Awadhesh Rai Murder Case / गायब करा दी थी केस डायरी, फिर भी उम्रकैद से नहीं बचा मुख्तार अंसारी

Zoom News : Jun 05, 2023, 06:34 PM
Awadhesh Rai Murder Case: पहले से ही एक मामले में 10 साल की सजा काट रहे माफिया डॉन मुख्तार अंसारी को अब अवधेश राय हत्याकांड में भी सजा हो गई हैै. इस मामले में सोमवार को (5 जून 2023 अब से कुछ देर पहले ही) उम्रकैद की सजा मुकर्रर कर दी गई. 32 साल पहले 3 अगस्त 1991 को वाराणसी में हुआ यह वही कांग्रेस नेता अवधेश राय हत्याकांड है, जिसकी मुख्तार अंसारी गैंग ने कोर्ट से मूल केस डायरी तक गायब करवा दी थी. इसका खुलासा जब बीते साल (जून 2022) में हुआ तो, कोर्ट कचहरी से लेकर सूबे की सल्तनत और यूपी पुलिस महकमा तक हिल गया था. बहरहाल आइए जानते हैं कि उम्रकैद की सजा सुनाए जाने के बाद इसी मुख्तार अंसारी के पीछे कभी हाथ धोकर पड़ रहे, पूर्व दबंग पुलिस अफसरान क्या बोले? किसी ने कहा कि मुख्तार अंसारी जिस काबिल था, उसके साथ कानून का चाबुक उसी तरह से आकर वही सब कुछ कर रहा है. जिसका वो असली हकदार था.

कुछ पुलिस अधिकारियों ने एमपी एमएलए कोर्ट द्वारा सजा सुनाए जाने के बाद टीवी9 से विशेष बातचीत की. कहा, “इसे ही कहते हैं माफिया को मिट्टी में मिला देना. अभी तो अतीक अशरफ और मुख्तार अंसारी का नंबर लगा है. आगे-आगे देखिए अगर सूबे की हुकूमत इसी तर्ज पर कदम आगे बढ़ाती रही तो, अब बाकी माफियाओं का हाल इनसे भी भयावह होगा. सोमवार (5 जून 2023) को अवधेश राय हत्याकांड में कोर्ट से उम्रकैद की सजा सुनाए जाते ही, टीवी9 से खास बातचीत में, 1974 बैच के पूर्व आईपीएस अधिकारी और यूपी के रिटायर्ड डीजीपी डॉ. विक्रम सिंह ने कहा, “मुख्तार अंसारी को अब महसूस हुआ होगा कि, अपराध की दुनिया सिर्फ इनसे पीड़ितों के लिए ही तबाही का मंजर लेकर नहीं आती है. मुख्तार अंसारी से गली के गुंडों, बदमाश, माफियाओं की भी बर्बादी का सबब बनती है उनकी बदमाशी.”

बिना केस डायरी के हुई सजा

विक्रम सिंह आगे यह भी कहते हैं कि, “यह वही मुकदमा है जिसमें कानून के शिकंजे और सजा से खुद की गर्दन बचाने की गलतफहमी में, इसी मुख्तार अंसारी ने कोर्ट से केस डायरी ही गायब करा डाली थी. इसके बाद भी मगर कोर्ट ने मुकदमें पेश पुलिस की तफ्तीश को वजह देते हुए, मुजरिम को उम्रकैद की सजा सुना दी. यह कोर्ट की तो आन-बान-शान की बात है ही. ऐसे मुकदमे में मुजरिम को बिना केस डायरी की उपलब्धता के ही उम्रकैद की सजा सुना दिया जाना, तफ्तीश एजेंसी (यूपी पुलिस) के लिए भी बहुत बड़े मान-सम्मान की बात है.”

