पाकिस्तान के सेना प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर इस समय अपने करियर की सबसे कठिन परीक्षा से गुजर रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की गाजा योजना को लेकर पाकिस्तान पर लगातार दबाव बढ़ रहा है। ट्रंप चाहते हैं कि गाजा में युद्ध के बाद शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए गठित होने वाली स्टेबलाइजेशन फोर्स में पाकिस्तान अपने सैनिक भेजे। यह मांग आसिम मुनीर के लिए एक बड़ी दुविधा खड़ी कर रही है, क्योंकि इस फैसले के दोनों ही पहलू पाकिस्तान के लिए गंभीर परिणाम ला सकते हैं। एक तरफ अमेरिका की नाराजगी का खतरा है, तो दूसरी तरफ देश के भीतर भारी विरोध और राजनीतिक अस्थिरता की आशंका है।
ट्रंप की गाजा योजना और पाकिस्तान पर दबाव
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गाजा में युद्ध के बाद की स्थिति से निपटने के लिए एक व्यापक योजना प्रस्तावित की है और इस योजना के तहत, मुस्लिम देशों की एक संयुक्त सेना का गठन किया जाना है, जिसे 'गाजा स्टेबलाइजेशन फोर्स' नाम दिया गया है। इस फोर्स का मुख्य कार्य गाजा में युद्ध के बाद पुनर्निर्माण, आर्थिक सुधार की निगरानी करना और शांति व्यवस्था बनाए रखना होगा। हालांकि, इस योजना में हमास को निरस्त्र करने की जिम्मेदारी भी शामिल हो सकती है, जिससे कई मुस्लिम देश इसमें शामिल होने से कतरा रहे हैं, क्योंकि इससे उनके सीधे संघर्ष में फंसने का खतरा है और पाकिस्तान पर इस फोर्स के लिए सैनिक भेजने का सीधा दबाव है, जो आसिम मुनीर के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है।
मुनीर की अमेरिका यात्रा और संभावित चर्चा
कहा जा रहा है कि आसिम मुनीर जल्द ही ट्रंप से मिलने के लिए वॉशिंगटन जा सकते हैं। यह पिछले छह महीनों में उनकी ट्रंप के साथ तीसरी मुलाकात होगी, जो दोनों के बीच बढ़ते करीबी संबंधों को दर्शाती है और इस मुलाकात में ट्रंप के गाजा शांति योजना पर विस्तार से चर्चा होने की संभावना है। आसिम मुनीर ने अमेरिका और पाकिस्तान के संबंधों को सुधारने के लिए ट्रंप के साथ व्यक्तिगत रूप से मजबूत संबंध बनाए हैं और जून में ट्रंप ने उन्हें व्हाइट हाउस में दोपहर के भोजन पर आमंत्रित किया था, जो पहली बार था जब किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने पाकिस्तानी सेना प्रमुख को अकेले बुलाया था। यह दर्शाता है कि अमेरिका पाकिस्तान और विशेष रूप से आसिम मुनीर को कितना महत्व देता है।
गाजा स्टेबलाइजेशन फोर्स की अवधारणा अपने आप में कई चुनौतियां समेटे हुए है और जैसा कि उल्लेख किया गया है, इस फोर्स को न केवल पुनर्निर्माण और आर्थिक सुधार की निगरानी करनी होगी, बल्कि हमास जैसे संगठनों को निरस्त्र करने की जिम्मेदारी भी मिल सकती है। यह किसी भी मुस्लिम देश के लिए एक संवेदनशील और खतरनाक कार्य हो सकता है, क्योंकि इससे उन्हें सीधे तौर पर इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष में घसीटा जा सकता है। कई देश इसी वजह से इस योजना से दूरी बनाए हुए हैं, क्योंकि वे इस जटिल और संभावित रूप से हिंसक स्थिति में सीधे तौर पर शामिल नहीं होना चाहते। पाकिस्तान के लिए भी यह एक बड़ा जोखिम है, क्योंकि उसके सैनिक सीधे तौर पर एक ऐसे संघर्ष में शामिल हो सकते हैं, जिसके गहरे भू-राजनीतिक और धार्मिक निहितार्थ हैं।
गाजा स्टेबलाइजेशन फोर्स की चुनौतियां
सैनिक न भेजने पर अमेरिकी नाराजगी का खतरा
