Congress News: 2024 के लोकसभा चुनावों में मिली उल्लेखनीय सफलता के बाद कांग्रेस को राजनीतिक संजीवनी अवश्य मिली थी, लेकिन हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली जैसे प्रमुख राज्यों में निराशाजनक प्रदर्शन ने उस ऊर्जा को मंद कर दिया। ऐसे में पार्टी के लिए यह ज़रूरी हो गया है कि वह फिर से आत्ममंथन करे, अपनी रणनीति दुरुस्त करे और संगठन को पुनर्गठित कर बीजेपी से सीधी टक्कर देने की तैयारी में जुट जाए। इसी कड़ी में कांग्रेस का 86वां पूर्ण अधिवेशन गुजरात के अहमदाबाद में आयोजित किया जा रहा है, जो पार्टी के भविष्य की दिशा और दशा तय करने वाला एक महत्वपूर्ण पड़ाव बन सकता है।
1961 में भावनगर में हुए अधिवेशन के बाद कांग्रेस ने पहली बार गुजरात में अपना पूर्ण अधिवेशन आयोजित करने का निर्णय लिया है। यह वही गुजरात है, जो महात्मा गांधी और सरदार वल्लभभाई पटेल की जन्मभूमि है, और आज की बीजेपी की सबसे मजबूत राजनीतिक प्रयोगशाला भी। ऐसे में कांग्रेस द्वारा गुजरात को चुना जाना एक प्रतीकात्मक कदम भी है—एक संदेश कि पार्टी अपनी जड़ों की ओर लौटकर फिर से सशक्त होने की कोशिश में जुटी है।
कांग्रेस नेतृत्व पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि साल 2025 को संगठनात्मक वर्ष के रूप में देखा जा रहा है। राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे ने यह संकेत दिए हैं कि अब केवल वादों से काम नहीं चलेगा, ज़मीनी स्तर पर संगठन को पुनर्गठित करना ही सफलता की कुंजी बनेगा। बिहार में हालिया बदलाव इसी दिशा में पहला कदम माना जा रहा है। अधिवेशन में जिला अध्यक्षों को अधिक अधिकार देने और जवाबदेही तय करने जैसे अहम फैसलों की उम्मीद है, जिससे संगठन की नींव और मजबूत हो सके।
‘न्यायपथ: संकल्प, समर्पण, संघर्ष’ टैगलाइन के साथ आयोजित इस अधिवेशन में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता देश के मौजूदा सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य पर चिंतन करेंगे। वर्किंग कमेटी की बैठक से लेकर राज्य स्तर के नेताओं के साथ चर्चा के माध्यम से पार्टी यह तय करने की कोशिश करेगी कि आगे किन मुद्दों पर सरकार को घेरा जाए, और जनता से किस प्रकार संवाद स्थापित किया जाए।
कांग्रेस इस अधिवेशन में सामाजिक न्याय को अपने सियासी एजेंडे का केंद्र बिंदु बना रही है। जातिगत जनगणना, आरक्षण की सीमा को 50% से अधिक करने और निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू करने जैसे मुद्दे उसके प्रमुख घोषणापत्र में शामिल हो सकते हैं। दलित, ओबीसी, आदिवासी और अल्पसंख्यक वर्गों को फिर से अपने पाले में लाने की रणनीति के तहत कांग्रेस अपने परंपरागत वोटबैंक को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रही है।
कांग्रेस इस अधिवेशन में केवल वैचारिक चिंतन तक सीमित नहीं रहना चाहती, बल्कि ठोस रणनीतिक निर्णय भी लेने का मन बना चुकी है। आगामी बिहार, बंगाल, असम, केरल और तमिलनाडु विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र राज्यवार रणनीति की रूपरेखा तैयार की जाएगी। इन चुनावों में पार्टी की भूमिका और गठबंधन रणनीति स्पष्ट की जा सकती है।
पार्टी नेतृत्व अब यह समझ चुका है कि बीजेपी से टक्कर सिर्फ आलोचना से नहीं, बल्कि जनसरोकार से जुड़े मुद्दों पर संघर्ष करके ही दी जा सकती है। राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे की जोड़ी पार्टी को एक ऐसा रास्ता दिखाने की कोशिश में है, जिसमें वैचारिक मजबूती के साथ-साथ संगठनात्मक ढांचा भी दुरुस्त हो। इस अधिवेशन में कांग्रेस यह तय कर सकती है कि बीजेपी के हर कदम का विरोध करने के बजाय, उन मुद्दों को चुनकर लड़ाई लड़ी जाए जो जनता की ज़िंदगी से सीधे तौर पर जुड़े हों।
गुजरात की धरती से कांग्रेस ने अपने पुनर्जागरण का बिगुल फूंक दिया है। अब सवाल यह है कि क्या यह अधिवेशन पार्टी को वह दिशा दे पाएगा, जो उसे राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी के विकल्प के रूप में खड़ा कर सके? संगठनात्मक मजबूती, सामाजिक न्याय, और जनहित के मुद्दों को केंद्र में रखकर कांग्रेस जिस रूपरेखा की ओर बढ़ रही है, वह निश्चित तौर पर पार्टी के लिए एक नई शुरुआत हो सकती है।
अहमदाबाद अधिवेशन कांग्रेस के लिए सिर्फ एक बैठक नहीं, बल्कि आत्मपुनरीक्षण, आत्मचिंतन और पुनर्निर्माण का अवसर है। अगर पार्टी इस अवसर को गंभीरता से लेती है और लिए गए निर्णयों को ज़मीन पर उतारने में सफल होती है, तो वह आने वाले वर्षों में भारतीय राजनीति में एक बार फिर निर्णायक भूमिका निभा सकती है।