राजनीतिक / रामायण में विभीषण को देखते ही कांग्रेसियों को याद आते हैं सिंधिया

AMAR UJALA : Apr 16, 2020, 01:35 PM
एंटरटेनमेंट डेस्क | कांग्रेस पार्टी के नेताओं को ज्योतिरादित्य संधिया के भाजपा में चले जाने का बड़ा मलाल है। संयोग से इन दिनों दूरदर्शन पर रामायण का सीरियल भी आ रहा है। एक कांग्रेसी भाईसाहब का कहना है कि रामायण में विभीषण को देखते हैं, तो उन्हें अब सिंधिया का चेहरा याद जाता है। सिंधिया के चेहरे के साथ विभीषण का किरदार भी चलने लगता है। जनाब का कहना है कि राहुल गांधी से मजाक करने, दोस्ताना अंदाज में रहने में सिंधिया का कोई जवाब नहीं था। वह प्रियंका से भी बहुत घुले मिले थे। बताते हैं जब मध्य प्रदेश संकट गहराया, तो उन्होंने भी सिंधिया से संपर्क की तमाम कोशिशें की, लेकिन राजा तो राजा होता है। सिंधिया वैसे भी ग्वालियर के महाराजा हैं। कहां भाव देने वाले। वैसे भी उनके भाजपा में चले जाने के बाद इसका सदमा भी सबसे ज्यादा राहुल गांधी को ही पहुंचा होगा।

मोदी जी आगे-आगे, केजरी पीछे चलने की गति में आगे

सोशल मीडिया पर भक्त दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को कई नामों से तंज कसते हैं। खैर, कुछ भी हो, केजरीवाल ने अपने कौशल से कांग्रेस को दिल्ली में जहां लस्त कर दिया, वहीं भाजपा के सारे राजनीतिक दावों को ध्वस्त करके उसकी आक्रामक राजनीतिक सोच को पस्त कर दिया। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह जो लाइन ले रहे हैं, उस पर दिल्ली के मुख्यमंत्री कुछ ज्यादा ही रफ्तार से दौड़े रहे हैं।

केजरीवाल की यह रफ्तार देखकर भाजपा के कई नेता दंग हैं। यहां तक कि मुख्यमंत्रियों से वीडियो कांफ्रेंसिंग पर चर्चा के बाद जब केजरीवाल मीडिया में आए तो सरकार को सफाई देनी पड़ी। एक तरफ डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने केंद्र सरकार से राज्यों को आवंटित राहत के पैसे में दिल्ली का हिस्सा मांगने का पत्र लिखा और उसी दिन केजरीवाल ने केंद्र सरकार के सहयोग से मिल रहे खाद्यान्न पर धन्यवाद ज्ञापित कर दिया। यहां तक कि कुछ मुस्लिम नेता भी हैरान हैं। तब्लीगी जमात के मरकज से लेकर जो कुछ घटा, उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर यह क्या चल रहा है।

मोदी के बाद... बस योगी जी

उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अब ऐसे युवा भाजपा नेताओं की फौज खड़ी करने में सफल हो गए हैं, जो मोदी के बाद योगी को ही देख रही है। यहां तक कि कई विभागों के प्रमुख सचिव भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी महाराज की तारीफ करते नहीं थकते।

बताते हैं कि मुख्यमंत्री हमेशा एक्शन मोड में रहते हैं। सुबह साढ़े पांच बजे के बाद से रात 12 बजे तक योगी जी में लगातार काम करने की क्षमता है। हमेशा जाग्रत अंदाज में बैठक, समीक्षा करते हैं। बिना लाग लपेट के आर्डर देते हैं। हर दिशानिर्देश में जनकल्याण पक्ष हावी रहता है।

कई अधिकारियों को तो यहां तक लग रहा है कि अभी 50 साल से कम के योगी हैं। उनके पास राजनीति के लिए काफी समय है। बताते हैं योगी जितना सक्रिय रहते हैं, उनकी सक्रियता को देखकर मंत्रिमंडल के एक दो सहयोगियों को उतना फीवर भी होता है। इसे लेकर उत्तर प्रदेश सरकार के कुछ मंत्रियों में भी नरम-गरम चर्चा चलती रहती है।

