंह (Udai singh of Mewar) को बनवीर (Banveer of Mewar) का हत्यारा बताया गया है। जबकि बनवीर की मौत महाराष्ट्र में स्वाभाविक तरीके से होने का उल्लेख है। इसी ई-बुक के अध्याय-1 में राजस्थान के प्रमुख राजपूत वंशों का परिचय है। पेज नंबर 11 पर छापा है- 1537 ई. में उदय सिंह का राज्याभिषेक हुआ। 1540 ई. में मावली के युद्ध में उदय सिंह ने मालदेव के सहयोग से बनवीर की हत्या कर मेवाड़ की पैतृक सत्ता प्राप्त की थी। 1559 में उदयपुर (Udaipur) में नगर बसाकर राजधानी बनाया। यही नहीं, हल्दीघाटी के नामकरण के भी अजीब तथ्य और तर्क हैं। डॉ. महेंद्र भाणावत नामक लेखक की किताब ‘अजूबा भारत का’ के हवाले से लिखा है कि हल्दीघाटी नाम हल्दिया रंग की मिट्टी के कारण नहीं पड़ा। ऐसी मिट्टी यहां है भी कहां। लाल, पीली और काली मिट्टी है। हल्दी चढ़ी कई नव विवाहिताएं पुरुष वेश में इस युद्ध में लड़ मरीं। यही नहीं, हकीम खां सूर के सामने मुगल सेना का नेतृत्वकर्ता जगन्नाथ कच्छवाहा काे बताया है, जबकि इतिहासकार कहते हैं कि मुगल सेना का नेतृत्व मानसिंह ने किया था। कच्छवाहा तो 1576 में लड़े इस युद्ध के आठ साल बाद पहली बार मेवाड़ आया था।

1540 में हुआ उदयसिंह का राज्याभिषेक

इतिहासकार प्रो. के.एस. गुप्ता बताते हैं कि बनवीर की मृत्यु का कोई प्रमाणित कारण नहीं मिलता। ‘महाराणा उदयसिंह’ पुस्तक के लेखक नारायण लाल शर्मा कहते हैं कि मावली युद्ध में बनवीर था ही नहीं। उदयसिंह के किले में प्रवेश करने पर दुर्गपाल चील मेहता ने उसे भगा दिया था। एमजी कॉलेज में इतिहास के प्रोफेसर और महाराणा प्रताप पर शोध कर चुके डॉ. चंद्रशेखर शर्मा के मुताबिक बनवीर की मौत मेवाड़ में हुई ही नहीं थी। वह भागकर महाराष्ट्र चला गया, जहां स्वाभाविक मृत्यु हुई। मावली युद्ध में बनवीर की सेना को हराने के बाद उदयसिंह ने सामंतों के साथ चित्तौड़ किले में प्रवेश किया था। बनवीर खिड़की से भाग गया। उदयसिंह का राज्याभिषेक 1537 नहीं, 1540 ई. में हुआ था। युद्ध के पहले से ही अरावली के इस दर्रे का नाम हल्दीघाटी था, क्योंकि यहां पर हल्दू के पेड़ बहुतायत में थे। हल्दू से गिरे फलों के कारण मिट्टी का रंग पीला हो गया था। इसलिए हल्दीघाटी नाम प्राचीन काल से ही प्रचलित रहा।

महाराणा प्रताप को अधीर बता डाला

बोर्ड की किताबें यहीं तक नहीं रुकती। कक्षा 12 भारत का इतिहास में ‘मुस्लिम आक्रमण : उद्देश्य और प्रभाव’ में 101वें पन्ने पर हल्दीघाटी युद्ध मे प्रताप की हार बताते हुए कारणों का उल्लेख है। इसमें प्रताप की रणनीति में पारम्परिक युद्ध तकनीक को पहला कारण बताते हुए 4 मुख्य कारण बताए गए हैं। लिखा है कि सेनानायक में प्रतिकूल परिस्थितियों में जिस धैर्य, संयम और योजना की आवश्यकता होनी चाहिए, प्रताप में उसका अभाव था। यही नहीं कक्षा 10 की सामाजिक विज्ञान की किताब में हल्दीघाटी युद्ध से जुड़े तथ्य और समीक्षा हटाना भी सवालों में है। बता दें कि आरपीएससी के पूर्व चेयरमैन प्रो. बी.एम. शर्मा कमेटी ने पाठ्यक्रम में बदलाव और नई पुस्तक जोड़ने पर काम किया है। 10वीं सामाजिक विज्ञान और 12वीं इतिहास में समीक्षा भी की है। उन्हीं के संयोजन में नई किताब भी लिखी गई है। 

