- भारत,
- 09-Apr-2025 09:15 AM IST
Trump Tariff War: अमेरिका और चीन के बीच बढ़ती टैरिफ वॉर एक बार फिर वैश्विक अर्थव्यवस्था को अस्थिरता की ओर धकेल रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका ने चीन पर 104 प्रतिशत का भारी-भरकम टैरिफ लगाने का ऐलान किया है, जो 9 अप्रैल से लागू हो जाएगा। इस घटनाक्रम ने न केवल चीन को आक्रामक प्रतिक्रिया देने पर मजबूर किया है, बल्कि वैश्विक पटल पर नई राजनीतिक और आर्थिक समीकरणों को जन्म दे दिया है।
भारत और चीन की साझेदारी की नई पुकार
इस पूरे विवाद के बीच भारत की भूमिका एक निर्णायक मोड़ पर है। नई दिल्ली में चीनी दूतावास के प्रवक्ता यू जिंग ने इस स्थिति पर प्रतिक्रिया देते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कहा कि भारत और चीन को इन वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए एकजुट होना चाहिए। उन्होंने कहा, “चीन-भारत आर्थिक और व्यापारिक संबंध पारस्परिक लाभ पर आधारित हैं। अमेरिका टैरिफ का दुरुपयोग कर रहा है। ऐसे में दो सबसे बड़े विकासशील देशों को कठिनाइयों से निपटने के लिए एक साथ खड़ा होना चाहिए।”
यह बयान ऐसे समय पर आया है जब भारत अपनी आर्थिक नीति में आत्मनिर्भरता और वैश्विक साझेदारियों के बीच संतुलन साधने की कोशिश कर रहा है। यू जिंग की बातों से यह स्पष्ट है कि चीन अमेरिका की एकतरफा नीतियों के खिलाफ एक साझा मोर्चा बनाना चाहता है, जिसमें भारत की भूमिका अहम हो सकती है।
चीन की वैश्विक अर्थव्यवस्था में भूमिका
यू जिंग ने आगे कहा कि चीन आर्थिक वैश्वीकरण और बहुपक्षीय व्यवस्था का समर्थन करता है। उनके अनुसार, चीन हर साल वैश्विक विकास में करीब 30 प्रतिशत का योगदान देता है और वह WTO के तहत व्यापारिक नियमों की रक्षा के लिए वैश्विक सहयोग को तैयार है।
चीन का यह रुख बताता है कि वह अमेरिका के संरक्षणवाद के खिलाफ एक व्यापक वैश्विक गठजोड़ बनाने की तैयारी कर रहा है — और भारत को उसमें एक रणनीतिक साझेदार के रूप में देख रहा है।
व्यापार युद्ध में कोई विजेता नहीं
यू जिंग ने दो टूक कहा कि व्यापार और टैरिफ युद्ध में कोई विजेता नहीं होता। सभी देशों को परामर्श और सहयोग की नीति पर चलना चाहिए और एकतरफा निर्णयों का विरोध करना चाहिए। चीन यह स्पष्ट कर चुका है कि वह इस टैरिफ वॉर में अंत तक लड़ने के लिए तैयार है, लेकिन साथ ही वह सहयोग और साझेदारी के द्वार भी खुले रखना चाहता है।
भारत के सामने विकल्प और अवसर
इस समय भारत के सामने दो बड़े विकल्प हैं — या तो वह अमेरिका के साथ अपने रणनीतिक संबंधों को प्राथमिकता दे, या फिर चीन के साथ मिलकर विकासशील देशों का एक मजबूत आर्थिक मोर्चा खड़ा करे। इस दुविधा में भारत को अपनी दीर्घकालिक आर्थिक और कूटनीतिक हितों को ध्यान में रखते हुए संतुलित नीति बनानी होगी।
भारत के पास अवसर है कि वह एशियाई नेतृत्व में वैश्विक आर्थिक नीति को एक नई दिशा दे। चीन के साथ व्यापारिक संबंधों में संभावनाएं हैं, लेकिन उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीतिक प्राथमिकताओं के परिप्रेक्ष्य में देखना भी आवश्यक है।