Amir Khan Muttaqi / तालिबान मंत्री का भारत दौरा: पाकिस्तान की बढ़ी चिंता, क्या मिलेगी तालिबान सरकार को मान्यता?

अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी भारत दौरे पर हैं, जो 16 अक्टूबर तक चलेगा। इस दौरे से साउथ एशिया में भारत की स्थिति मजबूत होने और पाकिस्तान को अलग-थलग करने की रणनीति को बल मिलने की उम्मीद है। यह दौरा तालिबान सरकार की अंतरराष्ट्रीय मान्यता और भारत-अफगान संबंधों के लिए अहम माना जा रहा है।

Amir Khan Muttaqi: अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी 13 से 16 अक्टूबर तक भारत के महत्वपूर्ण दौरे पर हैं। मुत्तकी, जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की प्रतिबंधित आतंकवादियों की सूची में। शामिल हैं, को भारत आने के लिए विशेष छूट लेनी पड़ी है। यह दौरा 'मॉस्को फॉर्मेट कंसल्टेशन' में उनकी भागीदारी के बाद हो रहा है, जहां भारत ने अफगानिस्तान का समर्थन किया था, खासकर पूर्व अमेरिकी। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बगराम एयरबेस से पीछे हटने की योजना का विरोध करके—इस रुख को पाकिस्तान, चीन और रूस ने भी समर्थन दिया था। इन वार्ताओं के बावजूद, भारत सहित किसी भी देश ने तालिबान सरकार को आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी है।

संबंधों की बहाली और भारत का बदलता रुख

2021 में अमेरिका के अफगानिस्तान छोड़ने और तालिबान के सत्ता में आने के बाद, भारत ने काबुल में अपना दूतावास बंद कर दिया था, जिससे औपचारिक राजनयिक संबंध टूट गए थे और हालांकि, पर्दे के पीछे से कूटनीति जारी रही है। मुत्तकी का यह दौरा तालिबान शासन के लगभग पांच साल बाद औपचारिक चर्चाओं को फिर से शुरू करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है और विदेश मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि उनकी मुलाकात विदेश मंत्री एस. जयशंकर से हो सकती है।

मुख्य चर्चा बिंदु और अफगानिस्तान के लिए लाभ

चर्चा के एजेंडे में मानवीय सहायता, वीजा मुद्दे, व्यापारियों के लिए सुविधाएं और अफगान नागरिकों से संबंधित मामले शामिल होने की उम्मीद है। अन्य महत्वपूर्ण विषयों में सूखे मेवों का निर्यात, चाबहार बंदरगाह और उससे जुड़े मार्ग, क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद विरोधी प्रयास (विशेषकर टीटीपी के संबंध में) और अफगान सरकार की अंतरराष्ट्रीय मान्यता की संभावना शामिल है और अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ प्रोफेसर राजन राज के अनुसार, अफगानिस्तान व्यापारिक और आर्थिक प्रतिबंधों को कम करने के लिए भारत को एक महत्वपूर्ण भागीदार के रूप में देखता है। हाल ही में भूकंप के बाद भारत की मानवीय सहायता ने इस धारणा को और मजबूत किया है। अंकारा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ओमैर अनस भारत-अफगानिस्तान संबंधों के ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डालते हैं, उन्हें महत्वपूर्ण पड़ोसी बताते हैं। राजन राज जैसे विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत अब तालिबान सरकार को गंभीरता से ले रहा है, उसकी स्थायी उपस्थिति को स्वीकार कर रहा है। राजन का सुझाव है कि भारत तालिबान को अफगानिस्तान के प्रतिनिधि निकाय के रूप में देखता है, खासकर जब पिछली हामिद करजई सरकार को राष्ट्रीय नियंत्रण में सीमित 'काबुल का अध्यक्ष' माना जाता था।

पाकिस्तान की चिंताएं और सावधानी की आवश्यकता

इस दौरे का प्रभाव द्विपक्षीय संबंधों से परे है, जो पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र को प्रभावित कर रहा है। प्रोफेसर अनस का सुझाव है कि अफगानिस्तान के साथ भारत के मजबूत संबंध पाकिस्तान के खिलाफ उसकी स्थिति को मजबूत कर सकते हैं, जिसने पहले क्षेत्रीय अस्थिरता का लाभ उठाया था। राजन राज बताते हैं कि तालिबान के साथ सीधी बातचीत से पाकिस्तान का प्रभाव कम हो सकता है, विशेष रूप से हक्कानी नेटवर्क के माध्यम से, जिससे उसे अफगानिस्तान को भारत विरोधी गतिविधियों के लिए एक आधार के रूप में उपयोग करने से रोका जा सके। प्रोफेसर अनस भारत को अत्यधिक सावधानी बरतने की सलाह देते हैं। भारत का एक प्रमुख उद्देश्य अफगानिस्तान से यह आश्वासन प्राप्त करना होगा कि उसकी भूमि का उपयोग भारत विरोधी आतंकवादी गतिविधियों के लिए नहीं किया जाएगा।