Share Market News / तीन महीने बाद भारतीय शेयर बाजार में FIIs की रिकॉर्ड वापसी, एक दिन में 10300 करोड़ का निवेश

तीन महीने के सन्नाटे के बाद विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) ने भारतीय शेयर बाजार में धमाकेदार वापसी की है। 28 अक्टूबर को FIIs ने एक दिन में ₹10,300 करोड़ का रिकॉर्ड निवेश किया, जो जून के बाद सबसे बड़ा है। यह निवेश बाजार में एक नए ट्रेंड की शुरुआत का संकेत हो सकता है।

भारतीय शेयर बाजार में तीन महीने के लंबे अंतराल के बाद विदेशी संस्थागत। निवेशकों (FIIs) ने जबरदस्त वापसी की है, जिससे बाजार में उत्साह का माहौल है। 28 अक्टूबर को FIIs ने एक ही दिन में लगभग ₹10,339. 80 करोड़ की नेट खरीदारी की, जो 26 जून के। बाद किसी एक दिन में की गई सबसे बड़ी खरीदारी है। अक्टूबर महीने में अब तक उनका कुल निवेश लगभग ₹10,040 करोड़ तक पहुंच गया है और यह आंकड़ा न केवल निवेशकों का ध्यान खींच रहा है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा कर रहा है कि क्या यह सिर्फ एक दिन का उछाल है या भारतीय बाजार में विदेशी निवेश के रुझान में एक बड़ा बदलाव आने वाला है। बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि इस रिकॉर्ड खरीदारी के पीछे कई महत्वपूर्ण कारक जिम्मेदार हैं। पहला और सबसे तात्कालिक कारण चुनिंदा शेयरों में हुई कुछ बड़ी 'ब्लॉक' खरीदारी थी, जिसने कुल निवेश के आंकड़े को काफी बढ़ा दिया। दूसरा, डेरिवेटिव्स बाजार में एक्सपायरी वाले दिन (फ्यूचर्स/ऑप्शन्स) जून एक्सपायरी की तर्ज पर बड़ी पोजीशन। ली गई, हालांकि अतीत में ऐसे मौकों पर अगले दिन बिकवाली भी देखी गई है। तीसरा, अक्टूबर सीरीज में FII के लॉन्ग-शॉर्ट अनुपात में एक उल्लेखनीय सुधार आया है, जो उनकी बढ़ती सकारात्मक धारणा को दर्शाता है और इन कारकों ने मिलकर एक दिन में इतनी बड़ी खरीदारी को संभव बनाया है, जो भारतीय इक्विटी के प्रति उनकी बढ़ती रुचि का संकेत देता है।

वैश्विक और घरेलू कारक जो आकर्षित कर रहे हैं

विदेशी निवेशकों को फिर से भारतीय बाजार की ओर आकर्षित करने में वैश्विक और घरेलू दोनों तरह के कारकों की भूमिका है। अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व की आगामी बैठकों से पहले दरों में कटौती की उम्मीदें बढ़ रही हैं। यदि फेड 25 बेसिस पॉइंट की दर में कटौती करता है, तो डॉलर कमजोर हो सकता है, जिससे उभरते बाजारों, विशेषकर भारत जैसे देशों में इक्विटी और धातुओं को फायदा होगा। यह स्थिति विदेशी निवेशकों के लिए भारत को और आकर्षक बनाएगी। इसके अतिरिक्त, पिछले कुछ महीनों में भारतीय रुपये की स्थिति में सुधार हुआ है। डॉलर की मजबूती के बावजूद, भारतीय रुपया काफी हद तक स्थिर या मजबूत रहा है, जिससे विदेशी निवेशकों के लिए मुद्रा जोखिम कम होता है और वे भारतीय परिसंपत्तियों में निवेश के प्रति अधिक इच्छुक होते हैं। **क्या यह एक स्थायी बदलाव है या क्षणिक उछाल? यह कहना अभी जल्दबाजी होगी कि यह निवेश का रुझान स्थायी है या नहीं। बाजार विशेषज्ञ सावधानी बरतने की सलाह देते हैं, क्योंकि ऐतिहासिक रूप से, एक्सपायरी के आसपास देखी गई बड़ी विदेशी खरीदारी अक्सर अगले कारोबारी दिन में बिकवाली में बदल जाती है। यह 'एक-दिन का जलवा' भी हो सकता है, जैसा कि जून में भी देखा गया था। हालांकि, यदि कुछ प्रमुख स्थितियाँ बनी रहती हैं, तो यह वास्तव में एक स्थायी बदलाव का संकेत हो सकता है। इनमें विदेशी निवेशकों द्वारा नियमित और बढ़ती हुई शुद्ध खरीदारी, भारतीय कंपनियों के आय और कॉर्पोरेट प्रदर्शन में निरंतर सुधार, अमेरिकी ब्याज। दरों में संभावित कटौती, डॉलर की कमजोरी, उभरते बाजारों की वापसी और भारतीय अर्थव्यवस्था, रुपये तथा नीतिगत माहौल में स्थिरता शामिल हैं। इन कारकों का दीर्घकालिक प्रभाव ही बताएगा कि क्या यह एक नया निवेश चक्र शुरू हो रहा है।