Mission 2024 / बीजेपी जुटी कमजोर दुर्गों को मजबूत करने में, एनडीए को मिल सकते हैं नए दल

Zoom News : Jul 01, 2023, 01:52 PM
Mission 2024: लोकसभा चुनाव में अभी भले ही दस महीने बाकी हों, लेकिन सियासी दल अपने-अपने समीकरण और गठजोड़ बनाने में जुट गए हैं. 2024 की राजनीतिक बिसात पर विपक्षी दल एकजुट होकर पीएम मोदी को सत्ता से बाहर करने का तानाबाना बुन रहे हैं तो बीजेपी भी अपने कमजोर दुर्गों को मजबूत करने में लग गई है. एनडीए का साथ छोड़कर गए दलों की ‘घर वापसी’ कराकर बीजेपी ने अपना कुनबा बढ़ाने की कोशिशें तेज कर दी. एनडीए से जुड़ने वाले नए सहयोगियों को मोदी कैबिनेट में एंट्री दिए जाने की तैयारी है ताकि विपक्षी एकता को बेअसर किया जा सके?

2024 की चुनावी जंग फतह करने से लिए बीजेपी देशभर की 543 लोकसभा सीटों को तीन सेक्टर्स में बांटा-नार्थ-साउथ-ईस्टन के बीच. तीनों ही सेक्टर्स की बैठक अगले सप्ताह बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा करेंगे, लेकिन उससे पहले पीएम मोदी सोमवार को मंत्रिपरिषद की मीटिंग लेंगे. ऐसे में मोदी कैबिनेट में भी फेरबदल की चर्चा तेज है तो बीजेपी संगठन से लेकर गठबंधन तक नई धार देने की तैयारी है. इस तरह ओमप्रकाश राजभर से लेकर चंद्रबाबू नायडू और सुखबीर बादल को फिर से एनडीए कुनबे में लाने की कवायद की जा रही है.

दक्षिण में TDP-JDS से दोस्ती

बीजेपी के लिए 2024 में सबसे ज्यादा चुनौती दक्षिण भारत में है. 2019 में बीजेपी कर्नाटक और तेलंगाना के अलावा किसी भी साउथ के राज्य में खाता भी नहीं खोल सकी थी और अब तो कर्नाटक में भी चिंता बढ़ गई है. बीजेपी तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी के साथ गठबंधन की बात चल रही है. बीजेपी और टीडीपी के बीच 20 साल पुरानी दोस्ती 2018 में टूट गए थी. अब फिर से टीडीपी और बीजेपी साथ आ रहे हैं, जिसे लेकर दोनों पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व के बीच सहमति बन गई है. तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में बीजेपी को टीडीपी के रूप में एक मजबूत साथ मिल सकता है.

तेलंगाना 17 और आंध्र प्रदेश में 25 लोकसभा सीटें है. इस तरह से 42 लोकसभा की सीटें हो रही है, जिनमें से बीजेपी के पास सिर्फ 4 सीट हैं. आंध्र प्रदेश में बीजेपी अपना खाता भी नहीं खोल सकी थी जबकि तेलंगाना में ही उसे चार सीटें मिली थी. ऐसे में टीडीपी के साथ आने से एनडीए मजबूत होगा. तेलंगाना में केसीआर और आंध्र प्रदेश में वाईएसआर के साथ मुकाबला कर सकता है. लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव भी होने हैं, जिस लिहाज से बीजेपी के लिए टीडीपी के साथ गठबंधन और भी अहम हो जाता है.

कर्नाटक की सत्ता गंवाने के बाद बीजेपी के लिए 2024 में राह आसान नहीं है, क्योंकि कांग्रेस लोकलुभाने वादे को अमलीजामा पहनाने में और सियासी समीकरण को मजबूती के साथ जोड़े रखने पर काम कर रही है. इसी तरह जेडीएस के लिए भी चुनौती है. कर्नाटक में बीजेपी और जेडीएस फिर से उभरने की कवायद में जुटे हैं, जिसके चलते दोनों दल साथ आ सकते हैं. विपक्षी एकता से जेडीएस दूरी बनाए हुए हैं, जिसके चलते उसके एनडीए में आने की चर्चा भी तेज है. बीजेपी का जेडीएस से गठबंधन हो जाता है तो कर्नाटक में कांग्रेस से मुकाबला किया जा सकता है.

अकाली दल की क्या होगी वापसी?

