Kanwar Yatra 2025: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश सरकार के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें कांवड़ यात्रा मार्ग पर दुकानों और ढाबों में QR कोड लगाने का निर्देश दिया गया था। इस फैसले ने न केवल खाद्य सुरक्षा और पारदर्शिता के सवालों को उठाया, बल्कि निजता और धार्मिक भेदभाव जैसे संवेदनशील मुद्दों पर भी बहस छेड़ दी। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को कोई राहत नहीं दी और स्पष्ट किया कि सभी होटल और ढाबा मालिकों को वैधानिक नियमों के तहत लाइसेंस और पंजीकरण प्रमाणपत्र प्रदर्शित करना अनिवार्य होगा।
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार ने सावन के महीने में होने वाली कांवड़ यात्रा के दौरान मार्ग पर स्थित भोजनालयों, ढाबों और दुकानों को QR कोड लगाने का आदेश दिया था। इन QR कोड को स्कैन करने पर दुकान मालिकों का नाम, धर्म और अन्य जानकारी उपलब्ध होती थी। सरकार का तर्क था कि यह कदम तीर्थयात्रियों को खाद्य सुरक्षा और दुकानों की स्वच्छता के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए उठाया गया था। सरकार के अनुसार, यह व्यवस्था यात्रियों को सूचित निर्णय लेने में मदद करती है और खाद्य मानकों का अनुपालन सुनिश्चित करती है।
दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अपूर्वानंद झा, सामाजिक कार्यकर्ता आकार पटेल, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा और एनजीओ 'एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स' ने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि QR कोड के जरिए दुकानदारों की निजी जानकारी, विशेष रूप से उनके धर्म को उजागर करना, निजता के अधिकार का उल्लंघन है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यह आदेश धार्मिक आधार पर भेदभाव को बढ़ावा दे सकता है और सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुंचा सकता है। याचिकाकर्ताओं ने इसे सुप्रीम कोर्ट के 2024 के उस फैसले की अवमानना बताया, जिसमें दुकानदारों को अपनी पहचान सार्वजनिक करने के लिए मजबूर करने पर रोक लगाई गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, "हमें बताया गया है कि आज कांवड़ यात्रा का अंतिम दिन है। निकट भविष्य में इसके समाप्त होने की संभावना है। इसलिए इस समय हम केवल यह आदेश देते हैं कि सभी संबंधित होटल मालिक वैधानिक आवश्यकताओं के अनुसार लाइसेंस और पंजीकरण प्रमाणपत्र प्रदर्शित करें।" कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की आपत्तियों को खारिज करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश को बरकरार रखा और याचिका को समाप्त कर दिया। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि वह इस समय अन्य विवादित मुद्दों पर विचार नहीं कर रहा है।
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकारों के उस आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें कांवड़ यात्रा मार्ग पर दुकानदारों को अपने और अपने कर्मचारियों के नाम सार्वजनिक करने का निर्देश दिया गया था। कोर्ट ने तब कहा था कि दुकानदारों को केवल यह बताना होगा कि वे क्या खाना बेच रहे हैं, न कि अपनी पहचान उजागर करनी होगी। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि QR कोड का नया आदेश उसी भेदभावपूर्ण नीति को डिजिटल रूप में लागू करने की कोशिश है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने जहां एक ओर खाद्य सुरक्षा और पारदर्शिता को बढ़ावा देने के सरकार के दावे को मजबूती दी है, वहीं दूसरी ओर निजता और धार्मिक भेदभाव जैसे मुद्दों पर बहस को और तेज कर दिया है। यह फैसला भविष्य में इस तरह के नीतिगत निर्णयों के लिए एक मिसाल बन सकता है। क्या QR कोड जैसे उपाय वास्तव में पारदर्शिता बढ़ाते हैं या वे अनजाने में सामाजिक तनाव को बढ़ावा देते हैं? यह सवाल आने वाले समय में और गहराई से चर्चा का विषय बन सकता है।