Science / दुनिया चांद देखने में लगी रही, पृथ्‍वी के करीब से गुजरा बुर्ज खलीफा के आकार का ऐस्टरॉइड

NavBharat Times : May 08, 2020, 04:38 PM
लंदन: पूरी दुनिया में जब सुपरमून की चर्चा हो रही थी तो बुर्ज खलीफा के आकार का एक विशाल ऐस्टरॉइड चुपचाप पृथ्वी के करीब से गुजर गया। करीब 450 मीटर चौड़ा यह ऐस्टरॉइड 28,500 मील प्रति घंटे की रफ्तार से पृथ्वी के करीब से गुजरा। अमरीका की स्पेस एजेंसी नासा के सेंटर फॉर नियर अर्थ ऑब्जेक्ट स्टडीज ने इसकी पहचान एक विशालकाय उल्का पिंड के रूप में की थी।

सभी कॉमेंट्स देखैंअपना कॉमेंट लिखेंनासा को सबसे पहले 9 दिसंबर 2009 को इसका पता चला था और इसे 438908 (2009 एक्सओ) नाम दिया गया था। तब से नासा इस पर बराबर नजर बनाए हुए था। यह विशालकाय चट्टान 110 से 450 मीटर चौड़ी थी और इसकी लंबाई करीब 1,500 फीट थी। यानी इसका आकार लंदन आई से लेकर दुनिया की सबसे ऊंची इमारत बुर्ज खलीफा टावर के बीच था। यह 12.27 किमी प्रति किलोमीटर प्रति सेकेंड यानी करीब 28,565 मील प्रति घंटे की रफ्तार के पृथ्वी की ओर बढ़ रहा था।

ऐस्टरॉइड 438908 (2009 एक्सओ) भारतीय समयानुसार गुरुवार रात करीब दस बजे पृथ्वी के करीब से गुजरा। नासा ने इसे अपोलो श्रेणी के ऐस्टरॉइड में शामिल किया था। इसमें ऐसे उल्का पिंडों को रखा जाता है जिनका रास्ता पृथ्वी की कक्षा से टकराता है। नासा ऐसे ऐस्टरॉइड को गंभीरता से लेता है। हाल में उसने इन्हें रास्ते में ही खत्म करने के लिए एक कार्यक्रम पर काम भी शुरू किया है।

ऐस्टरॉइड को नष्ट नहीं किया जा सकता

एक वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि पृथ्वी की तरफ आ रहे ऐस्टरॉइड को नष्ट नहीं किया जा सकता है क्योंकि गुरुत्वाकर्षण के कारण उसके टुकड़े फिर से आपस में जुड़ सकते हैं। एस्ट्रोनॉमर अभी करीब 2,000 ऐसे ऐस्टरॉइड, कॉमेट और दूसरे आकाशीय पिंडों पर नजर रख रहे हैं जो पृथ्वी के लिए खतरा हो सकते हैं। नासा के मुताबिक ऐसे आकाशीय पिंडों को नियर अर्थ ऑब्जेक्ट कहा जाता है जो आसपास के ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण की जद में आ जाते हैं और पृथ्वी के करीब पहुंच जाते हैं।

अंतरिक्ष में बड़ी-बड़ी चट्टानें लाखों नॉटिकल मील दूर हैं और नासा की नियर अर्थ ऑब्जेक्ट की सूची में ऐसे आकाशीय पिंड हैं जो पृथ्वी के बेहद करीब हैं। नासा की भाषा में अगर कोई आकाशीय पिंड की सूर्य से दूरी 1.3 एस्ट्रोनॉमिकल यूनिट के कम है तो इसे नियर अर्थ ऑब्जेक्ट कहा जाता है। इस ऐस्टरॉइड के सही सलामत गुजर जाने से वैज्ञानिकों ने राहत की सांस ली है।

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