दुनिया / अंतरिक्ष में कई महीने रहे चूहे, मांसपेशियों को मजबूत बना 'बॉडी बिल्डर' बनकर लौटे

AMAR UJALA : Sep 09, 2020, 09:27 AM
Delhi: अंतरिक्ष में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में एक महीना बिताने के बाद ताकतवर चूहे और ज्यादा ताकतवर और मांसपेशियों को मजबूत बना कर वापस लौटे हैं। वैज्ञानिकों ने सोमवार को बताया कि चूहों की मांसपेशियां किसी बॉडी बिल्डर जैसी हो गई हैं। वैज्ञानिकों ने इन चूहों को अंतरिक्ष में यह जानने के लिए भेजा गया था कि अंतरिक्ष यात्रियों के लंबे मिशनों के दौरान उनकी हड्डियों और मांसपेशियों को पहुंचने वाली क्षति को रोकने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं। मंगल मिशन जैसे लंबे अभियानों के लिए अंतरिक्ष यात्री एक लंबा वक्त अंतरिक्ष में बिताते हैं।

इस प्रयोग से मिली जानकारियां अंतरिक्ष यात्राओं पर अंतरिक्ष यात्रियों में मांसपेशियों और हड्डियों के नुकसान को रोकने के साथ ही पृथ्वी पर व्हील चेयर और बिस्तर पर लंबा समय बिताने वाले मरीजों के लिए भी काम आएंगी। यह प्रयोग कनेक्टिकट के जैक्सन लेबोरेट्री के शोध दल ने डॉक्टर सी-जिन ली के नेतृत्व में किया।

इस शोध के लिए 40 युवा मादा काले चूहों को पिछले साल दिसंबर में स्पेसएक्स के रॉकेट से अंतरिक्ष में भेजा गया था। इस प्रयोग की जानकारी प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित एक पेपर में ली ने दी।

उन्होंने कहा कि 24 चूहों को नियमित रूप से कोई दवा नहीं दी गई। भारहीनता में रहने के दौरान उनकी मांसपेशियों और हड्डी के द्रव्यमान में आशंका के मुताबिक ही लगभग 18 फीसदी की कमी आई। वैज्ञानिकों ने आनुवांशिक रूप से परिवर्तित किए गए आठ चूहों को भी अंतरिक्ष में भेजा था, जिन्हें ‘माइटी माइस’ कहा जा रहा है।

इन ताकतवर चूहों का वजन कम नहीं हुआ और मांसपेशियां दोगुनी हो गईं। इन चूहों के मांसपेशियों की तुलना अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के कैनेडी स्पेस सेंटर में रखे गए ताकतवर चूहों की मांसपेशियों से की गई।  


इसके अलावा, जिन आठ सामान्य चूहों को अंतरिक्ष में रखकर ताकतवर चूहों वाली दवाएं दी गईं, वे मांसपेशियों में बहुत ज्यादा विकास के साथ वापस लौटे हैं। इन चूहों में मांसपेशियों का वजन सीमित करने वाले प्रोटीनों को दवा के जरिए रोका गया था।

स्पेसएक्स का कैप्सूल सभी 40 चूहों को सुरक्षित वापस लेकर आया। इन चूहों को पैराशूट से जनवरी में कैलिफोर्निया के तट पर प्रशांत सागर में उतारा गया। यह शोध भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों के लिए वरदान साबित हो सकता है।  




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