कोरोना संकट / तीसरी लहर बच्चों को प्रभावित कर सकती है, इसके लिए योजना बनाने की ज़रूरत: सुप्रीम कोर्ट

Zoom News : May 07, 2021, 06:57 AM
नयी दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि देश को कोविड-19 की तीसरी लहर के लिए तैयार रहने की आवश्यकता है जिसके बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि यह अधिक खतरनाक हो सकती है, खासकर बच्चों के लिए। इसने ऑक्सीजन का ‘बफर स्टॉक’ तैयार किए जाने पर जोर दिया।

इसने केंद्र से कहा कि वह अगले आदेशों तक दिल्ली की 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन आपूर्ति में कमी न करे तथा समूचे देश की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए कवायद को तर्कसंगत बनाना सुनिश्चित करे।

शीर्ष अदालत ने कहा कि कोविड-19 रोगियों के उपचार के प्रयासों के बावजूद दिल्ली में लोग मर रहे हैं और इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अनेक लोगों की मौत प्राणवायु (ऑक्सीजन) की कमी की वजह से हुई है।

न्यायालय ने केंद्र और दिल्ली सरकार को स्पष्ट किया कि वह देश की शीर्ष अदालत को दोनों के बीच दोषारोपण का आधार नहीं बनने देगा क्योंकि दोनों सरकार ऑक्सीजन के आवंटन और आपूर्ति के मुद्दे पर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने में व्यस्त हैं।

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने कहा, ‘‘हमें कोविड-19 की तीसरी लहर के लिए तैयार रहने की आवश्यकता है जिसके कुल मिलाकर अलग मापदंड हो सकते हैं। हमें उसके लिए तैयार रहना होगा। हमने पढ़ा है कि कुछ विशेषज्ञों ने कहा है कि तीसरी लहर अधिक हानिकारक होगी, खासकर बच्चों के लिए।’’

पीठ ने कहा, ‘‘हम मानते हैं कि बड़ों की तुलना में बच्चों में बीमारी से उबरने की अधिक क्षमता है, लेकिन हमें यह भी विचार करना होगा कि वे स्वयं अस्पताल नहीं जाएंगे और यदि उनके माता-पिता उन्हें ले जाएंगे तो उनके लिए जोखिम उत्पन्न होगा।’’

न्यायालय ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और दिल्ली सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा को चेतावनी दी कि देश की शीर्ष संवैधानिक अदालत होने के नाते उच्चतम न्यायालय खुद को आरोप-प्रत्यारोप का केंद्र नहीं बनने देगा।

पीठ ने मेहरा से कहा, ‘‘हम यह स्पष्ट कर रहे हैं कि यह कोई विरोधात्मक वाद नहीं है। हम इस अदालत को दोनों सरकारों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का केंद्र नहीं बनने देंगे। हम न तो दिल्ली सरकार के खिलाफ और न ही केंद्र सरकार के खिलाफ आरोप लगाने की अनुमति देंगे। हम सब यह चाहते हैं कि हर किसी को सहयोगात्मक तरीके से काम करना चाहिए।’’

मेहरा ने कहा कि शीर्ष अदालत के निर्देश के बावजूद केंद्र दिल्ली को 730 मीट्रिक टन ऑक्सीजन देने के एक दिन बाद भी उसकी मांग के अनुरूप आवश्यक ऑक्सीन देने में विफल रहा है।

शुरू में, मेहता ने कहा कि केंद्र ने शीर्ष अदालत के निर्देश का पालन किया है और 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन देने के आदेश की जगह दिल्ली को कोविड-19 रोगियों के उपचार के लिए बुधवार को 730 मीट्रिक टन ऑक्सीजन दी गई।

उन्होंने कहा कि चार मई को दिल्ली के 56 बड़े अस्पतालों में एक बड़ा सर्वेक्षण किया गया और इसमें खुलासा हुआ कि उनके पास तरल चिकित्सीय ऑक्सीजन का महत्वपूर्ण मात्रा में भंडार है।

मेहता ने कहा कि दिल्ली लाए गए ऑक्सीजन टैंकरों को उतारने में काफी समय लग रहा है।

उन्होंने कहा कि यदि केंद्र दिल्ली को 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन देना जारी रखता है तो यह दूसरे राज्यों को समान वितरण से वंचित करेगा क्योंकि 700 मीट्रिक टन की मांग सही नहीं है।

पीठ ने कहा कि लोग और अस्पताल सोशल मीडिया पर त्राहिमाम संदेश दे रहे हैं कि उनके पास काफी सीमित मात्रा में ऑक्सीजन बची है या यह खत्म हो रही है जिससे डर की स्थिति उत्पन्न हो रही है।

इसने मेहता से कहा, ‘‘लोग और यहां तक कि राष्ट्रीय राजधानी के कुछ बड़े अस्पताल भी ऑक्सीजन आपूर्ति की कमी के बारे में त्राहिमाम संदेश भेज रहे हैं। आप ‘बफर स्टॉक’ तैयार क्यों नहीं कर रहे? यदि आप दावा करते हैं कि दिल्ली 700 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का इस्तेमाल नहीं कर रही है और उसे केवल 490 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की आवश्यकता है तो इस अतिरिक्त 200 मीट्रिक टन का इस्तेमाल ‘बफर स्टॉक’ बनाने में किया जा सकता है।’’

न्यायालय ने कहा कि एक केंद्रीकृत ‘बफर स्टॉक’ होना चाहिए ताकि जैसे ही किसी अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी हो, वह तत्काल ऑक्सीजन आपूर्ति के लिए संपर्क कर सके जिससे हजारों लोगों का जीवन बचाया जा सकता है और भय की स्थिति से बचा जा सकता है।

मेहता ने कहा कि देश में चिकित्सीय ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है, लेकिन किसी पर आरोप लगाए बिना, प्राणवायु के आंतरिक वितरण में दिल्ली सरकार के प्रयासों में कुछ कमी है।

उन्होंने सुझाव दिया कि देश में ऑक्सीजन की आपूर्ति और मांग का लेखा-जोखा तैयार किया जा सकता है जिससे असली तस्वीर साफ हो जाएगी कि किस राज्य को कितनी ऑक्सीजन की आवश्यकता है और उसे कितनी आवंटित की जाती है।

न्यायालय ने कहा, ‘‘आपके (केंद्र) ऑक्सीजन आवंटन के फॉर्मूले को गंभीरता से दुरुस्त किए जाने की आवश्यकता है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि लोगों की मौत ऑक्सीजन की कमी की वजह से नहीं हुई है। हम इसे स्वीकार करते हैं कि सभी मौत ऑक्सीजन की कमी की वजह से नहीं हुई हैं, लेकिन फिर भी बहुत लोगों की मौत हुई है। यह एक तथ्य है।’’

न्यायालय ने मेहता से पूछा, ‘‘क्या केंद्र सरकार होने के नाते आपने यह जानने के लिए कोई तंत्र तैयार किया है कि ऑक्सीजन का वितरण कैसे किया जा रहा है? क्या आपने कभी जांच की है कि इसकी कालाबाजारी नहीं हो रही और यह अस्पताल पहुंची है या नहीं? क्या आपने कोई जवाबदेही तय की है?’’

सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि स्वास्थ्य राज्य से जुड़ा विषय है और वही तय करते हैं कि ऑक्सीजन का वितरण कैसे हो और कितना वितरण किया जाए।

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