Punjab Election 2022 / सीएम फेस के लिए चन्नी और सिद्धू के गुटों ने राहुल दरबार में तेज की लॉबिंग, किसकी लग सकती है लॉटरी!

Zoom News : Jan 28, 2022, 08:20 PM
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एलान किया कि पंजाब में कांग्रेस मुख्यमंत्री चेहरे के साथ चुनाव लड़ेगी। इसके बाद से ही मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के बीच सीएम चेहरे को लेकर जंग तेज हो गई है। दोनों गुटों के नेता और कार्यकर्ता दिल्ली दरबार के आगे उनका प्रस्ताव रखें इसके लिए दोनों धड़ों ने तेजी से लॉबिंग करना शुरू कर दिया है। हालांकि मुख्यमंत्री पद के चेहरे की इस रेस में फिलहाल चन्नी सिद्धू से आगे नजर आ रहे हैं।

चन्नी इसलिए आगे हैं सिद्धू से

चन्नी के लिए सबसे खास बात यह है कि 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव का परिणाम और दलित वोट बैंक का गणित देखें तो वह मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के पक्ष में हैं। चन्नी न केवल विधानसभा चुनाव अपनी सीट पर जीते बल्कि लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी को अपनी सीट से सबसे ज्यादा वोट दिलवाया। चन्नी के सहारे कांग्रेस पंजाब में 32 फीसदी दलित वोट बैंक को साध सकती है। जबकि सिद्धू जिस जाट सिख कम्युनिटी से आते हैं, उनके सिर्फ 19 फीसदी वोट हैं जिसमें अकाली दल का भी दबदबा माना जाता है।

सीएम पद संभालने के बाद चन्नी ने 111 दिन में ताबड़तोड़ फैसले लिए। कैप्टन की महाराजा छवि को तोड़ा। वीआईपी इमेज को भी काफी कम किया। हालांकि अंतिम दिनों में उनकी साली के बेटे भूपिंदर हनी पर ईडी की रेड पड़ी, जिसके बाद से वे सवालों के घेरे में आ गए। भाजपा और अकाली भी लगातार इस मसले पर चन्नी को घेर रहे हैं। क्योंकि अवैध रेत माफिया पंजाब के सबसे बड़े मुद्दों में से एक है। कैप्टन अमरिंदर सिंह भी सीधे चन्नी पर अवैध रेत खनन को लेकर आरोप लगा रहे हैं। इसके उलट सिद्धू के सियासी जीवन में ऐसे कोई आरोप नहीं है।

चन्नी तीन बार पार्षद का चुनाव जीते। इसके अलावा वे खरड़ नगर काउंसिल के अध्यक्ष भी रहे। 2007 में कांग्रेस पार्टी ने टिकट नहीं दिया तो निर्दलीय जीते। इसके बाद 2012 और 2017 में चमकौर साहिब सीट से विधायक बने। उन्हें 61 हजार 60 वोट मिले। उनका वोट प्रतिशत 42.26 फीसदी रहा। 2017 में कैप्टन अमरिंदर की सरकार में तकनीकी शिक्षा मंत्री बने। 2019 के लोकसभा चुनाव में आनंदपुर साहिब सीट से कांग्रेस प्रत्याशी को चमकौर साहिब से 46.99 फीसदी वोट मिले। चन्नी की पकड़ और वोट बैंक के बदौलत पार्टी को इस सीट से जीत मिली। इसी सीट से कांग्रेस के मनीष तिवारी सांसद हैं, जो अकसर सिद्धू पर निशाना साधते रहते हैं।

लोकसभा में जहां सिद्धू ने प्रचार किया वहां हारी कांग्रेस

सिद्धू 2017 में कांग्रेस में शामिल होकर अमृतसर ईस्ट से विधायक बने। इन चुनावों में सिद्धू को 67 हजार 865 वोट मिले। इन चुनावों में उन्हें 61.01 फीसदी यानी आधे से ज्यादा वोट मिले। हालांकि दो साल बाद लोकसभा चुनाव हुए तो यह कांग्रेस के लोकसभा उम्मीदवार का वोट शेयर 53.2 फीसदी ही रह गया। जबकि अकाली-भाजपा गठबंधन के उम्मीदवार का वोट प्रतिशत 2017 में 17.82 फीसदी के मुकाबले बढ़कर 40.33 फीसदी हो गया। लोकसभा चुनाव में सिद्धू को बठिंडा और गुरदासपुर की जिम्मेदारी दी थी। दोनों जगह सिद्धू ने प्रचार किया। दोनों ही सीटें कांग्रेस हार गई।

इसके पहले सिद्धू 2004 लोकसभा के चुनाव में भाजपा के टिकट पर अमृतसर से लोकसभा चुनाव जीते। 2006 में गैर इरादतन हत्या के मामले में सजा के बाद उन्होंने सांसद पद से इस्तीफा दे दिया। फिर 2007 लोकसभा उपचुनाव जीता। 2009 का लोकसभा चुनाव अमृतसर से फिर जीता। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उनका टिकट काटकर अरुण जेटली को दिया। फिर 2016 में भाजपा ने सिद्धू को राज्यसभा भेजा लेकिन उन्होंने सदस्यता छोड़ दी।

जब अपने ही हुए सिद्धू के खिलाफ

पंजाब के राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, कैप्टन अमरिंदर सिंह को जो वजह सीएम कुर्सी से हटाने के लिए बनी, वही सिद्धू को दूर रखने के लिए भी बनती हुई दिखाई दे रही है। कैप्टन के खिलाफ बगावत करने वाले चन्नी, मंत्री सुखजिंदर रंधावा, तृप्त राजिंदर बाजवा, विधायक कुलबीर जीरा जैसे कई नेता पहले सिद्धू के साथ थे, जिन्होंने कैप्टन को हटाने के लिए मोर्चा संभाला था। लेकिन इसी बीच रंधावा और सिद्धू में सीएम की कुर्सी की जंग हो गई। फिर चरणजीत चन्नी सीएम बन गए। जिसके बाद से ये ग्रुप चन्नी के साथ बना हुआ है। जो खुलकर चन्नी को सीएम चेहरा बनाने की वकालत कर रहे हैं। कैप्टन के जाने के बाद उनके जो करीबी कांग्रेस में रह गए, वह भी चन्नी के समर्थन में हैं।


SUBSCRIBE TO OUR NEWSLETTER