- भारत,
- 11-Oct-2019 04:34 PM IST
- (, अपडेटेड 11-Oct-2019 04:34 PM IST)
पानीपत | हरियाणा में 1967 से अब तक 12 विधानसभा चुनाव हुए हैं। हर चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार भी बड़ी संख्या में उतरते हैं। लेकिन, जीत बहुत कम को मिली है। चुनाव परिणामों के विश्लेषण में यह सामने आया कि अब तक निर्दलीय प्रत्याशियों की जीत का आंकड़ा अधिकतम 6 प्रतिशत तक ही सिमटकर रहा है। इसके उलट जमानत जब्त कराने वाले आंकड़े भी चौंकाने वाले रहे।
निर्दलीयों के पाला बदल का सबसे बड़ा उदाहरण1982 में इंडियन नेशनल कांग्रेस को 35, लोकदल को 31 सीटें मिली, वहीं निर्दलीय उम्मीदवारों का समूह तीसरे नंबर पर था। इनमें से 6 को साथ मिलाने के अलावा अपने सहयोगियों के दम पर चौ. देवी लाल ने सरकार बनाने के लिए दावा पेश कर दिया, लेकिन हैरानी उस वक्त हुई, वो सभी निर्दलीय भजन लाल के खेमे में जा खड़े हो गए और सरकार में मंत्री बन बैठे। दलबदल की राजनीति का राज्य में अब तक यह सबसे बड़ा उदाहरण माना जाता है।एक रोचक पहलू यह भीएक रोचक पहलू यह भी है कि वर्ष 2000 में पहली बार किसी क्षेत्रीय पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला, जब ओम प्रकाश चौटाला के नेतृत्व में इंडियन नेशनल लोकदल की सरकार बनी थी। इसके बाद 2005 और 2009 में कांग्रेस से भूपेंद्र सिंह हुड्डा मुख्यमंत्री रहे। वहीं, अगर बात करें हाल ही में खत्म हुए हरियाणा की भाजपा सरकार के कार्यकाल की तो यह भी राष्ट्रीय पार्टी का नेतृत्व ही है। इससे पहले एक मौका ऐसा भी रहा, जब क्षेत्रीय पार्टी आईसीजे (बीजी) के 19 प्रत्याशियों में से एक भी जमानत बचाने में कामयाब नहीं हो पाया।
निर्दलीयों के पाला बदल का सबसे बड़ा उदाहरण1982 में इंडियन नेशनल कांग्रेस को 35, लोकदल को 31 सीटें मिली, वहीं निर्दलीय उम्मीदवारों का समूह तीसरे नंबर पर था। इनमें से 6 को साथ मिलाने के अलावा अपने सहयोगियों के दम पर चौ. देवी लाल ने सरकार बनाने के लिए दावा पेश कर दिया, लेकिन हैरानी उस वक्त हुई, वो सभी निर्दलीय भजन लाल के खेमे में जा खड़े हो गए और सरकार में मंत्री बन बैठे। दलबदल की राजनीति का राज्य में अब तक यह सबसे बड़ा उदाहरण माना जाता है।एक रोचक पहलू यह भीएक रोचक पहलू यह भी है कि वर्ष 2000 में पहली बार किसी क्षेत्रीय पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला, जब ओम प्रकाश चौटाला के नेतृत्व में इंडियन नेशनल लोकदल की सरकार बनी थी। इसके बाद 2005 और 2009 में कांग्रेस से भूपेंद्र सिंह हुड्डा मुख्यमंत्री रहे। वहीं, अगर बात करें हाल ही में खत्म हुए हरियाणा की भाजपा सरकार के कार्यकाल की तो यह भी राष्ट्रीय पार्टी का नेतृत्व ही है। इससे पहले एक मौका ऐसा भी रहा, जब क्षेत्रीय पार्टी आईसीजे (बीजी) के 19 प्रत्याशियों में से एक भी जमानत बचाने में कामयाब नहीं हो पाया।
