इंडिया / आज 1 बजे प्रधानमंत्री मोदी इमरान खान अपनी-अपनी सीमाओं में कॉरिडोर का उद्घाटन करेंगे

Dainik Bhaskar : Nov 09, 2019, 10:44 AM
नई दिल्ली/इस्लामाबाद | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को पंजाब के सुल्तानपुर लोधी पहुंचे। यहां उन्होंने बेर साहिब गुरुद्वारे में माथा टेका। इसके बाद सिखों के पाकिस्तान स्थित तीर्थ स्थल गुरुद्वारा दरबार साहिब और भारत स्थित डेरा बाबा नानक साहिब को जोड़ने वाले करतारपुर कॉरिडोर का उद्घाटन किया जाएगा। मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान अपनी-अपनी सीमाओं में इस कॉरिडोर का उद्घाटन करेंगे। मोदी पहले जत्थे में 500 से ज्यादा श्रद्धालुओं को रवाना करेंगे और पाकिस्तान में उनका स्वागत इमरान करेंगे। इनमें पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू जैसे वीआईपी भी शामिल हैं। पाकिस्तान सरकार ने कहा कि करतारपुर कॉरिडोर प्यार का गलियारा है।

12 नवंबर को सिखों के प्रथम गुरु गुरुनानक देव की 550वीं जयंती है। इससे 3 दिन पहले कॉरिडोर का उद्घाटन किया जाएगा।

मोदी 1 बजे श्रद्धालुओं का जत्था रवाना करेंगे

मोदी शनिवार को 12 बजे कॉरिडोर के उद्घाटन के लिए बटाला पहुंचेंगे। इसके बाद वे यहां से 7 किलोमीटर दूर डेरा बाबा नानक साहिब पहुंचकर दोपहर एक बजे श्रद्धालुओं के पहले जत्थे को रवाना करेंगे।

श्रद्धालुओं के पहले जत्थे में 117 वीआईपी

श्रद्धालुओं के पहले जत्थे में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह, पूर्व मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू, पंजाब सरकार के मंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा, तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा, गुरदासपुर से भाजपा सांसद सनी देओल शामिल हैं। इस जत्थे में 117 वीआईपी हैं। पूर्व पीएम मनमोहन सिंह को पाकिस्तान सरकार खुली जीप में करतारपुर साहिब तक ले जाने की तैयारी में है। भारत ने सभी की सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम करने को कहा है।

भारत में 7 हजार जवान, पाकिस्तान में रेंजर्स पर सुरक्षा का जिम्मा

कॉरिडोर की सुरक्षा के लिए भारत में 7 हजार जवान तैनात किए गए हैं। पाकिस्तान में पंजाब प्रांत में 100 सदस्यों वाला विशेष ‘पर्यटन पुलिस बल’ तैनात किया गया है। कॉरिडोर की सुरक्षा का जिम्मा पाकिस्तानी रेजरों पर है और पंजाब पुलिस उनके साथ कोऑर्डिनेशन करेगी। 

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सिंधु जल संधि: 1960 में नेहरू-अयूब में समझौता

- जल विवाद पर एक सफल उदाहरण है। कराची में 19 सितंबर, 1960 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे। दोनों देशों में दो युद्धों के बावजूद ये संधि कायम है। सिंधु का इलाका करीब 11.2 लाख किलोमीटर क्षेत्र में फैला है। पाक में 47%, भारत (39%), चीन (8%) और अफगानिस्तान (6%) में है।

समझौता एक्सप्रेस: 1976 में अटारी-वाघा के बीच चली ट्रेन

- दोनों देशों में सौहार्द बढ़ाने के लिए 22 जुलाई 1976 को अटारी-लाहौर के बीच शुरू की गई थी। समझौता एक्सप्रेस अटारी-वाघा के बीच 3 किमी का रास्ता तय करती है। इस ट्रेन के लोको पायलट और गार्ड चेंज नहीं होते। शताब्दी और राजधानी जैसी ट्रेनों के ऊपर प्राथमिकता दी जाती है। फिलहाल ट्रेन बंद है।

मैत्री बस सेवा : करगिल युद्ध में भी बस बंद नहीं की

- 19 फरवरी 1999 को मैत्री बस की शुरुआत की गई। उद्घाटन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था। वह पाकिस्तान भी गए थे। 1999 में जब करगिल हुआ, तो भी बस को बंद नहीं किया गया। हालांकि, 2001 में संसद पर हमले के इसे रद्द कर दिया गया। यह 2003 में फिर से चली। फिलहाल, बस सेवा है।

सीजफायर संधि : सीमा पर शांति के लिए बढ़ाए हाथ

- सीमा पर शांति के लिए दोनों देशों ने 2003 में युद्धविराम का ऐलान किया था। 25 नवंबर 2003 की आधी रात से युद्धविराम लागू हुआ था। अटल बिहारी वायपेयी की पहल के बाद एक औपचारिक युद्धविराम का ऐलान किया था। हालांकि, इसका उल्लंघन भी किया जा रहा है। 

पाकिस्तान के वो 4 गुरुद्वारे जहां कण-कण में नानक

गुरुद्वारा ननकाना साहिब (लाहौर)

- लाहौर से करीब 80 किलोमीटर दूर गुरु नानक जी का जन्म स्थान है। पहले इसे राय भोए दी तलवंडी के नाम से जानते थे। नानक जी के जन्म स्थान से जुड़ा होने से अब यह ननकाना साहिब बन गया है। गुरुद्वारा ननकाना साहिब लगभग 18,750 एकड़ में है। ये जमीन तलवंडी गांव के एक मुस्लिम मुखिया राय बुलार भट्टी ने दी थी।

करतारपुर साहिब (नारोवाल)

- सिखों के सबसे पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है। गुरु नानक 4 यात्राओं को पूरा करने के बाद यहीं बसे थे। यहां उन्होंने हल चलाकर खेती की। गुरु जी अपने जीवन काल के अंतिम 18 वर्ष यहीं रहे और यहीं अंतिम समाधि ली। यहीं गुरु जी ने रावी नदी के किनारे ‘नाम जपो, किरत करो और वंड छको’ का उपदेश दिया था। लंगर की शुरुआत भी यहीं से हुई थी। यह नारोवाल जिले में है।

गुरुद्वारा पंजा साहिब (रावलपिंडी)

- रावलपिंडी से 48 किलोमीटर दूर है। बताते हैं कि एक बार गुरु जी अंतरध्यान में थे, तभी वली कंधारी ने पहाड़ के ऊपर से एक विशाल पत्थर को गुरु जी पर फेंका। जब पत्थर उनकी तरफ आ रहा था, तभी गुरु जी ने अपना पंजा उठाया और वह पत्थर वहीं हवा में ही रुक गया। इस कारण गुरुद्वारे का नाम 'पंजा साहिब' पड़ा। आज भी पंजे के निशान ज्यों के त्यों है।

गुरुद्वारा चोआ साहिब (पंजाब प्रांत)

- यहां श्री गुरु नानक देव जी ठहरे थे, यह जगह 72 साल बाद 550वें प्रकाश पर्व पर श्रद्धालुओं के लिए खोली गई है। यह पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में मौजूद है। इस गुरुद्वारा साहिब को महाराजा रणजीत सिंह ने बनवाने का काम शुरू किया था, जो 1834 में बनकर पूरा हुआ। 72 वर्ष बंद रहे इस गुरुद्वारे में बनी भित्ति चित्रकला लगभग लुप्त हो चुकी है।

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