कमलनाथ और शिवराज का लक्ष्य

मध्य प्रदेश के बारे में भाजपा के एक नेता की सुनिए। साहब की थ्योरी है कि कमलनाथ और शिवराज का लक्ष्य एक है। कमलनाथ मुख्यमंत्री पद छिनने के बाद से सिंधिया से खफा हैं। 15 साल बाद कांग्रेस की बनी सरकार सिंधिया गिरा गए।

इसलिए कमलनाथ, दिग्विजय दोनों ग्वालियर-चंबल संभाग में सिंधिया की राजनीति को समेटने में जोर लगा रहे हैं। वहीं शिवराज के विरोधी भी कम नहीं हैं। कैलाश विजयवर्गीय समेत अन्य लॉबी से जरा कम पटती है। ज्योतिरादित्य के इलाके में शिवराज ने अपने नेताओं की लीडरशिप खड़ी की है।

महाराज से पंगा लेने वाले अब इन नेताओं के भविष्य पर बन आई है। शिवराज का इन्हें राजी करने का अर्थ थोड़ा सा ज्योतिरादित्य को सिकोड़ना है। बताते हैं मौजूदा शीर्ष केंद्रीय नेतृत्व किसी को सिर पर नहीं बिठाता। उसे भाजपा के समर्पित कार्यकर्ताओं को भी देखना है।

कुछ ऐसे ही दांवपेंच में शिवराज मंत्रिमंडल का गठन अटका है। इस पर कमलनाथ की भी निगाहें हैं। जब हो जाए तो समझ लीजिए दोनों का लक्ष्य पूरा हो गया। वैसे भी कमलनाथ को भरोसा है कि राज्य में उपचुनाव के बाद वह फिर शपथ लेंगे। वैसे भी छिंदवाड़ा के विकास में शिवराज भी कभी आगे नहीं आए।

कांग्रेस का दीया कभी बुझेगा नहीं

कांग्रेस पार्टी की महिला इकाई की अध्यक्ष हैं सुष्मिता देव।। तेज तर्रार नेता हैं। राहुल गांधी काफी भरोसा करते हैं। सुष्मिता देव का कहना है कि एक समय ऐसा आता है, जब पुराने राजनीतिक दलों में हलचल जैसी स्थितियां पैदा होती हैं। कांग्रेस भी इसी दौर से गुजर रही है, लेकिन यकीन दिलाती हूं कि कांग्रेस का दीया प्रकंपित होता रहेगा, लेकिन बुझेगा नहीं।

सवा सौ साल पुरानी उदार विचारधारा की पार्टी सबको साथ लेकर चलने वाली है। सच कहूं तो लोकतंत्र की नींव का पत्थर है। इस पार्टी में किसी भाषा, समुदाय, संप्रदाय, क्षेत्र के प्रति कोई नफरत नहीं है। इसलिए चाहे जो हो जाए, अब कांग्रेसी ही बने रहना है। वह दिन भी आएगा, जब फिर रोशनी होगी, जब फिर उजाला होगा। सुष्मिता देव कहती हैं कि वह इसी विश्वास से हर दिन अपना काम करती हैं।

पहले कोविड-19 से निबट लें, राजनीति बाद में

कई दलों के नेता प्रधानमंत्री और केंद्र सरकार की नीतियों की चाहकर भी खिंचाई नहीं कर पा रहे हैं। कारण साफ है। देश कोविड-19 का संक्रमण रोकने की जंग लड़ रहा है। समाजवादी पार्टी, बसपा, राजद, तृणमूल कांग्रेस, वामदल और यहां तक कि कांग्रेस के बड़े नेताओं का भी मानना है कि भाजपा और उसके नेता कोविड-19, लॉकडाउन के दौर में राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे हैं।

चाहे आनंद विहार में मजदूरों के पलायन का मामला रहा हो या अहमदाबाद, सूरत, मुंबई। भाजपा के नेताओं ने नियम भी तोड़े और राजनीति भी की। उत्तराखंड के एक बड़े कांग्रेस नेता ने कहा कि 1800 गुजरातियों को लॉकडाउन के दौरान बसों में भर कर ले गए।

लेकिन सभी का मानना है संकट की घड़ी में देश में राजनीतिक दलों के बीच राजनीति करने की परंपरा नहीं है। यही वजह है कि तब्लीगी जमात के खिलाफ चल रहे दुष्प्रचार पर शरद पवार ने प्रधानमंत्री से सलीके से शिकायत की। अपनी बात रखी। कई नेताओं का कहना है कि राजनीति तो बाद में कर लेंगे। अभी पहले कोविड-19 के संक्रमण से निबट लें।


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