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- 01-May-2025 05:40 PM IST
India-Pakistan News: भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहा मौजूदा तनाव सिर्फ दक्षिण एशिया तक सीमित नहीं है, बल्कि इसकी गूंज पूरी दुनिया में सुनाई दे रही है। यह स्थिति सिर्फ पाकिस्तान जैसे आर्थिक संकट से जूझ रहे देश के लिए खतरे की घंटी नहीं है, बल्कि उन अरब देशों की सुरक्षा के लिए भी गंभीर चुनौती बन सकती है, जो पहले ही क्षेत्रीय संघर्षों से जूझ रहे हैं।
गाज़ा, ईरान और अरब की बेचैनी
गाज़ा पट्टी में युद्ध, अमेरिका और इज़राइल की ईरान के साथ तनातनी और यमन से लेकर सीरिया तक अस्थिरता ने पहले ही अरब जगत को हिला कर रखा है। ऐसे में अगर पाकिस्तान भारत के साथ युद्ध में पूरी तरह कूदता है, तो इसका सीधा असर अरब क्षेत्र की रणनीतिक स्थिरता और सुरक्षा पर पड़ेगा। इसकी सबसे अहम वजह है – पाकिस्तान का इन अरब देशों के साथ गहरा सैन्य सहयोग।
पाकिस्तान: अरब देशों का सैन्य सहयोगी
पाकिस्तान खुद को इस्लामी दुनिया की एक मजबूत सैन्य शक्ति के रूप में प्रस्तुत करता है। उसका यह दावा सिर्फ बयानबाज़ी नहीं, बल्कि वास्तविक भूमिका में दिखता है। पाकिस्तान की सेना 22 से अधिक अरब देशों में मौजूद है, जहां वह सैन्य प्रशिक्षण, रणनीतिक सलाह और सुरक्षा सहयोग में अहम भूमिका निभाती है। सऊदी अरब, यूएई और कतर जैसे देश पाकिस्तान को एक विश्वसनीय सहयोगी मानते हैं, खासकर ईरान और आतंकवादी समूहों से सुरक्षा के लिहाज से।
इन देशों की अपनी सेनाएं युद्ध का गहन अनुभव नहीं रखतीं। ऐसे में पाकिस्तान की सेना उनकी रक्षा का एक अहम स्तंभ बन जाती है। इसके अलावा, अमेरिका की मध्य-पूर्व नीति में भी पाकिस्तान की भूमिका अप्रत्यक्ष लेकिन रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है।
परमाणु ताकत और क्षेत्रीय समीकरण
पाकिस्तान एकमात्र इस्लामी देश है जो परमाणु हथियारों से लैस है। सऊदी अरब जैसे देश इसे ईरान के खिलाफ रणनीतिक संतुलन मानते हैं। ऐसे में अगर भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान की सैन्य ताकत क्षीण होती है, तो यह न केवल अरब देशों की सुरक्षा व्यवस्था को अस्थिर कर सकता है, बल्कि पूरे इस्लामी विश्व में चिंता की लहर दौड़ा सकता है।
पाकिस्तान की सैन्य भूमिका का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान ने 1967 और 1973 के अरब-इज़राइल युद्धों में हिस्सा लिया। 1990 के गल्फ वॉर के दौरान उसने सऊदी अरब की रक्षा के लिए अपने दस हजार सैनिक भेजे। ये कदम पाकिस्तान को सिर्फ एक सैन्य साझेदार नहीं, बल्कि एक भरोसेमंद रक्षक के रूप में प्रस्तुत करते हैं। मक्का और मदीना जैसे पवित्र शहरों की सुरक्षा में उसकी भूमिका आज भी अरब जनता के मन में उसे एक भरोसेमंद साथी के रूप में स्थापित करती है।
ईरान और शिया-सुन्नी संतुलन
हालांकि, पाकिस्तान ने हमेशा हर संघर्ष में सऊदी अरब का समर्थन नहीं किया। यमन युद्ध के समय उसने तटस्थता बनाए रखी, जिससे वह ईरान के साथ अपने रिश्ते बिगाड़ना नहीं चाहता था। पाकिस्तान की रणनीति यह रही है कि वह इस्लामी दुनिया के भीतर संतुलन बनाए रखे – खासकर शिया और सुन्नी गुटों के बीच।
भारत-पाक युद्ध: अरब देशों के लिए खतरे की घंटी
अगर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध होता है, तो पाकिस्तान की सैन्य संरचना पर सीधा असर पड़ेगा। भारत पहले भी सैन्य रूप से पाकिस्तान पर भारी रहा है। एक और हार से पाकिस्तान को उबरने में वर्षों लग सकते हैं। इसका अर्थ होगा – अरब देशों की रक्षा दीवार कमजोर होना।
यूएई, कतर और सऊदी अरब जैसे देशों ने पहले ही भारत और पाकिस्तान को संयम बरतने की अपील की है। वे किसी भी स्थिति में नहीं चाहेंगे कि उनका प्रमुख सैन्य सहयोगी युद्ध में उलझकर कमजोर हो जाए।
वैश्विक संदर्भ में भारत-पाक युद्ध
आज जब पूरी दुनिया संघर्षों से जूझ रही है – यूक्रेन युद्ध, इज़राइल-गाज़ा संघर्ष, अमेरिका-ईरान तनाव, चीन-ताइवान विवाद – ऐसे में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध एक और भयावह अध्याय जोड़ सकता है। यह क्षेत्र दुनिया का सबसे घनी आबादी वाला इलाका है और युद्ध की स्थिति में नागरिक मौतों की संख्या इतिहास में सबसे अधिक हो सकती है। संयुक्त राष्ट्र की चिंताएं इसी वजह से गंभीर हैं।