बिहार विधानसभा चुनाव 2025 अपने निर्णायक मोड़ पर है। पहले चरण में 121 सीटों पर मतदान सफलतापूर्वक संपन्न हो चुका है,। जबकि दूसरे चरण में 122 सीटों पर 11 नवंबर को वोट डाले जाएंगे। इस चुनावी महासंग्राम का अंतिम परिणाम 14 नवंबर को घोषित किया जाएगा, जब यह स्पष्ट हो जाएगा कि बिहार की सत्ता की बागडोर किसके हाथ में होगी। इस पूरे चुनाव में, सभी राजनीतिक दलों और विश्लेषकों की निगाहें प्रदेश की उन 10 सीटों पर टिकी हैं, जिन्हें 'सत्ता की कुंजी' कहा जा रहा है। ये वो सीटें हैं जहां 2020 के विधानसभा चुनाव में जीत और हार का अंतर 1000 वोटों से भी कम रहा था, और इस बार भी इन सीटों पर सियासी जंग जोरदार होने की उम्मीद है।
सत्ता की कुंजी कही जाने वाली 10 सीटें
ये 10 विधानसभा सीटें बिहार के राजनीतिक परिदृश्य में एक विशेष महत्व रखती हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में इन सीटों पर बेहद करीबी मुकाबले देखने को मिले थे, जहां कुछ सीटों पर तो जीत का अंतर दहाई अंकों में सिमट गया था। इन सीटों के परिणाम ने पिछली बार सरकार बनने और न बनने में एक बड़ी भूमिका निभाई थी, और यही कारण है कि इस बार दोनों प्रमुख गठबंधन – एनडीए और इंडिया गठबंधन – ने इन सीटों पर कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है और उन्होंने अपनी पूरी ताकत और दमखम के साथ चुनाव लड़ा है, यह जानते हुए कि इन सीटों पर जीत ही उन्हें सत्ता के करीब ला सकती है। इन सीटों पर मतदाताओं का हर एक वोट निर्णायक साबित हो सकता है।
हिलसा: 12 वोटों का रोमांचक मुकाबला
नालंदा जिले की हिलसा विधानसभा सीट 2020 के चुनाव में बिहार। की सबसे कांटे की टक्कर वाली सीट के रूप में उभरी थी। यहां जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के कृष्णमुरारी शरण ने राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के अतरी मुनि उर्फ शक्ति सिंह यादव को मात्र 12 वोटों के अविश्वसनीय अंतर से हराया था। यह जीत का अंतर इतना कम था कि इसने पूरे प्रदेश का ध्यान अपनी ओर खींचा था। 2025 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर वही दोनों उम्मीदवार आमने-सामने हैं, जिससे इस सीट पर एक बार फिर कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है। दोनों ही दलों के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गई है, और वे इसे जीतने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं।
रामगढ़: उपचुनाव के बाद बदली सियासी तस्वीर
बक्सर जिले की रामगढ़ सीट पर 2020 में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के सुधाकर सिंह ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के अंबिका सिंह को 189 वोटों से हराया था। हालांकि, 2024 में सुधाकर सिंह के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद यह सीट खाली हो गई और यहां उपचुनाव हुआ। इस उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के अशोक सिंह ने बसपा के। अंबिका सिंह को 1362 वोटों से हराया, जबकि आरजेडी तीसरे स्थान पर रही। 2020 विधानसभा और 2024 उपचुनाव दोनों में ही इस विधानसभा में जीत-हार का अंतर बहुत करीब रहा है, जो इसकी संवेदनशीलता को दर्शाता है। इस बार 2025 विधानसभा चुनाव में एक बार फिर बीजेपी से अशोक सिंह और आरजेडी से अजीत कुमार आमने-सामने हैं, जबकि तीसरे दल के रूप में बसपा के सतीश कुमार यादव भी मैदान में हैं। 11 नवंबर को होने वाले मतदान में यहां जबरदस्त टक्कर की संभावना है।