इस मुद्दे पर बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. डीपी जारोली का कहना है कि यह संशोधन समिति मेरे पदभार संभालने से पहले से ही काम कर रही थी। वे करते हैं कि मैं खुद मेवाड़ से हूं। बचपन से मेवाड़ के शौर्य और वीरता की गाथाएं पढ़ी हैं। फिलहाल बोर्ड परीक्षा में व्यस्त हूं। तथ्यों की फिर से समीक्षा करके गलतियों को सुधारा जाएगा।

इतिहास की पुस्तक में पाठ्यक्रम को तोड़ मरोड़कर पेश करने को गलत बताते संयोजक केएस गुप्ता रोष प्रकट करते हैं और कहते हैं कि वर्तमान सरकार के इन कृत्यों की भर्त्सना करता हूं। किताब को अगर इस ढंग से पेश किया गया है तो उनका नाम संयोजक के बतौर हटा दिया जाना चाहिए। 

मेवाड़ पूर्व राजपरिवार परिवार ने जताई आपत्ति

मेवाड़ के पूर्व राज परिवार के वशंजों ने राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की किताबों में ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ पर कड़ी आपत्ति जताई है। विश्वराज सिंह मेवाड़ ने कहा कि स्कूली किताबों में इतिहास को बेतुके ढंग से पढ़ाना पाठ्यक्रम निर्धारकों की भूमिका में बैठे लोगों की अज्ञानता और कमजोर मानसिकता का प्रदर्शन है। स्वार्थ के लिए इतिहास को विकृत करने वालों को इतिहास माफ नहीं करेगा। लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ का कहना है कि स्वतंत्रता और स्वाभिमान के प्रतीक महाराणा प्रताप ने सबको एकसूत्र में बांधा था। महाराणा उदयसिंह ने भी मेवाड़ को सशक्त रखने के साथ नई दिशा दी थी। पाठ्यक्रम में सही जानकारियां नहीं दी गईं तो बच्चे अपने गौरवशाली इतिहास काे कैसे जान पाएंगे।

इतिहासकार बोले- पाठ्यक्रम में हल्दीघाटी के नामकरण का तर्क कोरी कल्पना

‘महाराणा प्रताप में धैर्य, संयम और योग्यता का अभाव था...’, ऐसी तथ्यहीन जानकारी पढ़ाने को लेकर इतिहास पर कई पुस्तकें लिख चुके डॉ. मोहनलाल गुप्ता कहते हैं यह बच्चों को पढ़ाना शर्मनाक है। यह देश के गौरवपूर्ण इतिहास को विकृत करने का प्रयास है। हल्दीघाटी से लेकर दिवेर के युद्ध तक और उससे भी आगे महाराणा प्रताप ने पूरे जीवन धीरज, संयम और योग्यता का परिचय दिया था। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में इतिहास के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. बीएल भादानी भी हल्दीघाटी के नामकरण के तर्क को काल्पनिक और हास्यास्पद बताया। उन्होंने कहा कि बोर्ड ने एक साहित्यकार का हवाला दिया है, लेकिन साहित्यकार तो कल्पना का अधिकारी होता है, इतिहास का नहीं। इतिहासकार राजेंद्रनाथ पुरोहित का कहना है कि निजामुद्दीन अहमद, बांकीदास और कर्नल जेम्स टॉड ने भी हल्दीघाटी नाम का कारण पीली मिट्टी वाली पहाड़ी को ही बताया है। प्रताप पर शोध कर चुके प्रो. चंद्रशेखर शर्मा हल्दू के वृक्ष बहुतायत में होने के कारण हल्दीघाटी नाम पड़ना बता चुके है। हल्दीघाटी युद्ध में एक भी महिला के युद्ध करने का कोई प्रमाण नहीं मिलता। यदि महाराणा प्रताप की पत्नी लड़ी भी होतीं तो फारसी स्रोतों में प्रमुखता से जिक्र जरूर होता।

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