- भारत,
- 03-Jun-2025 05:49 PM IST
Share Market Crash: जून के महीने में शेयर बाजार को लगातार दूसरे कारोबारी दिन बड़ा झटका लगा है। 3 जून, 2025 को बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) का प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स 636.24 अंक यानी 0.78% गिरकर 80,737.51 पर बंद हुआ। वहीं, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) का निफ्टी 50 इंडेक्स भी 174.10 अंक या 0.70% गिरकर 24,542.50 के स्तर पर आ गया। इस गिरावट ने देश के 21.73 करोड़ निवेशकों को लगभग 2.39 लाख करोड़ रुपये की चपत लगा दी।
गिरावट के पीछे मुख्य वजहें
शेयर बाजार में आई इस बड़ी गिरावट के पीछे कई घरेलू और वैश्विक कारण हैं। इनमें से प्रमुख कारण हैं—
1. ग्लोबल ट्रेड टेंशन का फिर उभरना
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आयातित स्टील और एल्युमिनियम पर टैरिफ को 50% तक बढ़ाने की घोषणा की है, जो 4 जून, 2025 से लागू होगी। इस कदम का सीधा असर भारतीय धातु निर्यातकों पर पड़ा है, जिनमें टाटा स्टील, हिंडाल्को और जेएसडब्ल्यू स्टील जैसे प्रमुख नाम शामिल हैं।
भारत ने वित्त वर्ष 2025 में अमेरिका को इन धातुओं का करीब 4.5 बिलियन डॉलर का निर्यात किया है, जो अब खतरे में दिख रहा है। यह निर्णय वैश्विक व्यापार माहौल को अनिश्चित बना रहा है और निवेशकों की भावना पर नकारात्मक असर डाल रहा है।
2. कमजोर ग्लोबल इकोनॉमिक संकेतक
हालिया वैश्विक आंकड़े भी आर्थिक सुस्ती की ओर इशारा कर रहे हैं। अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग लगातार तीसरे महीने गिरावट में रहा है, वहीं चीन में फैक्ट्री गतिविधियों में आठ महीनों में पहली बार कमी दर्ज की गई है। इससे यह स्पष्ट होता है कि टैरिफ नीतियां वैश्विक डिमांड और सप्लाई चेन पर असर डाल रही हैं।
इसका असर अमेरिकी बाजारों के साथ-साथ एशियाई बाजारों पर भी पड़ा, जिससे नैस्डैक और एसएंडपी 500 जैसे इंडेक्स शुरुआती कारोबार में ही गिर गए।
3. आरबीआई पॉलिसी से पहले सतर्कता
भारतीय निवेशक इस हफ्ते होने वाली RBI मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) की बैठक के फैसले का इंतजार कर रहे हैं। जबकि 25 बेसिस पॉइंट की दर कटौती की उम्मीद है, लेकिन भविष्य की राह को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। इस कारण बैंकिंग, फाइनेंशियल, ऑटो और कंज्यूमर सेक्टर के शेयरों में बिकवाली देखने को मिली।
निफ्टी बैंक और फाइनेंशियल इंडेक्स में लगभग 0.8% की गिरावट, जबकि ऑटो और FMCG शेयरों में 0.5% तक गिरावट दर्ज की गई।
4. यूएस बॉन्ड यील्ड में उछाल
अमेरिका में 3.8 ट्रिलियन डॉलर के खर्च विधेयक पर हो रही बहस और पहले से 36.2 ट्रिलियन डॉलर के फेडरल लोन ने बाजार की चिंता और बढ़ा दी है। इससे दीर्घकालिक बॉन्ड यील्ड लगभग 5% के स्तर के पास पहुंच गई है।
बॉन्ड यील्ड में बढ़ोतरी से इक्विटी मार्केट में आकर्षण घटता है, क्योंकि निवेशक अपेक्षाकृत सुरक्षित विकल्पों की ओर रुख करते हैं।
5. कच्चे तेल की कीमतों में अस्थिरता
ओपेक+ द्वारा जुलाई में केवल सीमित उत्पादन बढ़ोतरी के निर्णय के बाद तेल की कीमतों में अस्थिरता बनी हुई है। ब्रेंट क्रूड लगभग 64.58 डॉलर/बैरल और WTI 62.46 डॉलर/बैरल पर कारोबार कर रहा है।
कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने से भारत जैसी आयात-निर्भर अर्थव्यवस्था पर महंगाई का दबाव बढ़ता है, जिससे बाजार में नकारात्मक माहौल बनता है।
6. फेड की ब्याज दरों को लेकर अनिश्चितता
फेडरल रिजर्व के गवर्नर क्रिस्टोफर वालर ने दरों में कटौती की संभावना जताई है, लेकिन अब तक कोई स्पष्ट समयरेखा नहीं दी गई है। इससे बाजार में अनिश्चितता बढ़ी है। निवेशक सितंबर में दर कटौती की 75% संभावना का मूल्य निर्धारण कर रहे हैं, लेकिन ठोस दिशा-निर्देश की कमी के कारण अस्थिरता बनी हुई है।