कुढ़नी: उम्मीदवार बदलने से बढ़ा रोमांच
मुजफ्फरपुर जिले की कुढ़नी सीट पर 2020 में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के अनिल कुमार सहनी ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के केदार प्रसाद गुप्ता को सिर्फ 712 वोटों से हराया था और यह भी एक बेहद करीबी मुकाबला था जिसने इस सीट को महत्वपूर्ण बना दिया था। 2025 के चुनाव में आरजेडी ने कुढ़नी में अपना उम्मीदवार बदल दिया है और इस बार मुकाबला आरजेडी के सुनील कुमार सुमन और बीजेपी के केदार प्रसाद गुप्ता के बीच है। दिलचस्प बात यह है कि पिछली बार आरजेडी से जीते हुए अनिल कुमार सहनी इस बार निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में हैं, जिससे यह मुकाबला और भी त्रिकोणीय और अप्रत्याशित हो गया है।
बरबीघा: एनडीए और इंडिया गठबंधन की प्रतिष्ठा का सवाल
नवादा जिले की बरबीघा सीट पर 2020 विधानसभा चुनाव में जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के। सुदर्शन कुमार ने कांग्रेस के गजानंद शाही को मात्र 113 वोटों से शिकस्त दी थी। यह भी एक ऐसी सीट है जहां जीत-हार का अंतर लगातार कम रहा है, जो इसकी राजनीतिक संवेदनशीलता को बढ़ाता है। इस बार 2025 में जेडीयू से कुमार पुष्पंजय और कांग्रेस से त्रिशूलधारी सिंह के बीच कड़ा मुकाबला है। इस सीट पर एनडीए और इंडिया गठबंधन दोनों ने अपनी पूरी ताकत लगाई है, क्योंकि यहां वोटों का अंतर पिछले दो विधानसभा चुनावों से कम ही रहता आया है, जिससे यह सीट दोनों गठबंधनों के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गई है।
डेहरी: दूसरे चरण में कड़ी टक्कर की उम्मीद
डेहरी विधानसभा सीट पर 2020 में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के फतेह बहादुर सिंह कुशवाहा ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सत्यनारायण सिंह को 464 वोटों से पराजित किया था और यह भी एक करीबी मुकाबला था जिसने इस सीट को महत्वपूर्ण बना दिया था। डेहरी विधानसभा से इस बार एनडीए के घटक लोकजनशक्ति पार्टी (रामविलास) के राजीव रंजन सिंह और आरजेडी के गुड्डू चंद्रवंशी आमने-सामने हैं। इस सीट पर कड़े टक्कर की उम्मीदों के बीच 11 नवंबर को दूसरे चरण में मतदान होना है। दोनों ही उम्मीदवार अपनी-अपनी पार्टियों के लिए इस सीट को जीतने का पूरा प्रयास कर रहे हैं।
भोरे: त्रिकोणीय मुकाबले में फंसी सुरक्षित सीट
गोपालगंज जिले की भोरे सुरक्षित सीट पर पिछले विधानसभा चुनाव 2020 में जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के सुनील कुमार ने करीबी टक्कर में भाकपा (माले) के जीतेंद्र पासवान को 462 वोटों से हराया था। यह सीट भी अपनी करीबी लड़ाई के लिए जानी जाती है। इस बार 2025 में जेडीयू के सुनील कुमार और इंडिया गठबंधन से भाकपा (माले) के उम्मीदवार धनंजय के बीच कांटे की टक्कर है। इसके साथ ही, जनसुराज पार्टी की प्रीति किन्नर ने भी चुनाव को त्रिकोणीय बना दिया है, लेकिन मुख्य मुकाबला जेडीयू और भाकपा माले के बीच ही माना जा रहा है और इस बार भी टक्कर जबरदस्त है, और दोनों ही गठबंधन ने पूरी ताकत से चुनाव लड़ा है।