अगर पाकिस्तान गाजा फोर्स में शामिल होने से इनकार करता है, तो ट्रंप की नाराजगी का खतरा है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह नाराजगी पाकिस्तान के लिए घाटे का सौदा साबित हो सकती है। पाकिस्तान अमेरिका से महत्वपूर्ण निवेश और सुरक्षा सहायता चाहता है, और अमेरिकी समर्थन उसकी अर्थव्यवस्था और सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है और ट्रंप की नाराजगी से इन संबंधों पर नकारात्मक असर पड़ सकता है, जिससे पाकिस्तान को आर्थिक और रणनीतिक रूप से नुकसान हो सकता है। आसिम मुनीर ने अमेरिका के साथ संबंधों को बेहतर बनाने के लिए काफी प्रयास किए हैं, और इस तरह की नाराजगी उनके प्रयासों को कमजोर कर सकती है।
पाकिस्तान की सैन्य ताकत और मुनीर पर दबाव
पाकिस्तान दुनिया का एकमात्र मुस्लिम देश है जिसके पास परमाणु हथियार हैं और उसने भारत के साथ तीन युद्ध लड़े हैं और मई में दोनों देशों के बीच सैन्य टकराव भी हुआ था। इसके अलावा, वह अफगानिस्तान के साथ भी सीमा संघर्ष में शामिल रहा है। रक्षा विशेषज्ञ आयशा सिद्दीका का कहना है कि इतनी बड़ी सैन्य ताकत होने के कारण आसिम मुनीर पर अपनी क्षमता और प्रभाव दिखाने का दबाव है। यह दबाव उन्हें गाजा योजना में शामिल होने के लिए मजबूर कर सकता है, ताकि वे अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान की सैन्य भूमिका को मजबूत कर सकें। हालांकि, यह निर्णय आंतरिक रूप से बहुत संवेदनशील है।
आसिम मुनीर की बढ़ी हुई शक्तियां
हाल ही में हुए संविधान संशोधन के जरिए आसिम मुनीर की शक्तियों में भारी वृद्धि की गई है। उन्हें वायुसेना और नौसेना की कमान भी सौंपी गई है, जिससे वे पाकिस्तान की तीनों सेनाओं के सर्वोच्च कमांडर बन गए हैं। उनका कार्यकाल 2030 तक बढ़ा दिया गया है, और उन्हें आजीवन फील्ड मार्शल का दर्जा मिला है। इसके अलावा, उन्हें जीवनभर कानूनी सुरक्षा भी प्रदान की गई है और विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान में शायद ही किसी और के पास इतनी ताकत और स्वतंत्रता हो। यह बढ़ी हुई शक्ति आसिम मुनीर को गाजा पर एक बड़ा और जोखिम भरा निर्णय लेने की क्षमता देती है, लेकिन साथ ही उन पर जिम्मेदारी का बोझ भी बढ़ाती है।
आंतरिक विरोध और राजनीतिक अस्थिरता का डर
गाजा में पाकिस्तानी सैनिक भेजने से देश के भीतर अमेरिका और इजराइल विरोधी पार्टियों के प्रदर्शन तेज हो सकते हैं। इन दलों के पास बड़ी संख्या में समर्थकों को सड़कों पर उतारने की क्षमता है, जिससे व्यापक विरोध प्रदर्शन और राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो सकती है और अक्टूबर में एक कट्टरपंथी इजराइल विरोधी संगठन पर प्रतिबंध लगाया गया था, लेकिन उसकी विचारधारा और समर्थक अभी भी मौजूद हैं। इसके अलावा, जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी भी सेना प्रमुख से नाराज है और उसके पास मजबूत जनसमर्थन है। ऐसे में, गाजा में सैनिक भेजने का निर्णय इन सभी समूहों को एकजुट कर सकता है और आसिम मुनीर के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन खड़ा कर सकता है।
इजराइल समर्थक होने की धारणा का जोखिम
अगर गाजा फोर्स तैनात होने के बाद हालात बिगड़ते हैं, तो इसका सीधा असर पाकिस्तान पर पड़ेगा। पाकिस्तानी नागरिकों के बीच यह धारणा बन सकती है कि आसिम मुनीर इजराइल के हितों में। काम कर रहे हैं, जो पाकिस्तान जैसे मुस्लिम बहुल देश में बेहद खतरनाक हो सकता है। यह धारणा सेना प्रमुख की विश्वसनीयता और वैधता को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकती है। यही वजह है कि गाजा को लेकर लिया गया कोई भी फैसला पाकिस्तान के लिए बेहद संवेदनशील साबित हो सकता है, और आसिम मुनीर को इस नाजुक स्थिति से बहुत सावधानी से निपटना होगा।