मध्य प्रदेश / यहां जमीन के नीचे हैं 3.42 करोड़ कैरेट हीरे, चढ़ानी होगी 2 लाख से ज्यादा पेड़ों की बलि

Zoom News : Apr 03, 2021, 05:44 PM
छतरपुर। अगर सबकुछ अनुमान के मुताबिक हुआ तो प्रदेश के साथ-साथ देश के लिए भी अच्छी खबर है। अनुमान है कि मध्य प्रदेश के छतरपुर में जमीन के अंतर 3.42 करोड़ कैरेट हीरे दबे हुए हैं। हालांकि, पर्यावरण की दृष्टि से ये खबर थोड़ी निराशाजनक भी है, क्योंकि इन हीरों को निकालने के लिए 382।131 हेक्टेयर में फैले जंगल के 2 साथ 15 हजार पेड़ों की बलि देनी पड़ेगी।

जिले के बकस्वाहा के जंलग की जिस जमीने में 3.42 करोड़ कैरेट हीरे के दबे होने का अनुमान है वहां सागौन के 40 हजार पेड़ों के अलावा बहेड़ा, अर्जुन, पीपल, तेंदु, और केम जैसे औषधीय पेड़ हैं। गौरतलब है कि प्रशासन का दावा है कि पन्ना जिले में देश का सबसे बड़ा हीरों का भंडार है। यहां जमीन में 22 लाख कैरेट के हीरे हैं, जिनमें से करीब 13 लाख कैरेट के हीरे निकाले भी जा चुके हैं। 9 लाख कैरेट हीरे और बाकी हैं। इस भंडार के बाद अब बकस्वाहा में पन्ना जिले से 15 गुना ज्यादा हीरे निकलने का अनुमान लगाया जा रहा है।

जानकारी के मुताबिक, इस जगह का सर्वे 20 साल पहले शुरु हुआ था। बंदर डायमंड प्रोजेक्ट के तहत ये सर्वे किया गया था। सरकार ने 2 साल पहले ही इसकी नीलामी की। नीलामी में कई कंपनियों ने हिस्सा लिया, लेकिन सबसे ज्यादा बोली बिड़ला समूह की एस्सेल माइनिंग ने लगाई थी। सरकार कंपनी को इसकी लीज 50 साल के लिए दे रही है। बताया जा रहा है कि इस जंगल का 62।64 हेक्टेयर क्षेत्र हीरे निकालने के लिए चुना गया है। यहीं पर खदान बनाई जाएगी। हालांकि, कंपनी ने 382।131 हेक्टेयर जंगल मांगा है। ताकि 205 हेक्टेयर जमीन पर मलबा डंप किया जा सके।

बताया जाता है कि इस काम में कंपनी पर 2500 करोड़ का बोझ आएगा। बता दें, पहले इस जमीन पर खनन लीज के लिए ऑस्ट्रेलिया की कंपनी रियोटिंटो ने आवेदन किया था। हालांकि, पर्यावरण मंत्रालय के अंतिम फैसले से पहले रियोटिंटो ने काम करने से इनकार कर दिया था।

हीरे निकालने के लिए पेड़ काटने से पर्यावरण को भारी नुकसान होना तय है। इसके अलावा वन्यजीवों पर भी संकट आ जाएगा। मई 2017 में पेश की गई जियोलॉजी एंड माइनिंग मप्र और रियोटिंटो कंपनी की रिपोर्ट में तेंदुआ, बाज (वल्चर), भालू, बारहसिंगा, हिरण, मोर इस जंगल में होना पाया था लेकिन अब नई रिपोर्ट में इन वन्यजीवों के यहां होना नहीं बताया जा रहा है। दिसंबर में डीएफओ और सीएफ छतरपुर की रिपोर्ट में भी इलाके में संरक्षित वन्यप्राणी के आवास नहीं होने का दावा किया है।

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