बछवाड़ा: त्रिकोणीय संघर्ष में बीजेपी की चुनौती
बेगूसराय जिले की बछवाड़ा सीट पर 2020 विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सुरेंद्र मेहता ने भाकपा के अवधेश कुमार राय को 484 वोटों से हराया था। यह सीट भी अपनी करीबी लड़ाई के लिए जानी जाती है। इस बार 2025 विधानसभा चुनाव में इस सीट से बीजेपी के सुरेंद्र मेहता एक बार फिर मैदान में हैं, जबकि कांग्रेस से शिवप्रकाश गरीब दास और सीपीआई से अवधेश राय त्रिकोणीय चुनाव में आमने-सामने हैं। इस बार भी मुकाबला रोचक है, क्योंकि तीनों प्रमुख उम्मीदवार अपनी-अपनी पार्टियों के लिए। इस सीट को जीतने का प्रयास कर रहे हैं, जिससे परिणाम अप्रत्याशित हो सकता है।
बखरी: बेगूसराय की एक और कांटे की टक्कर वाली सीट
बेगूसराय जिले की बखरी सीट पर 2020 विधानसभा चुनाव में भाकपा के सूर्यकांत पासवान ने बीजेपी के रामशंकर पासवान को 777 वोटों से हराया था और यह भी एक ऐसी सीट है जहां जीत-हार का अंतर कम रहा है। 2025 विधानसभा चुनाव में एनडीए गठबंधन की तरफ से इस सीट से लोकजनशक्ति पार्टी (रामविलास)। के उम्मीदवार संजय कुमार का मुकाबला इंडिया गठबंधन के कांग्रेस उम्मीदवार विकास कुमार से है। एक बार फिर यहां मुकाबला कांटे की है और जीत-हार का मार्जिन कम रहने की संभावना है, जिससे यह सीट भी निर्णायक भूमिका निभा सकती है।
परबत्ता: दल बदलने से समीकरण हुए जटिल
परबत्ता विधानसभा सीट पर 2020 विधानसभा चुनाव में जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के डॉ. संजीव कुमार ने राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के दिगंबर प्रसाद तिवारी को 951 वोटों से हराया था। इस सीट पर भी जीत का अंतर कम रहा था। डॉ. संजीव कुमार ने इस बार पार्टी बदल दी है। 2025 में इस बार परबत्ता से सीटिंग विधायक डॉ. संजीव आरजेडी के उम्मीदवार हैं। उनकी लड़ाई चिराग पासवान की पार्टी लोकजनशक्ति पार्टी (रामविलास) के उम्मीदवार बाबूलाल शौर्य से है। इस बार भी यहां मुकाबला कांटे की है और जीत-हार का अंतर बहुत कम रहने की उम्मीद है, क्योंकि दल बदलने से समीकरण काफी जटिल हो गए हैं।
चकाई: निर्दलीय से जेडीयू तक का सफर
चकाई विधानसभा सीट पर 2020 विधानसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार सुमित कुमार सिंह ने राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की सावित्री देवी को 581 वोटों से मात दी थी। यह एक महत्वपूर्ण जीत थी क्योंकि यह एक निर्दलीय उम्मीदवार द्वारा हासिल की गई थी और इस बार 2025 चुनाव में चकाई से सुमित कुमार सिंह जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के उम्मीदवार हैं। उनका मुकाबला आरजेडी की सावित्री देवी से है। इस बार चकाई सीट पर आरजेडी और एनडीए ने पूरी ताकत लगाई है, लिहाजा इस बार भी मुकाबला कांटे की है और परिणाम बेहद दिलचस्प होने की उम्मीद है।
बहरहाल, एक हजार से कम मतों से हार-जीत वाली इन सीटों को दोनों ही गठबंधन के घटक दलों ने पहले ही चिन्हित कर लिया था और पूरी ताकत और दमखम के साथ चुनाव लड़े हैं और क्योंकि सबको लगता है कि सत्ता की कुंजी इन्हीं विधानसभा को अपने पाले में करने से हासिल हो सकती है। 14 नवंबर को परिणाम में पता चलेगा कि क्या ये 10 विधानसभा सीटें वाकई बिहार के सत्ता की कुंजी साबित होती हैं और कौन सा गठबंधन सरकार बनाने में सफल होता है।