स्पिनालॉन्गा द्वीप / एक ऐसा वीरान आइलैंड, जिसका रहस्य नहीं पता था दुनिया को

AMAR UJALA : Feb 17, 2020, 04:03 PM
स्पिनालॉन्गा द्वीप: आप में से बहुत से लोगों ने कहीं न कहीं ये पढ़ा होगा-कुष्ठ रोग साध्य है। मतलब ये कि कुष्ठ रोग यानी कोढ़ की बीमारी का इलाज मुमकिन है। भारत सरकार पिछले कई दशक से इस बीमारी से देश को निजात दिलाने के लिए काम कर रही है। हालांकि आज भी दुनिया के आधे से ज्यादा नए कुष्ठ रोगी भारत में ही होते हैं। कोढ़ की बीमारी बहुत बुरी मानी जाती रही है। सदियों से इसके शिकार लोगों को समाज से अलग-थलग करने का चलन रहा है। पहले तो कोढ़ के शिकार लोगों को एकदम अलग ही रखा जाता था। बाद में उनके लिए कुष्ठ रोगी आश्रम बननलगे। आज भी देश में कई कुष्ठ रोगी आश्रम चलते हैं। सिर्फ हिंदुस्तान में ही नहीं, बहुत से पश्चिमी देशों में भी कोढ़ के मरीजों के साथ ऐसा ही सुलूक किया जाता था। यूरोपीय देश ग्रीस या यूनान में तो एक जजीरा ही कोढ़ के मरीजों के लिए अलग कर दिया गया था। 

इस जजीरे का नाम है-स्पिनालॉन्गा। ये यूनान के सबसे बड़े द्वीप क्रीट के पास स्थित है। स्पिनालॉन्गा का कुल इलाका 8.5 हेक्टेयर का है। ये भूमध्य सागर मे मिराबेलो की खाड़ी के मुहाने पर स्थित है। आज की तारीख में स्पिनालॉन्गा द्वीप पर कोई भी नहीं रहता। बहुत कम लोग ही वहां आते-जाते हैं। ये द्वीप क्रीट के गांव प्लाका से थोड़ी ही दूरी पर स्थित है, मगर उसमें बहुत कम लोगों की दिलचस्पी है।

किसी जमाने में स्पिनालॉन्गा द्वीप एक बड़ा फौजी अड्डा हुआ करता था। पहले वेनिस के राजा ने यहां पर सैनिक अड्डा बनाया था। बाद में तुर्की के ऑटोमान साम्राज्य ने यहां पर किलेबंदी कर के रखी थी। 1904 में क्रीट के निवासियों ने तुर्कों को अपने देश से खदेड़ दिया। इसके बाद स्पिनालॉन्गा को कोढ़ के मरीजों का अड्डा बना दिया गया। एक वक्त में इस द्वीप पर 400 के करीब कोढ़ के मरीज रहा करते थे। 

क्रीट और यूनान के दूसरे हिस्सों से कुष्ठ रोगियों को यहां लाकर रखा जाता था। उनकी पहचान खत्म कर दी जाती थी। उनकी संपत्तियां छीन ली जाती थीं। स्पिनालॉन्गा द्वीप पर कुष्ठ के मरीजों के इलाज का भी कोई इंतजाम नहीं था। एक डॉक्टर यहां तैनात किया गया था, मगर वो भी तब आता था जब इस जजीरे के किसी बाशिंदे को दूसरी बीमारी हो जाती थी। 

यूं तो 1940 के दशक में वैज्ञानिकों ने कोढ़ का इलाज खोज निकाला था। मगर, यूनान की सरकार ने स्पिनालॉन्गा में रहने वालों के इलाज की कोशिश ही नहीं की। कोढ़ के मरीजों का ये केंद्र 1957 तक चलता रहा था। 1957 में एक ब्रिटिश एक्सपर्ट ने यहां का हाल देखा और पूरी दुनिया को बताया। यूनान की सरकार को इसकी वजह से काफी शर्मिंदगी उठानी पड़ी, जिसके बाद यहां के सभी लोगों को इलाज के लिए ले जाया गया। ये कुष्ठ रोगी आश्रम बंद कर दिया गया। यूनान की सरकार ने इस जजीरे पर कोढ़ के मरीजों के रहने के सभी सबूत मिटाने की कोशिश की। 

