सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर (सीआरईए) की मासिक निगरानी रिपोर्ट के अनुसार, अक्टूबर में भारत रूसी जीवाश्म ईंधन का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार बना रहा। इस अवधि में भारत ने कुल 3 और 1 अरब यूरो का रूसी ईंधन आयात किया, जिसमें से 81 प्रतिशत यानी 2. 5 अरब यूरो कच्चे तेल की खरीद पर खर्च किए गए। यह आंकड़ा सितंबर के समान ही रहा, जब भारत ने रूसी कच्चे तेल पर 2. 5 अरब यूरो खर्च किए थे। चीन के बाद भारत रूसी ऊर्जा का सबसे बड़ा उपभोक्ता बना हुआ है, जो वैश्विक ऊर्जा बाजारों में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है।
अक्टूबर में रूसी ईंधन आयात का विस्तृत विश्लेषण
अक्टूबर में भारत की कुल रूसी ईंधन खरीद में कच्चे तेल का योगदान सबसे अधिक रहा, जो 2. 5 अरब यूरो था। इसके बाद कोयले का योगदान 11 प्रतिशत (35. 1 करोड़ यूरो) और तेल उत्पादों का सात प्रतिशत (22. 2 करोड़ यूरो) रहा और सितंबर में, भारत ने कुल 3. 6 अरब यूरो खर्च किए थे, जिसमें कच्चे तेल पर 2. 5 अरब यूरो, कोयले पर 45 और 2 करोड़ यूरो और तेल उत्पादों पर 34. 4 करोड़ यूरो शामिल थे। इन आंकड़ों से पता चलता है कि कच्चे तेल पर खर्च स्थिर रहा,। जबकि कोयले और तेल उत्पादों की खरीद में अक्टूबर में कुछ कमी आई।
22 अक्टूबर को, अमेरिका ने यूक्रेन युद्ध के वित्तपोषण के लिए क्रेमलिन के संसाधनों को कम करने के उद्देश्य से रूस की दो सबसे बड़ी तेल उत्पादक कंपनियों, रोसनेफ्ट और लुकऑयल पर प्रतिबंध लगा दिए थे। इन प्रतिबंधों के तत्काल बाद, रिलायंस इंडस्ट्रीज, एचपीसीएल-मित्तल एनर्जी लिमिटेड और मैंगलोर रिफाइनरी एंड पेट्रोकेमिकल्स लिमिटेड जैसी कुछ प्रमुख भारतीय कंपनियों ने फिलहाल रूसी तेल का आयात रोक दिया है। अक्टूबर में रूस ने कुल छह करोड़ बैरल कच्चा तेल भेजा था, जिसमें रोसनेफ्ट और लुकऑयल का कुल मिलाकर 4. 5 करोड़ बैरल का महत्वपूर्ण योगदान था। इन प्रतिबंधों के बावजूद, भारत का कुल रूसी कच्चे तेल। का आयात बढ़ा, जो बाजार की जटिल गतिशीलता को दर्शाता है।
रूसी तेल पर भारत की बढ़ती निर्भरता
पारंपरिक रूप से मध्य पूर्व के तेल पर निर्भर रहने वाला भारत, फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद से रूस से अपने आयात में उल्लेखनीय वृद्धि कर रहा है। पश्चिमी प्रतिबंधों और यूरोपीय मांग में कमी के कारण रूसी तेल भारी छूट पर उपलब्ध हो गया, जिससे भारत के लिए यह एक आकर्षक विकल्प बन गया। परिणामस्वरूप, भारत का रूसी कच्चे तेल का आयात थोड़े ही समय में उसके कुल कच्चे तेल आयात के एक प्रतिशत से बढ़कर लगभग 40 प्रतिशत हो गया। यह बदलाव भारत की ऊर्जा सुरक्षा रणनीति और वैश्विक भू-राजनीतिक परिवर्तनों के प्रति उसकी प्रतिक्रिया को दर्शाता है।
माह-दर-माह आयात में वृद्धि और रिफाइनरी गतिविधि
सीआरईए के अनुसार, अक्टूबर में भारत के रूसी कच्चे तेल के आयात में माह-दर-माह आधार पर 11 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। इस वृद्धि में निजी रिफाइनरियों का योगदान भारत के कुल आयात का दो-तिहाई से अधिक रहा। वहीं, सरकारी स्वामित्व वाली रिफाइनरियों ने अक्टूबर में माह-दर-माह आधार। पर अपने रूसी आयात की मात्रा लगभग दोगुनी कर दी। यह दर्शाता है कि भारतीय रिफाइनरियां, चाहे वे निजी हों या सरकारी, रूसी तेल के आकर्षक प्रस्तावों का लाभ उठा रही हैं।
वडिनार रिफाइनरी की विशेष भूमिका
एक उल्लेखनीय घटनाक्रम में, रोसनेफ्ट के स्वामित्व वाली वाडिनार रिफाइनरी (गुजरात में), जिस पर अब यूरोपीय संघ और ब्रिटेन ने प्रतिबंध लगा दिया है, ने अक्टूबर में अपना उत्पादन 90 प्रतिशत तक बढ़ा दिया। जुलाई में यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों के बाद से, यह रिफाइनरी केवल रूस से ही कच्चा तेल आयात कर रही है। अक्टूबर में, रूस से उनके आयात में मासिक आधार पर 32 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई, जो पूर्ण पैमाने पर आक्रमण के बाद से उनकी उच्चतम मात्रा थी। हालांकि, रिफाइनरी से निर्यात में उल्लेखनीय गिरावट आई है (पिछले साल इसी महीने की तुलना में। 47 प्रतिशत), और यह मई 2023 के बाद से सबसे निचले स्तर पर आ गया है। यह दर्शाता है कि रिफाइनरी घरेलू खपत पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही है या निर्यात के लिए नए बाजारों की तलाश कर रही है।
वैश्विक व्यापार मार्गों पर प्रतिबंधों का प्रभाव
सीआरईए ने बताया कि अक्टूबर में रूसी कच्चे तेल का उपयोग करने वाली छह भारतीय और तुर्की रिफाइनरियों से प्रतिबंधित देशों (जैसे यूरोपीय संघ और ब्रिटेन) के आयात में मासिक आधार पर आठ प्रतिशत की कमी आई। यूरोपीय संघ में 9 प्रतिशत और ब्रिटेन में 73 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई। इसके विपरीत, अक्टूबर में ऑस्ट्रेलिया का आयात 140 प्रतिशत बढ़कर 9. 3 करोड़ यूरो हो गया और अमेरिका का आयात भी 17 प्रतिशत बढ़कर 12. 66 करोड़ यूरो हो गया। इन दोनों देशों ने अभी तक रूसी कच्चे तेल से बने तेल उत्पादों पर प्रतिबंध की घोषणा नहीं की है, जिससे वे इन रिफाइनरियों के लिए महत्वपूर्ण बाजार बने हुए हैं। यह वैश्विक ऊर्जा व्यापार में प्रतिबंधों के जटिल और विविध प्रभावों को उजागर करता है।