पंजाब की सियासत में आम आदमी पार्टी के उदय होने के बाद विपक्षी दलों के लिए सियासी चुनौतियां खड़ी हो गई हैं. किसान आंदोलन के दौरान शिरोमणि अकाली दल ने बीजेपी के साथ 25 साल पुरानी दोस्ती तोड़ ली थी, जिसका खामियाजा दोनों को भुगतना पड़ रहा है. पंजाब में 13 लोकसभा सीटें हैं, जो बीजेपी और 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए काफी अहम है. कृषि कानून को मोदी सरकार पहले ही वापस ले चुकी है, जिसके चलते अकाली दल के लिए बीजेपी के साथ आने में किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं होगी. प्रकाश सिंह बादल के निधन पर जिस तरह से पीएम मोदी पहुंचे और दुख जताया, उससे साफ है कि 2024 में बीजेपी और अकाली दल के साथ आने का रास्ता बना सकता है?

राजभर एनडीए से जुड़ सकते?

विपक्षी एकता को देखते हुए बीजेपी का पूरा फोकस उत्तर प्रदेश में है. सूबे की सभी 80 लोकसभा सीटें जीतने का टारगेट तय कर रखा है, जिसे पूरा करने के लिए बीजेपी अपने दुर्ग को पूरी तरह से मजबूत कर लेना चाहती है. 2022 में राजभर के सपा के साथ जाने का खामियाजा बीजेपी के पूर्वांचल के आजमगढ़, जौनपुर, गाजीपुर, मऊ और बेडकरनगर जिले में उठाना पड़ा है. हालांकि, यूपी चुनाव के बाद ही राजभर ने सपा से नाता तोड़ लिया है और अखिलेश यादव पर हमलावर है और बीजेपी पर नरम है. राष्ट्रपति चुनाव से लेकर राज्यसभा चुनाव में राजभर बीजेपी के अगुवाई वाले एनडीए के साथ खड़े नजर आए हैं. ऐसे में बीजेपी को 2024 में राजभर का साथ मिल सकता है.

चिराग से एनडीए होगा रौशन?

बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान ही चिराग पासवान ने एनडीए से अलग हो गए थे, जिसके चलते उनकी पार्टी दो गुटों में बट गई. पांच सांसदों के साथ उनके चाचा पशुपति पारस एनडीए का हिस्सा हैं, लेकिन अब बीजेपी की कोशिश चाचा-भतीजे के बीच समझौता कराकर चिराग पासवान की एनडीए में वापसी कराने की है. बिहार उपचुनाव में चिराग पासवान बीजेपी का साथ दे चुके हैं, जिसके संकेत साफ है कि एनडीए में वापसी करना चाहते हैं.

वहीं, महागठबंधन से अलग हुए जीतनराम मांझी भी एनडीए का हिस्सा बनने जा रही है, जिस पर मुहर लग चुकी है. ऐसे ही जेडीयू से नाता तोड़कर अपनी पार्टी बनाने वाले उपेंद्र कुशवाहा के भी बीजेपी के साथ आने की चर्चा है. वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी भी बिहार की सियासत में अलग-थलग पड़ हुए हैं, जिनके भी एनडीए में फिर से आने के कयास लगाए जा रहे हैं. इसे लेकर मुकेश सहनी संकेत भी दे चुके हैं.

महाराष्ट्र को मजबूत करने की कवायद

महाराष्ट्र की राजनीति में बीजेपी अपनी सियासी जड़ों को मजबूत करने में लगी है, क्योंकि विपक्षी गठबंधन में एनसीपी-कांग्रेस-शिवसेना (उद्धव गुट) एक साथ है. ऐसे में बीजेपी और एकनाथ शिंद की शिवसेना जरूर साथ है, लेकिन 2024 में विपक्ष को चुनौती देने के लिए यह काफी नहीं है. ऐसे में माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले मोदी कैबिनेट में एकनाथ शिंदे गुट के नेताओं को जगह मिल सकती है. शिंदे दिल्ली दौर पर बीजेपी शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात भी कर रहे हैं. इसके अलावा चिराग पासवान की एनडीए में वापसी होती है तो उन्हें भी कैबिनेट में शामिल किया जा सकता है.

बीजेपी क्यों बढ़ा रही कुनबा?

2024 का लोकसभा चुनाव बीजेपी के लिए काफी अहम माना जा रहा है. नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार चुनाव जंग फतह कर इतिहास रचना चाहते हैं, नेहरू के बाद आजतक किसी भी नेता ने लगातार तीन चुनाव नहीं जीते हैं. बीजेपी के इस मंसूबों पर पानी फेरने के लिए विपक्षी भी तैयार है और एकजुट होकर चुनावी रण में उतरने की तैयारी कर रखा है, जिसकी बैठक पटना के बाद बेंगलुरु में होने वाली है. बीजेपी के खिलाफ विपक्ष वन-टू-वन फाइट करना चाहता है, जिसे देखते हुए बीजेपी अपने कमजोर दुर्ग को मजबूत करने की कवायद में जुट गई है. नार्थ से लेकर साउथ तक बीजेपी अपने गठबंधन में नए सहयोगियों को शामिल कराना चाहती है?

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