US Sanctions / रूसी तेल पर अमेरिकी प्रतिबंध: क्या भारत की तेल आपूर्ति में आएगी कमी?

अमेरिका द्वारा रूसी तेल कंपनियों पर लगाए गए नए प्रतिबंधों के कारण भारत की रूसी तेल आपूर्ति में गिरावट आने की आशंका है। भारत का रूसी तेल आयात, जो कुल का लगभग 40% तक पहुंच गया था, अब दिसंबर और जनवरी में काफी कम होने का अनुमान है। कई भारतीय रिफाइनरियों ने फिलहाल रूसी तेल का आयात रोक दिया है।

अमेरिका द्वारा रूसी तेल कंपनियों पर लगाए गए नए प्रतिबंधों के कारण भारत की तेल आपूर्ति पर संभावित प्रभाव को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं और पश्चिमी प्रतिबंधों और यूरोपीय मांग में कमी के चलते रूस से तेल भारी छूट पर उपलब्ध हुआ था, जिसके परिणामस्वरूप भारत का रूसी कच्चे तेल का आयात कुल आयात के एक प्रतिशत से बढ़कर लगभग 40 प्रतिशत तक पहुंच गया था। नवंबर में भी रूस भारत का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बना रहा, जो कुल आयात का लगभग एक तिहाई था और हालांकि, अब स्थिति बदलने की उम्मीद है।

अमेरिकी प्रतिबंधों का प्रभाव

रॉसनेफ्ट और लुकोइल तथा उनकी बहुलांश स्वामित्व वाली सहायक कंपनियों पर अमेरिका के नए प्रतिबंध 21 नवंबर से पूरी तरह लागू हो गए हैं। एनर्जी मार्केट से जुड़े विश्लेषकों का मानना है कि इन प्रतिबंधों के कारण भारत में रूसी तेल का आयात निकट भविष्य में तेजी से घटेगा, हालांकि यह पूरी तरह बंद नहीं होगा और इन कंपनियों से कच्चा तेल खरीदना या बेचना अब लगभग नामुमकिन हो गया है, जिससे भारतीय रिफाइनरियों के लिए एक नई चुनौती खड़ी हो गई है।

आयात में अपेक्षित गिरावट

भारत ने इस साल औसतन 17 लाख बैरल प्रतिदिन रूसी तेल का आयात किया था, और प्रतिबंधों से पहले यह मजबूत बना रहा। नवंबर में आयात 18 और 19 लाख बैरल प्रतिदिन रहने का अनुमान है, क्योंकि रिफाइनरियां सस्ते तेल की खरीद को अधिकतम कर रही थीं। हालांकि, आगे चलकर दिसंबर और जनवरी में आपूर्ति में स्पष्ट गिरावट आने की उम्मीद है। विश्लेषकों के अनुसार, यह घटकर लगभग चार लाख बैरल प्रतिदिन तक रह सकता है। यह एक महत्वपूर्ण कमी होगी, जो भारत की समग्र तेल आपूर्ति रणनीति को प्रभावित कर सकती है।

भारत की बदलती निर्भरता

परंपरागत रूप से पश्चिम एशियाई तेल पर निर्भर भारत ने फरवरी 2022 में यूक्रेन पर हमले के बाद रूस से अपने तेल आयात में काफी वृद्धि की थी। पश्चिमी प्रतिबंधों और यूरोपीय मांग में कमी के कारण रूस से तेल भारी छूट पर उपलब्ध हुआ, जिससे भारतीय रिफाइनरियों को लाभ हुआ। परिणामस्वरूप, भारत का रूसी कच्चा तेल आयात कुल आयात का एक प्रतिशत से बढ़कर लगभग 40 प्रतिशत तक पहुंच गया। नवंबर में भी रूस भारत का सबसे बड़ा सप्लायर बना रहा, जो कुल आयात का लगभग एक तिहाई था और यह बदलाव भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीति थी।

रूसी तेल सप्लाई में कमी के संकेत

केप्लर के रिफाइनिंग और मॉडलिंग के मुख्य अनुसंधान विश्लेषक सुमित रितोलिया ने इस बात पर जोर दिया है कि निकट भविष्य में, विशेषकर दिसंबर और जनवरी में भारत के लिए रूसी कच्चे तेल के प्रवाह में स्पष्ट गिरावट की उम्मीद है और उन्होंने बताया कि अक्टूबर 21 से सप्लाई धीमी हो गई है, हालांकि रूस की मध्यस्थों और वैकल्पिक वित्त प्रबंधन की क्षमता को देखते हुए अभी अंतिम निष्कर्ष निकालना जल्दी होगा। प्रतिबंधों के लागू होने के कारण रिलायंस इंडस्ट्रीज, एचपीसीएल-मित्तल एनर्जी और मैंगलोर रिफाइनरी जैसी कई प्रमुख भारतीय कंपनियों ने फिलहाल रूसी तेल का आयात रोक दिया है।

नायरा एनर्जी का अपवाद

इस मामले में एकमात्र अपवाद नायरा एनर्जी है, जो रॉसनेफ्ट समर्थित है। यूरोपीय संघ द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बाद अन्य स्रोतों से आपूर्ति कटने के कारण नायरा एनर्जी रूसी तेल पर भारी निर्भर है। रितोलिया ने स्पष्ट किया कि नायरा के वादीनेर प्लांट को छोड़कर कोई भी भारतीय रिफाइनर ओएफएसी-नामित संस्थाओं से जुड़े जोखिम नहीं लेना चाहता और खरीदारों को अपने कांट्रैक्ट, सप्लाई रूट, स्वामित्व और भुगतान चैनलों को पुनः व्यवस्थित करने में समय लगेगा।

भारतीय रिफाइनरों को हुआ जबरदस्त मुनाफा

विश्लेषकों का कहना है कि सस्ते रूसी तेल ने पिछले दो वर्षों में भारतीय रिफाइनरों को भारी मुनाफा दिया। इंटरनेशनल मार्केट में अस्थिरता के बावजूद, इस सस्ते तेल की उपलब्धता ने पेट्रोल और डीज़ल की खुदरा कीमतों को स्थिर रखने में मदद की। भारत अपनी तेल जरूरतों का 88 फीसदी आयात से पूरा करता है, इसलिए सस्ते स्रोत की उपलब्धता अत्यंत महत्वपूर्ण थी। नए अमेरिकी बैन के पूरी तरह लागू होने के साथ, भारत का रूसी तेल आयात अस्थिर और अनिश्चित दौर में प्रवेश कर गया है। विशेषज्ञों के अनुसार, रूस से आने वाला तेल पूरी तरह खत्म नहीं होगा, लेकिन निकट भविष्य। में प्रवाह में गिरावट आएगी, जिससे भारत को नए आपूर्ति स्रोतों की तलाश करनी पड़ सकती है।