मुंबई / ये नेता कभी सब्जी बेचकर करते थे अपना गुजरा, अब उद्धव सरकार में बने मंत्री

AajTak : Nov 29, 2019, 10:37 AM
मुंबई | महाराष्ट्र के पूर्व उप मुख्यमंत्री और एनसीपी नेता छगन भुजबल ने गुरुवार को उद्धव ठाकरे के मंत्र‍िमंडल में शपथ ली। छगन भुजबल फर्श से अर्श तक पहुंचने की कहानी पूरी फ‍िल्मी नजर आती है। कभी सब्जी बेचने वाले छगन भुजबल अरबों की संपत्त‍ि के माल‍िक बने और फ‍िर राजनीत‍ि में ड‍िप्टी सीएम की कुर्सी भी पाई। कभी श‍िवसेना सुप्रीमो स्वर्गीय बालासाहेब ठाकरे के भरोसेमंद रहे छगन भुजबल के जीवन में एक समय ऐसा भी आया क‍ि बालासाहेब को ग‍िरफ्तार करने का आदेश उन्हीं के मंत्रालय ने द‍िया था।  

छगन भुजबल जब भायखला के बाजार में सब्जी बेचा करते थे तो वह बालासाहेब ठाकरे के भाषणों से प्रभाव‍ित रहते थे। छगन की मां भी यहीं एक छोटी सी दुकान में फल बेचा करती थी। बाला साहेब के भाषणों से प्रभाव‍ित होकर छगन भुजबल ने अपने पर‍िवार के धंधे को छोड़ राजनीत‍ि में जाने का फैसला क‍िया। उस वक्त छगन वीजेटीआई कॉलेज से इंजीनियरिंग में डिप्लोमा कर रहे थे लेकिन बीच में  ही पढ़ाई छोड़ दी।

जमीन से जुड़े लोगों के संपर्क में रहने के कारण और आक्रामक भाषणों के वजह से छगन भुजबल शिवसेना में एक महत्वपूर्ण नेता के रूप में आगे आए। शुरुआत से ही छगन भुजबल धाकड़ नेता थे। 1985 में वह मुंबई के मेयर में चुने गए थे। उस समय छगन भुजबल शिवसेना के लीलाधर डाके और सुधीर जोशी जैसे दूसरे स्तर के नेताओं की कतार में शामिल हो गए।

धीरे-धीरे बाला साहेब का छगन पर भरोसा बढ़ने लगा। यह वह वक्त था जब शिवसेना अपनी आक्रामक सियासत को पैना कर रही थी। इसी के साथ भुजबल का राजनीतिक दबदबा भी शिवसेना के साथ-साथ बढ़ने लगा। 

छगन भुजबल के मन में नाटकों और सिनेमा के लिए जुनून था। शायद यही वजह थी कि उनकी सियासत काफी नाटकीय रही। 1986 में महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच बेलगाम को लेकर सीमा विवाद जोरों पर था। उस वक्त छगन भुजबल का नाम किन्हीं अलग वजहों से देशभर फैल गया। उस दौरान महाराष्ट्र के नेताओं को कर्नाटक में प्रवेश पर रोक लगी हुई थी। इसके बावजूद भुजबल व्यापारी के भेष में बेलगाम में दिखे।

कर्नाटक पुलिस को झांसा देकर छगन भुजबल बेलगाम के एक मैदान पहुंच गए और फिर वहां भाषण देना शुरू कर दिया। अपने जोशीले भाषण से उन्होंने वहां के मराठी भाषियों का मन जीत लिया। इस भाषण के तुरंत बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। बालासाहेब ने उनके इस कदम की तारीफ करते हुए मुंबई के शिवाजी पार्क में रैली कर उनका सम्मान किया।

1989 में शिवसेना ने हिंदुत्व के मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन किया। शिवसेना और बीजेपी राम मंदिर को लेकर इन दिनों चर्चा में थी। इस आक्रामकता के कारण शिवसेना को फायदा हुआ और 1990 की विधानसभा चुनावों में पहली बार शिवसेना के 52 विधायक चुने गए। शिवसेना अब महाराष्ट्र विधानसभा में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बन गई थी। बालासाहेब ने मनोहर जोशी को विपक्ष के नेता का पद दिया।

