PM Modi Birthday / 75वें जन्मदिन पर नरेंद्र की कहानी, लालचौक में तिरंगा फहराकर पहला फोन मां को क्यों किया

गुजरात के वडनगर में खपरैल की छत वाले छोटे से घर में 17 सितंबर 1950 को नरेंद्र मोदी का जन्म हुआ। संघर्षपूर्ण बचपन से लेकर संघ प्रचारक, फिर गुजरात के मुख्यमंत्री और अंततः प्रधानमंत्री बनने तक की यात्रा असाधारण रही। आज मोदी 75वां जन्मदिन मना रहे हैं।

PM Modi Birthday: गुजरात के वडनगर का काला वासुदेव चौक। एक छोटा सा घर, खपरैल की छत वाला। यही वह घर था जहां चाय की रेहड़ी चलाने वाले दामोदरदास और उनकी पत्नी हीराबा रहते थे। 17 सितंबर 1950 को, आज से ठीक 75 साल पहले, इसी घर में नरेंद्र मोदी का जन्म हुआ।

आठ लोगों का परिवार—दामोदरदास, हीराबा, उनके पांच बेटे और एक बेटी—एक ही कमरे में रहता था। तेज बारिश में छत टपकती, और हीराबा रिसते पानी के नीचे बर्तन रखतीं। नन्हा नरेंद्र अपनी मां की परेशानी देखकर उनकी मदद को दौड़ पड़ता।

चाय की रेहड़ी और संघर्ष

दामोदरदास की चाय की दुकान वडनगर रेलवे स्टेशन के बाहर थी। नरेंद्र अक्सर वहां पिता का हाथ बंटाते। परिवार की आमदनी इतनी कम थी कि हीराबा को आसपास के घरों में बर्तन धोने और मजदूरी करनी पड़ती। इस संघर्ष को याद करते हुए नरेंद्र मोदी अक्सर भावुक हो जाते हैं। 28 सितंबर 2015 को अमेरिका में फेसबुक टाउनहॉल में उन्होंने अपनी मां के त्याग और मेहनत को याद किया।

शुरुआती शिक्षा और RSS का प्रभाव

नरेंद्र की प्रारंभिक शिक्षा वडनगर की कुमारशाला-1 में हुई। आठ साल की उम्र में वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की शाखाओं में जाने लगे। 1958 में, दीवाली के दिन, RSS प्रचारक लक्ष्मणराव ईनामदार, जिन्हें 'वकील साहब' कहा जाता था, वडनगर पहुंचे। उन्होंने बाल स्वयंसेवकों को संबोधित किया और शपथ दिलाई, जिसमें नरेंद्र भी शामिल थे। यहीं से उनके मन में हिंदू राष्ट्रवाद की विचारधारा के बीज पड़े।

वैराग्य और आत्मखोज की यात्रा

नरेंद्र की शादी 13 साल की उम्र में जशोदाबेन से तय हुई, जैसा कि उनके समाज की परंपरा थी। लेकिन उनका मन घर की चारदीवारी में नहीं रुका। उन्होंने खुद को 'अनिकेत'—जिसका कोई घर नहीं—कहा। एक दिन उन्होंने अपनी मां से कहा, "मां, मेरा मन करता है कि बाहर जाकर देखूं, दुनिया क्या है। मुझे स्वामी विवेकानंद की राह पर चलना है।"

पिता दामोदरदास बेटे के वैराग्य से चिंतित थे, लेकिन हीराबा ने उनकी जन्मपत्री ज्योतिषी को दिखाई। ज्योतिषी ने कहा, "इसकी राह ही अलग है, ईश्वर ने जहां तय किया है, ये वहीं जाएगा।" इसके बाद नरेंद्र घर छोड़कर निकल पड़े।

