Vikrant Shekhawat : Jan 18, 2025, 06:00 AM
Indian Economy: देश की अर्थव्यवस्था अगले कुछ वर्षों में कई चुनौतियों का सामना करने जा रही है। वित्त वर्ष 2025 और 2026 में आर्थिक वृद्धि दर के 7% से कम रहने के अनुमान ने इन वर्षों को और भी महत्वपूर्ण बना दिया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक की ताजा रिपोर्टों ने इस भविष्यवाणी को मजबूती प्रदान की है। इन रिपोर्टों के अनुसार, भारत में आर्थिक वृद्धि के धीमा होने के संकेत स्पष्ट हैं।
IMF की रिपोर्ट: औद्योगिक गतिविधियों में गिरावट का असर
IMF ने अपनी वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक (WEO) रिपोर्ट में कहा है कि औद्योगिक गतिविधियों में अपेक्षा से अधिक गिरावट के चलते भारत की आर्थिक वृद्धि धीमी हो गई है। IMF के अनुसार, 2023 में 8.2% की वृद्धि दर हासिल करने के बाद, यह 2024 में 6.5% पर आ गई। 2025 और 2026 में भी इसे 6.5% पर स्थिर रहने का अनुमान है।रिपोर्ट में यह भी उल्लेख है कि आर्थिक सुस्ती के पीछे मुख्य कारण औद्योगिक उत्पादन में गिरावट और वैश्विक आर्थिक स्थिति में उतार-चढ़ाव है। हालांकि, IMF ने इसे संभावित वृद्धि दर के अनुरूप बताया है।वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिरता और धीमापन
ग्लोबल अर्थव्यवस्था में भी तेजी का कोई खास संकेत नहीं है। IMF के अनुसार, 2025 और 2026 में वैश्विक वृद्धि दर 3.3% रहने का अनुमान है, जो ऐतिहासिक औसत (3.7%) से कम है। वैश्विक महंगाई दर भी 2025 में 4.2% और 2026 में 3.5% रहने की संभावना है।विशेष रूप से, अमेरिका और चीन जैसे बड़े देशों की अर्थव्यवस्थाओं में स्थिरता की उम्मीद की गई है। अमेरिका में 2025 की वृद्धि दर 2.7% रहने का अनुमान है, जबकि चीन में 4.5% की दर से वृद्धि हो सकती है।विश्व बैंक का दृष्टिकोण: भारत में संभावनाओं की उम्मीद
विश्व बैंक ने भारत को एक मजबूत वृद्धि वाले क्षेत्र के रूप में देखा है। इसके अनुसार, वित्त वर्ष 2025-26 में दक्षिण एशिया में वृद्धि दर 6.2% तक पहुंच सकती है। भारत में अगले दो वित्त वर्षों में वृद्धि दर 6.7% रहने की संभावना जताई गई है।विशेष रूप से, सर्विस सेक्टर और मैन्युफैक्चरिंग गतिविधियों में विस्तार से आर्थिक मजबूती आने की उम्मीद है। सरकार के सुधारात्मक कदम, जैसे कारोबारी माहौल में सुधार और निवेश प्रोत्साहन योजनाएं, इन क्षेत्रों को बढ़ावा देने में सहायक होंगी।भविष्य की चुनौतियां और समाधान
भारत की आर्थिक वृद्धि दर में सुस्ती के प्रमुख कारणों में औद्योगिक उत्पादन की कमी, निवेश में मंदी, और वैश्विक अनिश्चितता शामिल हैं। हालांकि, विश्व बैंक और IMF दोनों ने सुझाव दिया है कि सही नीतिगत उपायों के माध्यम से इन चुनौतियों का समाधान संभव है।सरकार को चाहिए कि वह:- औद्योगिक उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए नई योजनाएं लागू करे।
- निजी निवेश में वृद्धि के लिए नीतिगत रियायतें दे।
- सर्विस और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर ध्यान केंद्रित करे।
- वैश्विक बाजारों के साथ मजबूत संबंध बनाए रखे।