देश / फेसबुक विवाद पर अमेरिकी अखबार का नया खुलासा, सामने आए अंखी दास के इंटरनल मैसेज

AajTak : Aug 31, 2020, 09:50 AM
Facebook Controversy: भारतीय राजनीति में फेसबुक के असर और उसकी पॉलिसी को लेकर उठ रहे सवालों के बीच कुछ और नई जानकारी सामने आई हैं। अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल ने एक बार फिर फेसबुक की सीनियर अधिकारी अंखी दास से जुड़े कुछ अहम दावे किए हैं। बताया गया है कि अंखी दास ने चुनाव में कांग्रेस की हार को तीस साल की जमीनी मेहनत के बाद मुक्ति बताते हुए एक अलग अंदाज में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ की थी। साथ ही चुुनावी कैंपेन में भी उनकी भूमिका को लेकर सवाल उठाए गए हैं।

अंखी दास फेसबुक की इंडिया पब्लिक पॉलिसी हेड भी हैं और हाल ही में वॉल स्ट्रीट जर्नल ने ही अपनी एक खबर में दावा किया था कि कैसे बीजेपी से जुड़े नेताओं की हेट स्पीच पर फेसबुक ने दोहरे मापदंड अपनाए। ये कहा गया कि अंखी दास ने बीजेपी से जुड़े ऐसे नेताओं की हेट स्पीच पर बैन लगाने का विरोध किया। इस दावे के बाद देश में इस मामले ने काफी तूल पकड़ा। कांग्रेस की तरफ से आधिकारिक तौर पर फेसबुक को इस मसले पर पत्र भी लिखे जा चुके हैं। राहुल गांधी यहां तक आरोप लगा चुके हैं कि फेसबुक-वॉट्सऐप पर बीजेपी और आरएसएस का कब्जा है और इसका इस्तेमाल वो फेक न्यूज व नफरत फैलाने के लिए करते हैं। 

विवाद के बीच अब वॉल स्ट्रीट जर्नल ने एक बार फिर अंखी दास द्वारा लिखी गई एक दूसरी पोस्ट के आधार पर नई जानकारियां सामने रखी हैं। 

क्या हैं नए दावे

अंखी दास ने चुनाव में कांग्रेस की हार पर लिखा, ''आखिरकार, तीस साल के जमीनी काम से भारत को स्टेट सोशलिज्म से मुक्ति मिल गई।'' वहीं, दूसरी तरफ जीत के लिए नरेंद्र मोदी को स्ट्रॉन्गमैन बताया गया।

इस तरह की अंखी दास की पोस्ट 2012 से 2014 के बीच की बताई गई हैं जो भारत में काम करने वाली फेसबुक टीम के ग्रुप को भेजी गई थीं। हालांकि, इन पोस्ट को कोई भी देख सकता था। उस वक्त इस ग्रुप में सैकड़ों कर्मचारी शामिल थे। कुछ फेसबुक कर्मचारियों ने बताया है कि जो चीजें अंखी दास ने बताई वो कंपनी की निष्पक्षता की पॉलिसी की विरोधाभासी थीं। 

फेसबुक ने क्या कहा

फेसबुक ने अंखी दास का बचाव किया है और कहा है कि उन्होंने अनुचित पक्षपात नहीं दिखाया। फेसबुक के प्रवक्ता एंडी स्टोन ने कहा, ''पोस्ट का गलत संदर्भ समझा गया है।'' कंपनी की तरफ से ये भी कहा गया है कि कंपनी मुस्लिम विरोधी कट्टरता के खिलाफ है। 

चुनाव को लेकर अंखी दास की भूमिका पर सवाल

वॉल स्ट्रीट जर्नल ने अपनी रिपोर्ट में ये भी लिखा है कि अंखी दास ने 2011 में फेसबुक ज्वाइन किया। ये वो वक्त था जब फेसबुक राजनीति की दुनिया में अपना दखल बढ़ा रहा था। इस दौरान भारत की कई राजनीतिक पार्टियों को फेसबुक के बेहतर इस्तेमाल के बारे में भी बताया गया। 2012 में गुजरात में बीजेपी के लिए भी फेसबुक के जरिए जनता के बीच पहुंचने का काम किया गया। बीजेपी को जीत मिली और नरेंद्र मोदी तब एक बार फिर मुख्यमंत्री बने। इस पर अंखी दास ने लिखा था, ''हमारे गुजरात कैंपेन की सफलता।'' इसके बाद नरेंद्र मोदी और बीजेपी के लिए राष्ट्रीय चुनाव का कैंपेन चलाया गया। यानी 2014 के लोकसभा चुनाव के लिए कैंपेन चलाया गया। 

अंखी दास के सहयोगी कैटी हार्बथ ने लिखा कि अंखी दास ने नरेंद्र मोदी को भारत का जॉर्ज डब्ल्यू बुश बताकर संबोधित किया था। इसके अलावा वॉल स्ट्रीट जर्नल ने लिखा है कि अंखी दास ने अपने इरादे पहले ही स्पष्ट कर दिए थे। जब एक फेसबुक सहयोगी ने इस बात को लेकर सवाल उठाए कि फेसबुक पर मोदी के पेज से ज्यादा कांग्रेस की फॉलोइंग है तो अंखी दास ने कहा, ''कांग्रेस से तुलना करके उन्हें अपमानित मत करो। खैर, मेरे पूर्वाग्रह को न दिखाने दें।'' 

इतना ही नहीं, अंदरखाने अंखी दास ये भी वकालत कर रही थीं कि बीजेपी के साथ काम करने से फेसबुक को फायदा पहुंच रहा है। अंखी दास ने ये भी लिखा था कि हम अपनी प्राथमिकताओं में उन्हें शामिल करने के लिए महीनों से लॉबीइंग कर रहे हैं। अब वो चुनाव जीतना चाहते हैं। 2014 चुनाव के फेसबुक कैंपेन खत्म होते वक्त यानी रिजल्ट आने से पहले अंखी दास ने अपने एक सहयोगी से बीजेपी की जीत की बात भी कही थी। 

फर्जी फेसबुक पेज पर भी एक्शन नहीं

वॉल स्ट्रीट जर्नल ने 2019 के लोकसभा चुनाव में भी अंखी दास की भूमिका को लेकर रिपोर्ट की है। रिपोर्ट में लिखा गया है कि फेक फेसबुक पेज के लिए बीजेपी को कुछ नहीं कहा गया और अंखी दास ने ऐसा करने से रोका। जबकि कांग्रेस को पॉलिसी के हिसाब से ट्रीट किया गया। हालांकि, फेसबुक की तरफ से बीजेपी को सहयोग की बात या पक्षपात की बात से इनकार किया गया है। 

इसके अलावा विज्ञापन को लेकर भी वॉल स्ट्रीट जर्नल ने कुछ दावे किए हैं। बीजेपी ने अपने विज्ञापनों में पारदर्शिता का पालन नहीं किया और फेसबुक ने ये बात पता लगने के बाद भी कोई एक्शन नहीं लिया। नियमों के हिसाब, विज्ञापन देने वालों की पहचान वेरिफाई की जाती है और यूजर्स से उनकी जानकारी साझा की जाती है। ये भी पाया गया कि नए-नवेले संगठनों के नाम पर फेसबुक को विज्ञापन दिए गए। इसके बावजूद फेसबुक ने न ही पेज हटाए और न ही विज्ञापनों को लेकर कोई कदम उठाया गया। इस पर फेसबुक की तरफ से बताया गया कि नियम इतने स्पेसिफिक नहीं थे, लिहाजा कोई एक्शन नहीं लिया गया।

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