हिमालय से हेडगेवार भवन तक

नरेंद्र पहले रामकृष्ण मिशन के बेलूर मठ गए, फिर दिल्ली, राजस्थान, पूर्वोत्तर और हिमालय की यात्रा की। सबसे ज्यादा समय उन्होंने उत्तराखंड के गरुड़चट्टी में बिताया। करीब दो साल बाद वे वडनगर लौटे, लेकिन मात्र 17 दिन बाद फिर घर छोड़ दिया। RSS के वकील साहब ने उन्हें अहमदाबाद के 'डॉ. हेडगेवार भवन' में रहने की व्यवस्था की। यहां से नरेंद्र ने RSS के स्वयंसेवक, शाखा प्रभारी और फिर प्रचारक के रूप में 15 साल तक संगठन के विस्तार के लिए काम किया।

राजनीति में प्रवेश और गुजरात मॉडल

1985 में नरेंद्र मोदी सक्रिय राजनीति में आए और जल्द ही BJP की राष्ट्रीय चुनाव समिति के सदस्य बने। उनके माइक्रो-मैनेजमेंट कौशल ने 1989 के लोकसभा चुनाव में गुजरात में BJP को 14 में से 11 सीटें दिलाईं। 1990 में लालकृष्ण आडवाणी की राम रथयात्रा और 1992 में मुरली मनोहर जोशी की एकता यात्रा में उनकी संगठनात्मक क्षमता ने उन्हें राष्ट्रीय नेताओं के करीब ला दिया। एकता यात्रा के दौरान पंजाब के फगवाड़ा में हमले और गोलीबारी के बीच भी मोदी ने हिम्मत नहीं हारी। लाल चौक पर तिरंगा फहराने के बाद उन्होंने सबसे पहले अपनी मां को फोन कर उनकी चिंता दूर की।

मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री तक

1 अक्टूबर 2001 को, जब नरेंद्र मोदी एक टीवी पत्रकार के दाह संस्कार में थे, तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें दिल्ली बुलाया। अटल जी ने मजाक में कहा, "दिल्ली में पंजाबी खाना खाकर तुम काफी मोटे हो गए हो। फिर से गुजरात लौट जाओ।" अगले दिन मोदी अहमदाबाद पहुंचे और अपनी मां से मिले। 7 अक्टूबर 2001 को उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।

2002 में गुजरात दंगे हुए, जिन पर सरकार पर गंभीर आरोप लगे। हालांकि, मजिस्टीरियल कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने मोदी को क्लीन चिट दी। उनकी 'हिंदू हृदय सम्राट' की छवि और 'गुजरात मॉडल' ने उन्हें 2014 में BJP का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया। उस साल BJP ने 282 सीटों के साथ पूर्ण बहुमत हासिल किया, और नरेंद्र मोदी भारत के 16वें प्रधानमंत्री बने।

मां का आशीर्वाद और लोकतंत्र की जीत

प्रधानमंत्री बनने के बाद जब मोदी संसद पहुंचे, तो उन्होंने सीढ़ियों को माथे से लगाया। उनकी मां हीराबा पहली बार प्रधानमंत्री आवास आईं। यह पल न केवल उनके लिए, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के लिए भी ऐतिहासिक था—एक ऐसी महिला का बेटा, जो कभी दूसरों के घरों में बर्तन धोती थी, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का नेता बना।

अटूट जीत का सिलसिला

नरेंद्र मोदी ने इलेक्टोरल पॉलिटिक्स में सात चुनाव लड़े—सभी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री के रूप में—और सभी में एकतरफा जीत हासिल की। 2019 और 2024 के चुनावों ने उन्हें जवाहरलाल नेहरू के बाद सबसे ज्यादा समय तक पद पर रहने वाला दूसरा प्रधानमंत्री बनाया।

हीराबा का निधन और निरंतर यात्रा

30 दिसंबर 2022 को हीराबा का 100 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। आज, 75वें जन्मदिन पर, नरेंद्र मोदी का मां के बिना तीसरा जन्मदिन है। लेकिन उनका सक्रिय राजनीतिक जीवन और देश सेवा का संकल्प अनवरत जारी है।

वडनगर के उस छोटे से घर से लेकर विश्व मंच तक, नरेंद्र मोदी की यात्रा भारत के लोकतंत्र, संकल्प और सपनों की कहानी है।