माफिया डॉन मुख्तार अंसारी को कोर्ट से सोमवार को हुई सजा के तत्काल बाद प्रतिक्रिया देते हुए 1998 बैच के पूर्व आईपीएस अधिकारी और रिटायर्ड आईजी इंटेलीजेंस (यूपी पुलिस) आर के चतुर्वेदी ने कहा, “मुख्तार अंसारी से बदमाशों के साथ कानून का चाबुक एकदम सही न्याय कर रहा है. मुख्तार से गली-कूंचों के बदमाशों ने अवधेश राय जैसे न मालूम कितनों को कत्ल करके, आज अपना आपराधिक साम्राज्य खड़ा किया होगा. खून के ईंट-गारे पर खड़ी दीवारें ऐसे ही धंसा करती हैं जैसे कि अब मुख्तार अंसारी का हाल हुआ है.

मुख्तार के साथ वहीं हुआ, जिसका वो हकदार है

एक सवाल के जवाब में आर के चतुर्वेदी ने कहा, ” मैं हैरत में हूं इस मुकदमे में कोर्ट का एतिहासिक फैसला देख-सुनकर कि, जिस मुख्तार अंसारी ने मुकदमे से जुड़ी ओरिजनल केस डायरी ही कोर्ट के भीतर से गायब करवा डाली थी. इसके बाद भी कोर्ट ने पुलिसिया तफ्तीश के बाकी तमाम बिंदुओं को विशेष अहमियत देकर, मुजरिमों इस कदर की सख्त सजा मुकर्रर कर दी. अमूमन ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि, जिस मुकदमे के ट्रायल के दौरान केस डायरी ही गायब हो जाती हो. उसमें मुजरिम को उम्रकैद सी सख्त सजा कोर्ट द्वारा, जांच एजेंसी के ऊपर बिना किसी टीका-टिप्पणी के सुना दी गई हो. सैल्यूट है ऐसी कोर्ट और जज साहब को. ”

कभी पुलिस और कानून की इज्जत करने में खुद की तौहीन समझने वाले, मुख्तार अंसारी को आज अहसास हुआ होगा कि, हमेशा खाकी और कानून ही ऊपर होता है. न कि अपराध या अपराधी. आज उम्रकैद की सजा सुनते ही मुख्तार अहमद एंड बदमाश कंपनी की तमाम बीते तीस-पैंतीस साल की गलतफहमियां दूर हो चुकी होंगी. अवधेश राय हत्याकांड में मुख्तार को हुई उम्रकैद ने उसे समझा दिया होगा कि, बदमाशों की जगह समाज में नहीं जेल की सलाखों में है.”

पोटा नहीं हटाने पर डीएसपी को हुई थी जेल

किसी जमाने में इसी मुख्तार को पानी पिला चुके यूपी पुलिस एसटीएफ के तत्कालीन डिप्टी एसपी शैलेंद्र सिंह बोले, “मैने तो साल 2004 में ही ताड़ लिया था जब मैंने मुख्तार अंसारी के गुंडों से एलएमजी जैसा घातक हथियार जब्त करके उन्हें जिंदा दबोच लिया था. उस मामले में जब मैने इसी मुख्तार अंसारी पर पोटा जैसा कड़ा कानून ठोका तो, सूबे की तत्कालीन हुकूमत (यूपी में मुलायम सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में) तिलमिला उठी थी. तब के मुख्यमंत्री चाहते थे कि मैं डिप्टी एसपी एसटीएफ होने के चलते हर हाल में पोटा कानून को हटा लूं. मैंने जब इनकार कर दिया तो, मुझे सूबे की सरकार ने गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया.

उन मुसीबतों में भी मैंने सूबे की वाहियात सरकार के सामने इसी, मुख्तार अंसारी से डरकर घुटने नहीं टेके. और हमेशा हमेशा के लिए डिप्टी एसपी की कंधे पर चांदी के बिल्ले-सितारे लगी खाकी वर्दी उतार फेंकना मंजूर किया. आज अवधेश हत्याकांड में मुख्तार को उम्रकैद की सजा हुई है. मुख्तार अंसारी दंभी-बड़बोला हो सकता है. कानून के मंदिर में फैसला करने में देर हो सकती है. मगर फैसला हमेशा पीड़ित को ही हित में होता है. वही आज सामने आया है मुख्तार अंसारी को जीवन भर जेल में रखने की सजा मुकर्रर किए जाने के बाद. ”

