भारत की सबसे प्राचीन पर्वतमालाओं में से एक, अरावली, एक अभूतपूर्व पर्यावरणीय संकट के मुहाने पर खड़ी है. सुप्रीम कोर्ट की ओर से अरावली की नई परिभाषा सामने आने के बाद से दिल्ली से लेकर राजस्थान तक सियासी घमासान मचा हुआ है. इस नई व्याख्या के अनुसार, केवल वही संरचनाएं अरावली मानी जाएंगी जिनकी ऊंचाई आसपास की सतह से 100 मीटर या उससे अधिक हो और 500 मीटर के दायरे में ऐसी दो या अधिक पहाड़ियां हों. विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह परिभाषा लागू होती है, तो अरावली का लगभग. 90 प्रतिशत हिस्सा संरक्षण के दायरे से बाहर हो जाएगा, जिसके परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं.
अरावली की नई परिभाषा और उसका खतरा
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की सिफारिश को स्वीकार करते हुए. अरावली पहाड़ियों की पहचान के लिए एक नई कसौटी तय की है. इस कसौटी के तहत, अरावली पर्वतमाला का हिस्सा केवल उन्हीं पहाड़ियों को माना जाएगा जो अपने आसपास की जमीन से कम से कम 100 मीटर ऊंची हों. इसके अतिरिक्त, यह भी शर्त रखी गई है कि 500 मीटर के दायरे में ऐसी दो या अधिक पहाड़ियां मौजूद होनी चाहिए, तभी उन्हें अरावली रेंज का हिस्सा माना जाएगा. विशेषज्ञों ने इस परिभाषा पर गंभीर चिंता व्यक्त की है, क्योंकि उनका मानना है कि यह अरावली की वास्तविक भौगोलिक संरचना से बिल्कुल अलग है. यह कानूनी परिभाषा पर्वतमाला के अस्तित्व को ही खतरे में डाल. सकती है, जिससे इसके संरक्षण के प्रयासों को बड़ा झटका लगेगा.
राजस्थान पर मंडराता पर्यावरणीय संकट
राजस्थान, जो अरावली पर्वतमाला का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा अपने 15 जिलों. में समेटे हुए है, इस नई परिभाषा से सबसे अधिक प्रभावित होगा. राज्य में कुल 12,081 अरावली पहाड़ियां हैं, जिनमें से केवल 1,048 ही 100 मीटर से अधिक ऊंचाई वाली हैं. इसका सीधा अर्थ यह है कि राज्य की लगभग 11,033 पहाड़ियां, यानी करीब 90 प्रतिशत, संरक्षण के दायरे से बाहर हो जाएंगी. पर्यावरण विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यह कदम केवल एक कानूनी बदलाव नहीं है, बल्कि यह पर्वतमाला को खत्म करने जैसा है और इससे अवैध खनन को वैधता मिल सकती है, रियल एस्टेट, होटल और फार्महाउस परियोजनाओं का तेजी से विस्तार होगा, जिससे मरुस्थलीकरण की प्रक्रिया और तेज हो सकती है. इन गतिविधियों का सीधा असर मानसूनी गतिविधियों पर पड़ेगा, जिससे कई क्षेत्रों में. जल संकट गहरा सकता है और धूल भरी आंधियों का प्रकोप बढ़ सकता है.
सियासी घमासान और जन आंदोलन की तैयारी
सुप्रीम कोर्ट की इस नई परिभाषा के सामने आते ही राजस्थान की सियासत गरमा गई है. निर्दलीय विधायक रविंद्र सिंह भाटी ने इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है. भाटी ने अपने पत्र में आरोप लगाया है कि यह आदेश खनन माफियाओं के लिए 'रेड कार्पेट' जैसा है और अगर अरावली खत्म हुई तो पूरा उत्तर-पश्चिम भारत एक बड़ी पर्यावरणीय आपदा का सामना करेगा और वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी इस अभियान को खुला समर्थन दिया है और सोशल मीडिया के माध्यम से इसे जन आंदोलन बनाने की कोशिशों में जुटे हैं. उनका मानना है कि अरावली का संरक्षण केवल पर्यावरण का मुद्दा नहीं, बल्कि राजस्थान के भविष्य का सवाल है.
अरावली: राजस्थान की जीवन रेखा
अरावली पर्वतमाला को राजस्थान की जीवन रेखा कहा जाता है. यह लगभग 692 किलोमीटर लंबी है और इसका एक बड़ा हिस्सा, लगभग 80 प्रतिशत, राजस्थान के 15 जिलों से होकर गुजरता है. अरावली की उपस्थिति राजस्थान में तापमान को नियंत्रित करने, मानसूनी हवाओं की दिशा निर्धारित करने और धूल भरी आंधियों के प्रभाव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. यह मरुस्थल के विस्तार को रोकने में भी सहायक है. यदि अरावली का क्षरण होता है, तो यह न केवल राज्य के पारिस्थितिक संतुलन को बिगाड़ेगा, बल्कि कृषि, जल संसाधनों और स्थानीय जलवायु पर भी गंभीर नकारात्मक प्रभाव डालेगा. इस प्राचीन पर्वतमाला का संरक्षण न केवल राजस्थान के लिए बल्कि पूरे उत्तर-पश्चिम भारत के लिए अत्यंत आवश्यक है.