- भारत,
- 13-Sep-2025 08:30 AM IST
United Nations: संयुक्त राष्ट्र महासभा में शुक्रवार को एक ऐतिहासिक फैसला लिया गया, जिसमें भारत समेत 142 देशों ने फिलिस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देने और इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष को समाप्त करने के लिए दो-राष्ट्र समाधान (Two-State Solution) का समर्थन किया। इस प्रस्ताव, जिसे 'न्यूयॉर्क डिक्लेरेशन' के नाम से जाना जा रहा है, को 142 वोटों के समर्थन के साथ मंजूरी दी गई, जबकि 10 देशों ने इसका विरोध किया और 12 देशों ने मतदान से दूरी बनाए रखी। यह प्रस्ताव दशकों पुराने इस जटिल विवाद को हल करने के लिए एक चरणबद्ध योजना प्रस्तुत करता है।
न्यूयॉर्क डिक्लेरेशन क्या है?
न्यूयॉर्क डिक्लेरेशन फ्रांस और सऊदी अरब की अगुवाई में तैयार किया गया एक प्रस्ताव है, जिसका आधार जुलाई में आयोजित एक उच्च-स्तरीय सम्मेलन में रखा गया था। इस सम्मेलन का उद्देश्य दो-राष्ट्र समाधान को लागू करने के लिए ठोस कदम उठाना था। डिक्लेरेशन में निम्नलिखित प्रमुख बिंदु शामिल हैं:
गाजा में युद्धविराम और प्रशासन हस्तांतरण: प्रस्ताव में गाजा में तत्काल युद्धविराम की मांग की गई है, जिसके बाद पूरे फिलिस्तीनी क्षेत्र का प्रशासन फिलिस्तीनी अथॉरिटी को सौंपा जाएगा।
हमास के शासन का अंत: इसमें गाजा में हमास के शासन को समाप्त करने और उनके हथियारों को फिलिस्तीनी अथॉरिटी को सौंपने की मांग की गई है।
अंतरराष्ट्रीय मिशन की तैनाती: शांति समझौते की निगरानी और फिलिस्तीनी नागरिकों की सुरक्षा के लिए संयुक्त राष्ट्र के तहत एक अस्थायी अंतरराष्ट्रीय मिशन तैनात करने का प्रस्ताव है।
7 अक्टूबर 2023 के हमलों की निंदा: डिक्लेरेशन में हमास द्वारा इजरायल पर किए गए हमलों की कड़ी निंदा की गई है, जिसमें 1200 लोग मारे गए थे और 250 को बंधक बनाया गया था।
इजरायल की कार्रवाइयों की आलोचना: गाजा में इजरायल के हमलों, घेराबंदी और भुखमरी की नीति की भी निंदा की गई है, जिसके कारण गाजा स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार 64,000 से अधिक फिलिस्तीनियों की मौत हुई है।
भारत की भूमिका और रुख
भारत ने न्यूयॉर्क डिक्लेरेशन का खुलकर समर्थन किया, जो उसकी लंबे समय से चली आ रही नीति के अनुरूप है, जिसमें फिलिस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देना शामिल है। भारत का यह रुख शांति और सह-अस्तित्व के सिद्धांतों पर आधारित है। फिलिस्तीनी राजदूत रियाद मंसूर ने भारत के समर्थन को 'शांति की उम्मीद' करार देते हुए कहा, "यह प्रस्ताव पूरी दुनिया की उस ख्वाहिश को दर्शाता है, जो इस क्षेत्र में स्थायी शांति चाहती है।" उन्होंने इजरायल का नाम लिए बिना उन ताकतों से शांति और तर्क की राह अपनाने की अपील की, जो 'जंग और तबाही' का रास्ता चुन रहे हैं।
इजरायल और अमेरिका का विरोध
इजरायल ने इस प्रस्ताव को पूरी तरह खारिज कर दिया। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने वेस्ट बैंक में यहूदी बस्तियों के विस्तार के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर करते हुए कहा, "यहां कोई फिलिस्तीनी राष्ट्र नहीं होगा। यह जमीन हमारी है।" इजरायल के संयुक्त राष्ट्र राजदूत डैनी डैनन ने इस प्रस्ताव को 'नाटक' करार दिया और दावा किया कि यह हमास को मजबूत करने का प्रयास है।
अमेरिका, जो इजरायल का प्रमुख सहयोगी है, ने भी इस प्रस्ताव का विरोध किया। अमेरिकी मिशन की काउंसलर मॉर्गन ऑरटागस ने इसे 'गलत समय पर किया गया प्रचार स्टंट' बताया और कहा कि यह प्रस्ताव केवल हमास को लाभ पहुंचाएगा। इस विरोध के बावजूद, वैश्विक समुदाय का भारी समर्थन इस प्रस्ताव की महत्ता को दर्शाता है।
भविष्य की संभावनाएं
फिलिस्तीनी राजदूत रियाद मंसूर ने उम्मीद जताई कि 22 सितंबर से शुरू होने वाली संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में कम से कम 10 और देश फिलिस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता देंगे। वर्तमान में 145 से अधिक देश पहले ही फिलिस्तीन को मान्यता दे चुके हैं। न्यूयॉर्क डिक्लेरेशन न केवल इस क्षेत्र में शांति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि यह वैश्विक समुदाय की एकजुटता को भी दर्शाता है।
