Joe Biden Statement / क्या है भारत-यूरोप कॉरिडोर का हमास कनेक्शन, कई देशों के गले की कैसे बना हड्डी?

Zoom News : Oct 26, 2023, 08:30 PM
Joe Biden Statement: अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप आर्थिक कॉरिडोर को इजरायल-हमास युद्ध से जोड़कर जो बयान दिया है, उसने नई बहस को जन्म दे दिया है. बाइडेन के पास इस बात के सबूत तो नहीं है, लेकिन उन्होंने जो तर्क दिए है उसके पीछे सच्चाई भी है. इस कॉरिडोर से दो देश, चीन और मिस्र को सबसे ज्यादा नुकसान होने वाला है, जबकि अमेरिका भी मिडिल ईस्ट के साथ मिलकर एशिया तक अपनी पहुंच को आसान बना सकेगा.

बाइडेन के द्वारा दिए गए बयान के पीछे कई मायने है, क्योंकि भारत-यूरोप आर्थिक गलियारा कई मिडिल ईस्ट के नॉन स्टेट एक्टर्स के लिए गले की हड्डी बन रहा है. इससे चीन के वन बेल्ट, वन रोड को सीधी टक्कर मिल रही है, जबकि इजरायल से लेकर सऊदी अरब तक को फायदा हो रहा है. वहीं, दुनिया की स्वेज नहर पर निर्भरता कम हो जाएगी और खाड़ी के बड़े देश एकजुट होकर भारत-अमेरिका के साथ काम करेंगे.

चीन के प्रभाव को करना है खत्म

चीन ने साल 2013 में वन बेल्ट वन रोड नाम की एक परियोजना शुरू की थी, जिसको अब बेल्ड एंड रोड इनिशिएटिव के नाम से जाना जाता है. इसके जरिए चीन रेल मार्ग, रोड मार्ग, बंदरगाहों और हवाई अड्डों के माध्यम से एशिया को यूरोप और अफ्रीका से जोड़ना चाहता है. इससे वह दुनिया से अमेरिका के प्रभाव को भी खत्म करना चाहता है. भारत भी इस परियोजना का शुरू से विरोध करता रहा है और दुनिया के कई देश भी बीआरआई को लेकर चिंतित हैं. यह देश शुरू से ही चीन की इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं और पिछले दिनों भारत में जी20 के दौरान एक घोषणा करके बीआरआई का तोड़ निकाला गया.

भारत, अमेरिका, संयुक्त राज्य अमीरात, सऊदी अरब, यूरोपीय संघ, फ्रांस, इटली, जर्मनी, जॉर्डन और इजरायल ने मिलकर भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप आर्थिक कॉरिडोर की घोषणा से चीन को चौंका दिया. इस परियोजना को बीआरआई की काट के तौर पर देखा जा रहा है. भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप आर्थिक कॉरिडोर के तहत एक रेल नेटवर्क के माध्यम से मौजूदा समुद्री और सड़क परिवहन मार्गों को जोड़ा जाएगा. इस तरह से यह कई देशों के बीच व्यापार को बढ़ाने का एक आसान मार्ग मुहैया कराएगा. यह गलियारा दो भांगों में बंटा होगा, जिसमें पहला भारत को खाड़ी देशों से जोड़ने वाला पूर्वी गलियारा और दूसरा खाड़ी क्षेत्र को यूरोप से जोड़ने वाला उत्तरी गलियारा होगा. इस गलियारा में मध्य पूर्व से होकर गुजरने वाले रेल मार्ग से बिजली की केबल और स्वच्छ हाइड्रोजन पाइप लाइन बिछाने योजना भी शामिल है. एक तरह से यह गलियारा एशिया, यूरोप और मध्य पूर्व का परिवर्तनकारी एकीकरण करने में भी मददगार साबित हो सकता है.

यह कॉरिडोर चीन के लिए क्यों है चुनौती

दरअसल, यह आर्थिक गलियारा पीजीआईआई (partnership for global infrastructure and investment) नामक पहल का हिस्सा है. पीजीआईआई विकाशील देशों में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिए जी7 देशों की एक सहयोगात्मक पहल है. इसका मकसद वैश्विक स्तर पर सतत विकास प्रगति में तेजी लाने में मदद करना है. हालांकि इसे चीन के बीआरआई प्रोजेक्ट के काउंटर करने के तौर पर भी देखा जा रहा है. इसलिए जानकार मानते हैं कि इस भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप आर्थिक कॉरिडोर से भारत, अमेरिका और बाकी देश चीन के बीआरआई का मुकाबला करना चाहते हैं.

