दुनिया / PAK में बैन हुआ वर्जिनिटी टेस्‍ट, लेकिन इस मुल्क में अब भी इसमें 'पास' होना जरूरी

Zoom News : Jan 12, 2021, 09:21 PM
मोरक्को | पाकिस्‍तान (Pakistan) में बीते कुछ महीनों में रेप के कई मामले सामने आए हैं, साथ ही ये भी सामने आया है कि देश महिलाओं के खिलाफ अपराध करने वालों को सजा देने में बहुत पीछे है। इसे देखते हुए इमरान सरकार ने कानूनों में कुछ बदलाव किए हैं। ऐसे ही बदलावों के तहत पाकिस्तान की एक अदालत ने रेप पीड़ितों का Virginity Tests (कौमार्य की जांच) न कराने का फैसला सुनाया है। 

महिला जज ने कहा- अपमानजनक है ये टेस्‍ट

यह फैसला सुनाने वाली पंजाब प्रांत में लाहौर हाई कोर्ट की जज आयशा मलिक ने कहा है कि वर्जिनिटी टेस्ट कराना अपमानजनक है। उस पर ये टेस्‍ट कराने से कोई फॉरेंसिक मदद भी नहीं मिलती है। 

ऐसा नहीं है कि वर्जिनिटी टेस्‍ट केवल रेप जैसे मामलों में ही कराए जाते हैं। महिलाओं की वर्जिनिटी टेस्‍ट करने के लिए कई देशों में ये टेस्‍ट धड़ल्‍ले से कराए जाते हैं, लेकिन कुछ देश तो ऐसे हैं जहां बिना ये टेस्‍ट कराए शादी ही नहीं होती है। 

मोरक्‍को में शादी के लिए जरूरी है ये टेस्‍ट 

मुस्लिम देश मोरक्को (Morocco) के पीनल कोड के मुताबिक बिना विवाह के या अपने वैध साथी के अलावा किसी और से सेक्स करना गैर-कानूनी है। इतना ही नहीं यहां शादी के लिए महिलाओं को वर्जिनिटी टेस्ट कराना और उसमें पास होना भी जरूरी है। यदि ऐसा न हो तो पुरुष उस महिला के साथ शादी कैंसिल करा सकता है। 

टेस्‍ट बंद कराने को कई बार उठीं आवाजें 

ऐसा नहीं है कि ऐसे टेस्‍ट को बंद कराने के लिए देश में आवाजें न उठीं हों, लेकिन ये प्रयास सफल नहीं हो पाए। मोरक्को के कई सोशियोलॉजिस्ट्स, साइकोलॉजिस्ट्स, डॉक्टर्स और वकीलों ने इस मामले में आवाज उठाई थी। समाज के इस अहम तबके ने 2018 में मोरक्को की मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ को पत्र लिखा था कि वर्जीनिटी टेस्‍ट पर रोक लगनी चाहिए क्‍योंकि यह महिलाओं के दिमाग पर असर डालते हैं। 

वर्जिनिटी टेस्‍ट जैसी प्रथाओं के कारण ही यूरोप की तुलना में मोरक्को में महिलाओं की जिंदगी बहुत ज्यादा चुनौतीपूर्ण है। यहां की महिलाएं आज भी वो आजादी महसूस नहीं कर पाती हैं, जो प्रोग्रेसिव देशों की महिलाएं करती हैं। 

WHO ने भी उठाया था मामला 

इतना ही नहीं WHO, ह्यूमन राइट्स काउंसिल और यूनाइटेड नेशन्स ने भी ऐसे टेस्‍ट और सर्टीफिकेट्स पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी, इसके लिए 2018 में बड़े पैमाने पर प्रयास किए गए लेकिन वे भी नाकाम रहे। WHO ने चिंता जताई थी कि ऐसे सर्टिफिकेट्स महिलाओं के खिलाफ लैंगिक भेदभाव और पितृसत्तात्मक व्यवस्था को बढ़ावा देते हैं। साथ ही ये महिलाओं के खिलाफ हिंसा को भी बढ़ाते हैं।

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