बिजनेस / पिछले 5 साल में 26 सरकारी बैंकों की 3,427 बैंक शाखाएं खत्म हुईं, RTI में हुआ बड़ा खुलासा

India TV : Nov 04, 2019, 12:32 PM
इंदौर | सूचना के अधिकार (आरटीआई) से खुलासा हुआ है कि बीते पांच वित्तीय वर्षों के दौरान विलय या शाखाबंदी की प्रक्रिया से सार्वजनिक क्षेत्र के 26 सरकारी बैंकों की कुल 3,427 बैंक शाखाओं का मूल अस्तित्व प्रभावित हुआ है। आशंका जताई जा रही है कि 10 बड़े बैंकों को मिलाकर चार बड़े बैंक बनाने की योजना से सात हजार शाखाओं पर बंद होने का खतरा होगा। सबसे खास बात यह है कि पिछले पांच साल में सरकारी बैंकों की जो शाखाएं प्रभावित हुई हैं इनमें से 75 प्रतिशत शाखाएं देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की हैं। इस दौरान एसबीआई में इसके पांच सहयोगी बैंकों और भारतीय महिला बैंक का विलय हुआ है।

यह जानकारी आरटीआई के जरिए ऐसे वक्त सामने आई है, जब देश के 10 सरकारी बैंकों को मिलाकर इन्हें चार बड़े बैंकों में तब्दील करने की सरकार की नई योजना पर काम शुरू हो चुका है। आरटीआई कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ ने भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से जो जानकारी हासिल की उसके मुताबिक, देश के 26 सरकारी बैंकों की वित्तीय वर्ष 2014-15 में 90 शाखाएं, 2015-16 में 126 शाखाएं, 2016-17 में 253 शाखाएं, 2017-18 में 2,083 बैंक शाखाएं और 2018-19 में 875 शाखाएं या तो बंद कर दी गईं या इन्हें दूसरी बैंक शाखाओं में मर्ज कर दिया गया।

नहीं बताई गई है वजह

आरटीआई अर्जी पर मिले जवाब के अनुसार बीते 5 वित्तीय वर्षों में विलय या बंद होने से एसबीआई की सर्वाधिक 2,568 बैंक शाखाएं प्रभावित हुईं। आरटीआई कार्यकर्ता ने सरकारी बैंकों की शाखाओं को बंद किए जाने का सबब भी जानना चाहा था। लेकिन उन्हें जवाब नहीं मिला। इस प्रश्न पर केंद्रीय बैंक ने आरटीआई कानून के सम्बद्ध प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा कि मांगी गई जानकारी एक सूचना नहीं, बल्कि एक 'राय' है।

इन बैंकों का हुआ है विलय

आरबीआई ने बताया कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के साथ भारतीय महिला बैंक, स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर ऐंड जयपुर, स्टेट बैंक ऑफ हैदराबाद, स्टेट बैंक ऑफ मैसूर, स्टेट बैंक ऑफ पटियाला और स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर का विलय एक अप्रैल 2017 से प्रभावी हुआ था। इसके अलावा, बैंक ऑफ बड़ौदा में विजया बैंक और देना बैंक का विलय 1 अप्रैल 2019 से अमल में आया था।

'10 और बैंकों के विलय से प्रभावित होंगी 7 हजार शाखाएं'

इस बीच, सार्वजनिक बैंकों के कर्मचारी संगठनों ने इनके विलय को लेकर सरकार की नई योजना का विरोध तेज कर दिया है। अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ (एआईबीईए) के महासचिव सीएच वेंकटचलम ने से कहा, 'अगर सरकार देश के 10 सरकारी बैंकों को मिलाकर चार बड़े बैंक बनाती है, तो इन बैंकों की कम से कम 7,000 शाखाएं प्रभावित हो सकती हैं। इनमें से अधिकांश शाखाएं महानगरों और शहरों की होंगी।' उन्होंने आशंका जताते हुए कहा कि विलय के बाद संबंधित बैंकों का कारोबार इसलिए घटेगा क्योंकि आमतौर पर देखा गया है कि किसी बैंक शाखा के बंद होने या इसके किसी अन्य शाखा में विलीन होने के बाद ग्राहकों का उससे आत्मीय जुड़ाव समाप्त हो जाता है। 

'बैंकों का मर्जर समय की मांग'

बहरहाल, अर्थशास्त्री जयंतीलाल भंडारी की राय है कि सार्वजनिक बैंकों का विलय समय की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, 'छोटे सरकारी बैंकों को मिलाकर बड़े बैंक बनाने से सरकारी खजाने को फायदा होगा। इसके अलावा, बड़े सरकारी बैंक अपनी सुदृढ़ वित्तीय स्थिति के कारण आम लोगों को अपेक्षाकृत ज्यादा कर्ज बांट सकेंगे जिससे देश में आर्थिक गतिवधियां होंगी।'

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