चीन की बीआरई और भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप आर्थिक कॉरिडोर दोनों का मकसद एक जैसा ही है, क्योंकि दोनों परियोजना में एशिया को यूरोप और अफ्रीका से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है. भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप आर्थिक कॉरिडोर परियोजना एक सकारात्मक रूप से आगे बढ़ती दिख रही है और इससे चीन परेशान है. ऐसा इसलिए भी है कि बीआरआई परियोजना में साल 2019 में शामिल होने वाला एकमात्र यूरोपीय देश इटली भी था, लेकिन उन्होंने भी जी20 के दौरान भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप आर्थिक कॉरिडोर में शामिल होने की बात कही है. इसके साथ ही इटली ने संकेत दिए हैं कि वह बीआरआई से भी अलग हो सकता है. हालांकि वह चीन से अपने रिश्तों को नुकसान पहुंचाए बिना बीआरआई से निकलने का रास्ता खोज रहे हैं. अमेरिका भी इटली से बीआरआई को छोड़ने के लिए दबाव बना रहा है.

इसके साथ ही भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप आर्थिक कॉरिडोर में दूसरे देशों को भी शामिल करने की योजना है, जिसमें अफ्रीकी देशों को भी शामिल किया जा सकता है. जी20 में अफ्रीकी संघ को स्थायी सदस्यता देकर चीन को इस क्षेत्र में एक सांकेतिक चुनौती दे दी गई है. वहीं भारत भी बीआरआई का हिस्सा नहीं था.

मिस्र को भी होगा नुकसान

जानकारों की माने तो इस कॉरिडोर के बनने से मिस्र को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा, क्योंकि इससे बनने से स्वेज नहर से होकर गुजरने वाली माल ढुलाई कम होगी और मिस्र की कमाई में भारी गिरावट दर्ज होने की संभावना है. दुनिया का कुल 10 फीसदी और तेल का सिर्फ 7 फीसदी स्वेज नहर के रास्ते से होता है. वर्तमान में स्वेज नहर को मिस्र कंट्रोल करता है, इसलिए यूरोप तक सामान पहुंचाने में स्वेज नहर की अहमियत काफी है. क्योंकि यह नहर एशिया को यूरोप से जोड़ती है. दुनियाभर में तेल का जिनता भी कारोबार होता है, उसका 7 फीसदी इसी नहर से किया जाता है. अनुमान है कि स्वेज नहर से हर दिन 50 से ज्यादा जहाज गुजरते हैं.

तुर्की भी विरोध में भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप आर्थिक कॉरिडोर का तुर्की ने भी विरोध किया है. तुर्की के राष्ट्रपति एर्गोदन ने कहा है कि कई देश रेड कॉरिडोर बनाकर अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार करने की कोशिश करने में लगे हैं. उन्होंने यह भी कहा कि तुर्की के बिना कोई कॉरिडोर बनना संभव नहीं है. हालांकि रूस ने इस कॉरिडोर का समर्थन किया है.

ईरान को भी होगा नुकसान भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप आर्थिक कॉरिडोर से सबसे अधिक नुकसान होने की संभावना ईरान को है. ईरान वर्तमान में मध्य पूर्व और यूरोप के बीच एक प्रमुख व्यापार केंद्र है. BMECEC के पूरा होने से ईरान के व्यापार मार्गों को प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा, जिससे उसकी व्यापार आय में कमी आ सकती है. इसके बनने से ईरान के प्रतिस्पर्धी देश सऊदी अरब लाभान्वित होगा.

इस परियोजना में संयुक्त अरब अमीरात, ओमान और एक साथ मिलकर काम करेंगे, जिससे इन सभी देशों को आर्थिक विकास और समृद्धि को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी. वहीं सदस्य देश एक दूसरे की सुरक्षा के लिए मिलकर काम कर सकते हैं. यह क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देने में मदद करेगा.

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