भाई अजय राय के सामने हुई थी अवधेश की हत्या

जिक्र जब अवधेश राय हत्याकांड का हो तो जानना जरूरी है कि, कांग्रेस नेता अवधेश राय का कत्ल उनके भाई अजय राय की मौजूदगी में, घर की देहरी पर कर डाला गया था. वो मनहूस तारीख थी 3 अगस्त 1991. जिस दिन अवधेश राय को कत्ल किया गया उस दिन, हल्की हल्की बूंदा-बांदी हो रही थी. तभी एक कार में सवार कई लोग, अवधेश के घर पर ( थाना चेतगंज,वाराणसी) पहुंचे. वे सब हथियारों से लैस थे. जब तक अजय राय कुछ समझ पाते तब तक, हत्यारे उनके भाई अवधेश को गोलियों से भूनकर साफ बच निकल कर भाग गए थे.

वाराणसी के चेतगंज थाने से चंद फर्लांग की दूरी पर दिन-दहाड़े हुए अवधेश हत्याकांड ने अगर, सूबे की पुलिस और तत्कालीन हुकूमत की ढीली कानून व्यवस्था को नंगा कर दिया था. तो उस लोहर्षक-दुस्साहसिक हत्याकांड ने तब के नौसिखिया की श्रेणी में शुमार रहे, आज के माफिया डॉन मुख्तार अंसारी को जरायम की जिंदगी-दुनिया में नया मुकाम हासिल करवा डाला था. अवधेश हत्याकांड को अंजाम देने-दिलवाने की घटना तक, मुख्तार के सिर पर एक अदद मंडी के ठेकेदार का कत्ल ही (साल 1988 में) लिखा गया था, उसके बाद अवधेश हत्याकांड ने मुख्तार का पांव अपराध जगत में और भी ज्यादा मजबूती से जमवा दिया.

पहले से तय था टारगेट

यहां उल्लेखनीय है कि अवधेश हत्याकांड के चश्मदीद भी उनके भाई और कांग्रेस नेता अजय राय ही हैं. अजय राय घटना के वक्त, अवधेश के साथ खड़े बातचीत कर रहे थे. उस गोलीकांड में वे अकाल मौत के मुंह में जाने से बाल-बाल बचे था. जिस तरह से हमला हुआ, उससे मौके पर पहुंची पुलिस और प्रत्यक्षदर्शियों ने अंदाजा लगा लिया था कि, हमलावरों का ‘टारगेट’ 3 अगस्त 1991 को सिर्फ और सिर्फ अवधेश राय थे. अगर हत्यारों को अजय राय भी निशाना बनाने होते, तो वे उन्हें भी गोलियों की जद में ले सकते थे मगर, हमलावरों ने जान-बूझकर उस मनहूस दिन अपनी जद में होने के बाद भी, अजय राय (अवधेश राय के सगे भाई, और घटना के चश्मदीद) के ऊपर गोलियां नहीं झोंकी.

बाद में भाई अवधेश राय के कत्ल में चश्मदीद और भाईकी हैसियत से इन्हीं जिंदा बचे अजय राय ने, वाराणसी के थाना चेतगंज में घटना का मुकदमा दर्ज कराया था. जिसमें मुख्य आरोपी के रूप में माफिया डॉन मुख्तार का नाम लिखा गया था.यूपी पुलिस के रिटायर्ड डिप्टी एसपी सुरेंद्र सिंह लौर (डिप्टी एसपी यूपी पुलिस एस एस लौर) ने कहा, “हां, इतना जरूर है कि इस हत्याकांड में फैसला आने में 31-32 साल जो लगे वो तो गंभीर है. मगर देर आयद दुरूस्त आयद वाली कहावत पर अगर, अब भी इस तीन दशक पुराने हत्याकांड के मुजरिम माफिया डॉन मुख्तार अंसारी को कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई है. तो कोई यह नहीं कह सकता है कि देश का कानून अंधा और बहरा है.”

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