अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में अपने संभावित तीसरे राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ने को लेकर अटकलों को हवा दी है। उनके बयानों ने राजनीतिक गलियारों में बहस छेड़ दी है कि क्या अमेरिकी संविधान इसकी अनुमति देगा। ट्रंप ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि वह क्या फैसला लेंगे, लेकिन उन्होंने इस बात को भी खारिज नहीं किया कि वह दो बार राष्ट्रपति रहने की संवैधानिक सीमा को अदालत में चुनौती नहीं देंगे। यह मुद्दा अमेरिकी संवैधानिक कानून के एक महत्वपूर्ण पहलू को उजागर करता। है: राष्ट्रपति पद की अवधि पर सीमाएं और उन्हें बदलने की असाधारण कठिनाई।
22वां संशोधन: एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
अमेरिकी संविधान का 22वां संशोधन स्पष्ट रूप से कहता है कि कोई भी व्यक्ति राष्ट्रपति पद के लिए दो बार से अधिक नहीं चुना जा सकता। यह संशोधन 1951 में पारित हुआ था, लेकिन इसकी जड़ें फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट के अभूतपूर्व चार कार्यकालों में हैं और रूजवेल्ट ने परंपरा तोड़ते हुए लगातार तीन बार चुनाव जीता और चौथे कार्यकाल की शुरुआत में 1945 में उनका निधन हो गया। इस घटनाक्रम ने संविधान में स्थायी बदलाव की आवश्यकता को जन्म दिया, ताकि भविष्य में कोई भी राष्ट्रपति इतनी लंबी अवधि तक पद पर न रह सके, जो सत्ता के केंद्रीकरण को रोक सके। 22वें संशोधन का उद्देश्य लोकतांत्रिक सिद्धांतों को मजबूत करना और व्यक्तिगत शक्ति को सीमित करना था।
कानूनी विशेषज्ञों की राय
कानूनी विशेषज्ञ इस मुद्दे पर एकमत हैं। क्विनिपियाक यूनिवर्सिटी के कानून के प्रोफेसर वेन अंजर के अनुसार, संविधान स्पष्ट रूप से। कहता है कि कोई भी व्यक्ति केवल दो कार्यकाल ही राष्ट्रपति रह सकता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि भले ही यह मुद्दा कभी अदालत में नहीं पहुंचा, लेकिन अगर ट्रंप इस संवैधानिक प्रावधान को चुनौती देते हैं, तो सुप्रीम कोर्ट निश्चित रूप से इसे खारिज कर देगा। न्यायिक सिद्धांत और पूर्वcedent स्पष्ट हैं: 22वां संशोधन एक स्पष्ट और अटूट संवैधानिक जनादेश है। इस पर किसी भी तरह की चुनौती को अदालतों द्वारा गंभीरता से नहीं लिया जाएगा, क्योंकि इसका सीधा अर्थ संविधान की मूल भावना और ऐतिहासिक इरादे के खिलाफ जाना होगा।
संविधान संशोधन की जटिल प्रक्रिया
तकनीकी रूप से, अमेरिकी संविधान को बदला जा सकता है, लेकिन यह एक बेहद मुश्किल प्रक्रिया है, खासकर आज के गहरे राजनीतिक ध्रुवीकरण के दौर में और किसी भी संवैधानिक संशोधन के लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है, या तो हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स और सीनेट दोनों में, या दो-तिहाई राज्यों द्वारा बुलाई गई एक विशेष संवैधानिक सभा में। एक बार जब कोई संशोधन प्रस्तावित हो जाता है, तो उसे 50 में से 38 राज्यों (तीन-चौथाई) की विधानसभाओं द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए और यह एक बहुत ही ऊंची बाधा है, जिसके लिए व्यापक द्विदलीय सहमति की आवश्यकता होती है, जो वर्तमान राजनीतिक माहौल में लगभग असंभव प्रतीत होती है।
वर्तमान राजनीतिक समीकरण और चुनौतियाँ
फिलहाल, ट्रंप की रिपब्लिकन पार्टी हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में 219-213 की मामूली बढ़त और सीनेट में 53-47 बहुमत रखती है। वे 28 राज्य विधानसभाओं को नियंत्रित करते हैं। हालांकि, ये संख्याएं किसी भी संवैधानिक संशोधन को पारित करने के लिए आवश्यक दो-तिहाई बहुमत से काफी कम हैं और रिपब्लिकन सांसद एंडी ओग्ल्स ने जनवरी 2025 में 22वें संशोधन को बदलने का प्रस्ताव दिया था, जिससे सैद्धांतिक रूप से ट्रंप को 2029 में तीसरा कार्यकाल मिल सकता है। हालांकि, यह प्रस्ताव केवल प्रतीकात्मक प्रकृति का है और इसे पारित होने की कोई वास्तविक। संभावना नहीं है, क्योंकि इसके लिए डेमोक्रेट्स के पर्याप्त समर्थन की आवश्यकता होगी, जो अप्रत्याशित है।
**क्या ट्रंप उपराष्ट्रपति बन सकते हैं?
ट्रंप ने मजाक में सुझाव दिया था कि वे उपराष्ट्रपति बनकर जीत सकते हैं और फिर राष्ट्रपति के इस्तीफे के बाद सत्ता संभाल सकते हैं, लेकिन उन्होंने खुद स्वीकार किया कि लोगों को यह पसंद नहीं आएगा। हालांकि, संविधान का 12वां संशोधन (12th Amendment) इस रास्ते को भी बंद कर देता है। इसके अनुसार, जो व्यक्ति राष्ट्रपति बनने के योग्य नहीं है, वह उपराष्ट्रपति भी नहीं बन सकता। चूंकि ट्रंप ने पहले ही दो कार्यकाल पूरे कर लिए हैं, वे तीसरे कार्यकाल के लिए राष्ट्रपति पद के लिए अयोग्य हैं, और परिणामस्वरूप, उपराष्ट्रपति पद के लिए भी। इस प्रकार, अमेरिकी संविधान डोनाल्ड ट्रंप के लिए तीसरे कार्यकाल का रास्ता पूरी तरह से बंद कर देता है, चाहे वह राष्ट्रपति के रूप में हो या उपराष्ट्रपति के रूप में।