कोरोना वायरस / किस राज्य में सबसे ज्यादा और किस में कम लोगों में कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडी मिली?

Zoom News : Jul 29, 2021, 07:16 AM
नई दिल्ली: केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बुधवार को सभी राज्यों को सलाह दी है कि वे कोरोना वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी की जांच को लेकर जिलास्तर पर डेटा इकट्ठा करने के लिए इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के साथ विचार-विमर्श कर सीरो-प्रिवलेंस सर्वे करें. मंत्रालय ने कहा कि स्थानीय स्तर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिहाज से यह जरूरी है. स्वास्थ्य मंत्रालय ने चौथे राष्ट्रीय सीरो सर्वे का राज्यवार आंकड़ा भी जारी किया, जिसके मुताबिक कम से कम दो-तिहाई आबादी में कोरोना वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी पाई गई.

14 जून से 6 जुलाई के बीच देश के 21 राज्यों के 70 जिलों में यह राष्ट्रीय सीरो-सर्वे किया गया. इस सर्वे के मुताबिक, मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा 79 फीसदी, इसके बाद राजस्थान में 76.2 फीसदी, बिहार में 75.9 फीसदी, गुजरात में 75.3 फीसदी लोगों में एंटीबॉडी पाई गई. जबकि केरल 44.4 प्रतिशत के साथ सबसे नीचे है. असम में सीरो-प्रिवलेंस 50.3 फीसदी और महाराष्ट्र में 58 फीसदी है.

केरल के सबसे नीचे होने का क्या मतलब है

सीरो सर्वे में सबसे निचले पायदान पर केरल है, क्या इसका मतलब यह है कि राज्य हर्ड इम्युनिटी हासिल करने में सबसे पीछे है. हां, क्योंकि राज्य में कोरोना संक्रमण की मौजूदा स्थिति भी यही बता रही है. देश भर में बुधवार को सामने आए नए मामलों में केरल की हिस्सेदारी 50 फीसदी है. संक्रमण के इतने केस आने का मतलब है कि काफी लोगों में एंटीबॉडी विकसित नहीं हो पाई है.

केरल के कोविड एक्सपर्ट कमिटी के सदस्य डॉ अनीश ने समाचार एजेंसी एएनआई को बताया कि आनुपातिक रूप से देखें तो राज्य में राष्ट्रीय औसत से ज्यादा लोगों को वैक्सीन लगाई गई है. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को केरल को और अधिक वैक्सीन उपलब्ध करानी चाहिए क्योंकि राज्य हर्ड इम्युनिटी हासिल करने में राष्ट्रीय औसत से पीछे है.

सीरो सर्वे और तीसरी लहर का अनुमान

क्या सीरो सर्वे के नतीजों को संक्रमण की तीसरी लहर से जोड़ा जा सकता है? सीरोप्रीवेलेंस की सूची में सबसे नीचे जो तीन राज्य है, उनमें केरल, असम और महाराष्ट्र हैं. असम में संक्रमण की स्थिति चिंताजनक है, क्योंकि रोजाना आने वाले केस की संख्या कम नहीं हो रही है. वहीं महाराष्ट्र में कोरोना का ग्राफ स्थिर है. उत्तर-पूर्व के राज्यों में भी संक्रमण के अधिक मामले दर्ज हो रहे हैं. जिन राज्यों में एंटीबॉडी का प्रतिशत कम पाया गया है, वहां नए मामलों की संख्या ज्यादा दर्ज की जा रही हैं, इसलिए आने वाली लहर के खतरे को कम नहीं आंका जा सकता है.

ICMR के डायरेक्टर डॉ बलराम भार्गव ने कहा था कि एक महत्वपूर्ण बात यह याद रखने की जरूरत है कि राष्ट्रीय सीरो सर्वे स्थानीय (राज्य या जिला) स्तर के सर्वे का विकल्प नहीं है. यह देश में स्थिति का सिर्फ एक साधारण अनुमान भर है. उन्होंने यह भी कहा था कि लेकिन राज्य दर राज्य इसमें विविधता है. राज्य स्तर पर विविधिता संक्रमण के भविष्य की लहर का संकेत देता है.

40 करोड़ लोगों को अब भी संक्रमण का खतरा

स्वास्थ्य मंत्रालय ने हाल ही में सर्वे के नतीजों को लेकर कहा था कि एक तिहाई आबादी में यह एंटीबॉडी नहीं है, जिसका मतलब है कि करीब 40 करोड़ लोगों को अब भी कोरोना वायरस संक्रमण का खतरा है. सरकार के मुताबिक, सर्वेक्षण में शामिल किए गए स्वास्थ्य कर्मियों में 85 फीसदी में एंटीबॉडी पाई गई. इस सर्वे में 28,975 आम आदमी और 7,252 स्वास्थ्य कर्मियों को शामिल किया गया था.

सीरो सर्वे से यह पता चलता है कि कोरोना वायरस के खिलाफ कितने लोगों में एंटीबॉडी बन चुकी है. यह या तो वैक्सीनेशन से हो सकता है या किसी व्यक्ति के वायरस से संक्रमित होने के बाद डेवलेप होता है. एंटीबॉडी संक्रमण से लड़ने में मदद करता है. एंटीबॉडी प्रोटीन होते हैं, जो शरीर में संक्रमण होने या वैक्सीन लगने के तुरंत बाद इम्यून सिस्टम के द्वारा बनाया जाता है. जब कोई व्यक्ति कोविड-19 से संक्रमित होता है, उसका शरीर संक्रमण से लड़ने के लिए एंटीबॉडी पैदा करता है.

एंटीबॉडी की जांच कैसे होती है?

एंटीबॉडी या सीरोलॉजी टेस्ट खून में पाए जाने वाली एंटीबॉडी को पहचानने के लिए किया जाता है, ताकि पता चल सके कि कोई व्यक्ति पहले वायरस से संक्रमित हुआ है या नहीं. अगर कोई व्यक्ति संक्रमित है तो उसमें इस टेस्ट के दौरान एंटीबॉडी का पता नहीं भी चल सकता है, क्योंकि शरीर में एंटीबॉडी बनने में 1 से 3 सप्ताह का समय लगता है. एंटीबॉडी टेस्ट निगेटिव आने पर पता चलता है कि व्यक्ति कोविड-19 से कभी संक्रमित नहीं हुआ हो, वहीं पॉजिटिव आने का मतलब होता है कि व्यक्ति ने वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी डेवलेप कर लिया.

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