विपक्ष के नेता की कुर्सी पर छगन भुजबल की भी नजर थी। यह पद न मिलने पर उन्हें ठेस पहुंची। शायद यही वजह थी कि भुजबल ने मनोहर जोशी के साथ लगातार संघर्ष के कारण शिवसेना छोड़ने का फैसला किया। 1991 में भुजबल ने नागपुर में विधानसभा सत्र के दौरान 9 विधायकों के साथ कांग्रेस में प्रवेश किया। उस समय शरद पवार राज्य में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता थे। ऐसा माना जाता है कि वही भुजबल को कांग्रेस में लाए थे। 

पार्टी छोड़ने से बालासाहेब बेहद नाराज थे। उस समय शिवसेना छोड़ना एक आसान बात नहीं थी। इसके बाद से भुजबल शिवसैनिकों के निशाने पर आ गए। शिवसैनिकों ने भुजबल के बंगले पर हमला करने की भी कोशिश की।

सोनिया गांधी के विदेशी मूल के होने के कारण शरद पवार कांग्रेस से बाहर हो गए और उन्होंने नई राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन किया। छगन भुजबल भी एनसीपी से जुड़ गए। उसी साल कांग्रेस और एनसीपी के गठबंधन के साथ सरकार सत्ता में आई और भुजबल महाराष्ट्र के गृह मंत्री बन गए। मुम्बई दंगों के लिए बालासाहेब ठाकरे को गिरफ्तार करने का आदेश उन्हीं के मंत्रालय ने जारी किया, जिससे एक नए राजनीतिक तूफान का जन्म हुआ लेकिन अदालत ने बालासाहेब को बरी कर दिया और उन्हें राहत दी। 

भुजबल मुंबई के मेयर रह चुके हैं। उन्होंने मुम्बई का विधानसभा चुनाव भी लड़ा लेकिन उन्हें उसमें हार मिली और वे मुंबई छोड़कर नासिक लौट गए। 1999 में वे नासिक जिले के येवला से चुनाव लड़े और इसमें उन्हें जीत हासिल हुई।

इसके बाद भी भुजबल पर कई आरोप लगाए जा रहे थे। अब्दुल करीम तेलगी ने मनी लॉन्ड्रिंग से करोड़ों का घोटाला किया था जिसकी चपेट में भुजबल भी आए। राजनीति में अपने बेटे और दामाद को उतारने के लिए उन्होंने उन्हें चुनाव टिकट बांटे इसलिए उन पर परिवारवाद के भी आरोप लगे। 

भुजबल 2004 से 2014 तक सार्वजनिक विभाग के मंत्री थे। इस दौरान उन पर पद के गलत इस्तेमाल करने जैसे भूमि अधिग्रहण करने जैसे आरोप लगे। लेकिन भुजबल इन आरोपों को झूठा बताते रहे और उनका कहना था कि ये सब आरोप राजनीति का हिस्सा है।

2014 में हाथ से सत्ता जाने के बाद वे ऐसे ही कई आरोपों में फंसते चले गए। मार्च 2016 में दिल्ली में बने महाराष्ट्र सदन घोटाला मामले में उनको गिरफ्तार किया गया। उन पर मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज किया गया था। उन्हें मुंबई के आर्थर रोड जेल में भेज दिया गया। दो सालों में उनकी जमानत की कई कोशिशें हुईं, लेकिन उन्हें जमानत नहीं मिल पाई थी। 4 मई, 2018 को उन्हें जमानत मिल गई।

जब से छगन भुजबल एनसीपी में गए हैं, तब से उनमें कई बदलाव आ गए ।भुजबल जब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में आए तब राज्य की आर्थिक उन्नति का समय था। ग्लोबलाइजेशन के कारण खुली अर्थव्यवस्था स्वीकार कर ली गई थी। उस समय देश के नेता अमीर से और अमीर होते चले गए। उन्हीं नेताओं में भुजबल का भी नाम था।

दो दशकों तक वे शिवसेना के कार्यकर्ता और मेयर के रूप में शिवसेना से जुड़े रहे, लेकिन तब तक किसी को नहीं पता था कि वे एक माली समुदाय से आते हैं। 1991 में वे शिवसेना से बाहर हो गए और वे एनसीपी में शामिल हो गए। एनसीपी में जाने के बाद उन्होंने माली समुदाय से होने का कई बार ज‍िक्र किया।

छगन भुजबल लगभग 26 महीने तक जेल में रहे। जब वे गृहमंत्री थे तब उन्होंने आर्थर रोड जेल में अंडा सेल बनवाया। उसी अंडा सेल में गिरफ्तारी के बाद उन्हें भी रखा गया। जमानत से बाहर आने के बाद भुजबल फिर से राजनीति में सक्रिय हुए  और अब महाराष्ट्र में उद्धव सरकार में मंत्री बने।

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