देश / अब निजी स्कूल और कॉलेज मनमानी फीस नहीं वसूल पाएंगे

AMAR UJALA : Aug 03, 2020, 09:10 AM
केंद्र सरकार ने हाल ही में नई शिक्षा नीति की घोषणा की है। शिक्षा के विभिन्न आयामों पर इस नीति के असर को लेकर केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक से बात की अमर उजाला के शरद गुप्ता ने। प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंश...

जब नई शिक्षा नीति का मसौदा 2016 में तैयार हो गया था तो इसे लागू करने में इतना लंबा समय क्यों लगा?

इस नीति पर भारत का भविष्य निर्भर करता है। इसीलिए सूक्ष्म अध्ययन की जरूरत थी। जनता, शिक्षाविदों, राज्य सरकारों व केंद्र सरकार के मंत्रालयों से सुझाव लिए गए। सितंबर 2019 को राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर केंद्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड (कैब) की विशेष बैठक हुई। जिसमें विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 26 शिक्षा मंत्रियों ने भाग लिया। 7 नवंबर, 2019 को संसद की स्थायी समिति के समक्ष प्रस्तुति भी दी गई।

किन राज्यों से आपत्तियां आईं और ये किस तरह की थीं?

स्कूली शिक्षा के लिए ज्यादातर आपत्तियां फंडिंग से संबंधित थी। जैसे कि मिड-डे मील के साथ-साथ सुबह के नाश्ते के लिए फंडिंग कैसे होगी। उच्च शिक्षा मामले में ज्यादातर आपत्तियां मान्यता को लेकर थीं। चूंकि शिक्षा समवर्ती सूची का हिस्सा है इसलिए हम कोई भी सुझाव राज्यों के साथ विचार करके ही लागू करेंगे। यह शिक्षा नीति केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा शिक्षा में निवेश को बढ़ाने का समर्थन करती है। इसे जीडीपी के 6 प्रतिशत तक पहुंचाने के लिए मिलकर काम करेंगे।

नई शिक्षा नीति के पांच सबसे महत्वपूर्ण बिंदु क्या हैं और इनसे छात्रों को क्या लाभ होगा?

मुख्य रूप से निवेश में पर्याप्त वृद्धि और नई पहल के साथ 3-6 वर्ष के बीच के सभी बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक शिक्षा तय करना है। मेरे लिए पांच प्रमुख बातों में मल्टीपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम, स्कूली शिक्षा के लिए 100% नामांकन अनुपात प्राप्त करना, लॉ और मेडिकल एजुकेशन के अलावा समूची उच्च शिक्षा के लिए सिंगल रेगुलेटर, विज्ञान, कला, मानविकी, गणित और व्यावसायिक क्षेत्रों के लिए एकीकृत शिक्षा और वर्ष 2025 तक 50% छात्रों को वोकेशनल शिक्षा प्रदान करना शामिल हैं। इनमें भी सबसे महत्वपूर्ण मल्टीपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम है। अभी यदि कोई छात्र छह सेमेस्टर इंजीनियरिंग पढ़ने के बाद किसी कारण से आगे की पढाई नहीं कर पाता है तो उसको कुछ भी नहीं मिलता। अब एक साल के बाद पढाई छोड़ने पर सर्टिफिकेट, दो साल के बाद डिप्लोमा व तीन-चार साल के बाद पढ़ाई छोड़ने के बाद डिग्री मिल जाएगी। देश में ड्रॉप आउट रेश्यो कम कम करने में इसकी बड़ी भूमिका होगी। प्रस्तावित शिक्षा नीति से देश में रोजगारपरक शिक्षा को बढ़ावा मिलेगा व रटकर पढ़ने की संस्कृति खत्म होगी।

निजी स्कूलों की फीस नियंत्रण का क्या होगा? क्या सभी निजी स्कूलों में एनसीईआरटी की किताबें लागू होंगी? अमीर-गरीब की खाई खत्म होगी?

नीति में स्पष्ट कर दिया गया है कि कौन संस्थान किस कोर्स की कितनी फीस रख सकता है। अधिकतम फीस भी तय होगी। फीस के संबंध में ये नियम उच्च व स्कूली शिक्षा दोनों पर ही समान रूप से लागू होंगे। प्राइवेट और सरकारी दोनों तरह के संस्थान इस नियम के दायरे में होंगे। यूजीसी, एआईसीटीई और एनसीटीई के विलय होने से उच्च शिक्षा में कितना बदलाव आएगा। उच्चतर शिक्षा की प्रोन्नति हेतु एक व्यापक सर्वसमावेशी अम्ब्रेला निकाय होगा जिसके तहत मानक स्थापन, वित्तपोषण, प्रत्यायन व विनियम के लिए स्वतंत्र इकाइयां बनेंगी। यह निकाय प्रौद्योगिकी से फेसलेस विनियमन का काम करेगा। उसके पास मानकों पर न चलने वाले निजी या सरकारी संस्थानों पर कार्रवाई करने की शक्तियां होंगी। 

जमीनी स्तर पर नीति का असर कब दिखेगा?

इस नीति के माध्यम से 2030 तक स्कूल शिक्षा में 100% सकल नामांकन के लक्ष्य को प्राप्त किया जाना है। इससे 3-6 वर्ष आयु वर्ग के 3 करोड़ 5 लाख से अधिक बच्चों को लाभ होगा। 2025 तक नेशनल मिशन के माध्यम से फाउंडेशनल लर्निंग एंड न्यूमेरिस स्किल से 12 करोड़ प्राथमिक स्कूलों के छात्र लाभान्वित होंगे। कोशिश है कि हर बच्चा कम से कम एक स्किल में विशेषज्ञता लेकर स्कूल से निकले।

बड़ी संख्या में हमारे स्नातक खासतौर पर इंजीनियर, इतने योग्य नहीं होते कि उन्हें नौकरी मिल सके। इसे कैसे सुनिश्चित करेंगे?

नई शिक्षा नीति तय करेगी कि हमारे छात्र नौकरी मांगने वाले नहीं बल्कि नौकरी देने वाले बनेंगे। एक स्वायत्त निकाय बनाया जाएगा। जो शिक्षा के सभी स्तरों में प्रौद्योगिकी का उपयुक्त एकीकरण करेगा।

हमारे सर्वश्रेष्ठ विवि व तकनीकी संस्थान भी दुनिया की श्रेष्ठ संस्थानों की सूची में क्यों नहीं आ पा रहे हैं?

क्यूएस व टीएचई जैसी अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग की कसौटी कितने विदेशी संकाय व विदेशी छात्र उस संस्थान में हैं, उस पर भी निर्भर करती है। भारतीय संस्थान उस कसौटी पर शायद उतना आगे नहीं है। यही कारण है कि हम अपनी रैंकिंग पद्धति एनआईआरएफ लाए

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