Uddhav Thackeray: क्यों उद्धव ने एकला चलो का लिया फैसला? 5 फैक्टर से समझिए

Uddhav Thackeray - क्यों उद्धव ने एकला चलो का लिया फैसला? 5 फैक्टर से समझिए
| Updated on: 11-Jan-2025 03:31 PM IST

Uddhav Thackeray: विपक्षी गठबंधन इंडिया में टूट की खबरों के बीच उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) ने महाविकास अघाड़ी (एमवीए) को बड़ा झटका दिया है। शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय राउत के अनुसार बृहन्मुंबई नगरपालिका (बीएमसी) के आगामी चुनाव में शिवसेना (यूबीटी) अकेले मैदान में उतरेगी। यह पिछले पांच साल में पहली बार है जब शिवसेना (यूबीटी) कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार गुट) के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ेगी। 2019 में उद्धव ठाकरे, शरद पवार और कांग्रेस के बीच हुए गठबंधन से एमवीए का गठन किया गया था।

बीएमसी में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला क्यों?

बीएमसी चुनाव में उद्धव ठाकरे की शिवसेना का मुकाबला भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी से होगा। ऐसे में यह सवाल उठता है कि गठबंधन की बजाय उद्धव ठाकरे ने अकेले चुनाव लड़ने का रास्ता क्यों चुना है। इसके पीछे कई अहम वजहें मानी जा रही हैं। आइए जानते हैं कि बीएमसी चुनाव में शिवसेना (यूबीटी) ने "एकला चलो" की नीति क्यों अपनाई है।

1. शरद पवार को लेकर अनिश्चितता

महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है। 2024 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद यह स्पष्ट नहीं है कि शरद पवार और अजित पवार के बीच क्या समीकरण बने रहेंगे। राजनीतिक गलियारों में दो चर्चाएं जोर पकड़ रही हैं। पहली, शरद पवार और अजित पवार एक हो सकते हैं। दूसरी, एनसीपी के ज्यादातर नेता अजित पवार के साथ जा सकते हैं और शरद पवार के पास केवल कुछ वरिष्ठ नेता ही बच सकते हैं।

यदि अंतिम समय में एनसीपी में कोई बदलाव होता है, तो इसका सीधा असर शिवसेना (यूबीटी) के प्रदर्शन पर पड़ेगा। इसलिए उद्धव ठाकरे ने जोखिम उठाने की बजाय अभी से अपना अलग रास्ता चुनने का निर्णय लिया है।

2. कांग्रेस का सुस्त रवैया

कांग्रेस का चुनावी निर्णय लेने में सुस्ती शिवसेना (यूबीटी) के लिए चिंता का विषय रही है। विधानसभा चुनावों में भी अंतिम समय तक सीटों के बंटवारे को लेकर विवाद बना रहा। इसके चलते दोनों दलों को नुकसान हुआ और कांग्रेस केवल 16 सीटों पर सिमट गई।

शिवसेना (यूबीटी) के नेता अंबादास दानवे और संजय राउत पहले ही कांग्रेस के धीमे फैसले लेने की आलोचना कर चुके हैं। हार के बाद कांग्रेस ने संगठनात्मक बदलाव की बात कही थी, लेकिन अभी तक इसे अमल में नहीं लाया गया है। इस वजह से उद्धव ने बीएमसी में अपनी रणनीति को स्वतंत्र रूप से लागू करने का फैसला किया है।

3. बीएमसी में सीट शेयरिंग की चुनौती

बृहन्मुंबई नगरपालिका पर शिवसेना का साल 1995 से नियंत्रण रहा है। हालांकि, पार्टी में विभाजन के बाद भी मुंबई में उद्धव ठाकरे का मजबूत जनाधार बरकरार है। बीएमसी की 236 सीटों में से पिछली बार उद्धव की पार्टी ने 84 सीटें जीती थीं।

अगर एमवीए के साथ मिलकर चुनाव लड़ा जाता तो सीट शेयरिंग का मसला बड़ा मुद्दा बन सकता था। सीट शेयरिंग के कारण कई मजबूत दावेदारों को टिकट नहीं मिल पाता और वे बीजेपी या एकनाथ शिंदे की पार्टी में जा सकते थे। यही वजह है कि उद्धव ने बीएमसी में सभी सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया।

4. हिंदुत्व के मुद्दे को धार देने की रणनीति

शिवसेना की राजनीति मराठी मानुष और हिंदुत्व के मुद्दों पर आधारित रही है। मुंबई और उसके आसपास के इलाकों में इन मुद्दों का असर दिखता है। महाविकास अघाड़ी में रहते हुए उद्धव ठाकरे हिंदुत्व के मुद्दों पर खुलकर नहीं बोल पा रहे थे।

हाल ही में बाबरी विध्वंस की बरसी पर उद्धव के करीबी मिलिंद नार्वेकर ने एक पोस्ट साझा की थी, जिस पर कांग्रेस के अल्पसंख्यक नेताओं ने नाराजगी जताई थी। गठबंधन से अलग होकर उद्धव अब हिंदुत्व के मुद्दों को और धार देने की कोशिश करेंगे।

5. भविष्य की सियासत के लिए स्वतंत्रता

उद्धव ठाकरे ने हाल ही में कहा था कि राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता। बीएमसी में अकेले लड़कर शिवसेना (यूबीटी) भविष्य की राजनीति के लिए अपने विकल्प खुले रखना चाहती है। अगर बीएमसी में शिवसेना (यूबीटी) का प्रदर्शन बेहतर रहता है तो पार्टी किसी भी राजनीतिक दल के साथ नए गठबंधन पर विचार कर सकती है।

पिछले कुछ समय में उद्धव ठाकरे और देवेंद्र फडणवीस के बीच मुलाकातें हुई हैं। इसके बाद बीजेपी और उद्धव की शिवसेना के बीच गठबंधन की अटकलें भी लगाई जा रही हैं। अकेले चुनाव लड़ने का फैसला शिवसेना (यूबीटी) को भविष्य में राजनीतिक फैसले लेने की स्वतंत्रता भी देगा।

निष्कर्ष

उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) का बीएमसी चुनाव में अकेले उतरने का फैसला कई राजनीतिक और रणनीतिक पहलुओं से जुड़ा है। शरद पवार की स्थिति को लेकर अनिश्चितता, कांग्रेस के सुस्त रवैये और हिंदुत्व के मुद्दे पर खुलकर राजनीति करने की जरूरत ने उद्धव को यह कदम उठाने के लिए मजबूर किया है। उद्धव ठाकरे का यह निर्णय मुंबई की राजनीति और आगामी लोकसभा एवं विधानसभा चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। बीएमसी चुनाव का परिणाम तय करेगा कि उद्धव का यह फैसला कितना कारगर साबित होता है।

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