जब यहां के कोढ़ के मरीज चले गए तो स्पिनालॉन्गा द्वीप वीरान हो गया। कोई यहां झांकने भी नहीं आता था। दुनिया का ध्यान इस द्वीप पर तब गया, जब ब्रिटिश लेखिका विक्टोरिया हिस्लॉप ने इस जजीरे के मरीजों की जिंदगी को बुनियाद बनाकर एक फंतासी उपन्यास लिखा। तब जाकर लोगों को पता चला कि दुनिया से दूर कर दिए गए कोढ़ के इन मरीजों की जिंदगी कैसी होती थी। बाद के दिनों में यहां के एक मरीज एपामिनॉनडास रेमोन्डाकिस ने मॉरिस बॉर्न के साथ मिलकर यहां के लोगों पर एक किताब लिखी।

इस जजीरे पर जाएं तो सन्नाटे का शोर आप के कान फाड़ता-सा मालूम होता है। पुरानी इमारतों के खंडहर मिलते हैं। कोढ़ियों के लिए बनाए गए बाजार के सबूत हैं। एक कब्रिस्तान है। एक भट्टी भी यहां थी, जहां कोढ़ियों के कपड़े जलाए जाते थे। 

असल में 1957 में जब यहां की कुष्ठ रोगी कॉलोनी को बंद किया गया तो यूनान की सरकार चाहती थी कि इसका कोई भी सबूत दुनिया को न मिले। इसीलिए यहां की सारी फाइलें जला दी गईं। यहां के रहने वालों को किसी से बात करने के लिए मना कर दिया गया। इसी वजह से इस जजीरे का राज दुनिया की नजरों से ओझल रहा। यूं लगा जैसे स्पिनालॉन्गा नाम का कोई द्वीप ही इस धरती पर नहीं, पर हालात विक्टोरिया हिस्लॉप के उपन्यास से बदल गए। सैलानी यहां आने लगे। पुराने कुष्ठ रोगियों ने लोगों से बात करनी शुरू की। लोगों को पता लगा कि कोढ़ के मरीजों के लिए यहां अलग से कोई इंतजाम नहीं किया गया था। वेनिस और तुर्की के शासकों ने यहां सैनिकों के रहने के लिए जो इमारतें बनवाई थीं, उन्हीं में मरीज रहा करते थे। द्वीप के चारों तरफ दीवार थी, जिसमें कुष्ठ रोगी कैदियों जैसी जिंदगी बिताते थे। बाद में सरकार की इजाजत से इस दीवार को तोड़ दिया गया ताकि मरीज समुद्र के किनारे आजाद हवा में सांस ले सकें। 

जब रेमोनडाकिस इस द्वीप पर रहने आए तो उन्होंने हालात सुधारने की पहल की। कुछ नियम-कायदे बनाए गए। मसलन, किसी को भी आईना देखने की इजाजत नहीं थी। जो संगीत के जानकार मरीज थे, उनकी मदद से संगीत की महफिलें सजाई जाने लगीं।

द्वीप पर सेंट जॉर्ज के नाम का एक गिरजाघर भी है। इसे वेनिस के लोगों ने बनवाया था। साथ ही यहां एक कब्रिस्तान भी है। जब अस्सी के दशक में यहां सैलानी आते थे, तो वे कब्रों को बहुत नुकसान पहुंचाया करते थे। 2013 में इन सभी हड्डियों को इकट्ठा करके एक बड़ी-सी कब्र बनवाई गई। कुष्ठ रोगियों की कॉलोनी खत्म होने के बाद से आज कई साल बाद भी स्पिनालॉन्गा द्वीप वीरान पड़ा है। मगर ये अपने आप में इंसान के इतिहास को शर्मसार करने वाला पन्ना छुपाए हुए है। 

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