Rajasthan Politics / राजस्थान पंचायत-निकाय चुनाव: सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की याचिका खारिज की, 15 अप्रैल तक होंगे चुनाव

सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार की शहरी निकाय और पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव टालने की याचिका खारिज कर दी है। अब ये चुनाव 15 अप्रैल तक ही होंगे और तब तक प्रशासक पद पर बने रहेंगे। कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश में दखल देने से इनकार किया।

राजस्थान में शहरी निकायों और पंचायती राज संस्थाओं के चुनावों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है और शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) को खारिज करते हुए यह स्पष्ट कर दिया है कि ये चुनाव 15 अप्रैल से आगे नहीं टलेंगे। इस फैसले के साथ ही, इन संस्थाओं में नियुक्त प्रशासक भी चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक अपने पदों पर बने रहेंगे और यह निर्णय राजस्थान के स्थानीय स्वशासन और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के लिए एक बड़ा मील का पत्थर साबित होगा, जो समय पर चुनाव सुनिश्चित करने की दिशा में एक मजबूत संदेश देता है।

सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

न्यायमूर्ति जॉयमाला बागची और न्यायमूर्ति विपुल एम और पंचोली की खंडपीठ ने शुक्रवार को यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि राजस्थान हाईकोर्ट पहले ही चुनाव प्रक्रिया के लिए 15 अप्रैल तक की समय-सीमा तय कर चुका है और इसके अलावा, राज्य सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट को यह आश्वासन दिया था कि चुनाव उसी निर्धारित अवधि में करा लिए जाएंगे। ऐसे में, शीर्ष अदालत ने इस स्तर पर हस्तक्षेप करने की कोई आवश्यकता नहीं समझी और यह फैसला लोकतांत्रिक व्यवस्था में समयबद्ध चुनावों के महत्व को रेखांकित करता है और यह सुनिश्चित करता है कि स्थानीय निकायों का संचालन निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा ही हो।

हाईकोर्ट के आदेश पर नहीं दखल

सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के उस आदेश में दखल देने से इनकार कर दिया, जिसमें 14 नवंबर को राज्य सरकार को शहरी निकाय चुनाव 15 अप्रैल 2026 तक कराने की अनुमति दी गई थी। इस आदेश को पूर्व विधायक संयम लोढ़ा ने एसएलपी दाखिल कर चुनौती दी थी। लोढ़ा की याचिका में यह तर्क दिया गया था कि चुनाव में देरी से लोकतांत्रिक व्यवस्था कमजोर हो रही है और परिसीमन को चुनाव टालने का आधार नहीं बनाया जा सकता और सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट के मूल आदेश की समय-सीमा को बरकरार रखा, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि चुनाव जल्द से जल्द संपन्न हों।

परिसीमन को चुनाव टालने का आधार नहीं

याचिकाकर्ता संयम लोढ़ा की ओर से अधिवक्ता गौरव अग्रवाल ने सुप्रीम कोर्ट में जोरदार दलीलें पेश कीं। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि चुनाव में अनावश्यक देरी से लोकतांत्रिक सिद्धांतों का हनन होता है और यह स्थानीय स्वशासन की भावना के खिलाफ है। अग्रवाल ने इस बात पर जोर दिया कि परिसीमन जैसे प्रशासनिक कार्य को चुनाव टालने के लिए एक वैध आधार के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। उनका तर्क था कि परिसीमन एक सतत प्रक्रिया है जिसे चुनावी प्रक्रिया को बाधित किए बिना भी पूरा किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को गंभीरता से लिया और अपने फैसले में इसे एक महत्वपूर्ण बिंदु। के रूप में शामिल किया, जिससे भविष्य में भी ऐसे ही मामलों में एक नजीर स्थापित होगी।

राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के. एम. नटराज ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि नगर निगम वार्डों के परिसीमन का काम लगभग पूरा हो चुका है। उन्होंने अदालत को यह भरोसा भी दिलाया कि पूरी चुनाव प्रक्रिया तय समयसीमा में पूरी कर ली जाएगी। नटराज ने यह भी तर्क दिया कि यदि इस समय न्यायालय का दखल होता है, तो। परिसीमन प्रक्रिया प्रभावित होगी और इससे प्रदेश में प्रशासनिक अव्यवस्था की स्थिति पैदा हो सकती है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के आश्वासन को रिकॉर्ड पर लेते हुए, उसकी याचिका। को खारिज कर दिया, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि चुनाव निर्धारित समय पर ही होंगे।

लोकतांत्रिक प्रक्रिया का महत्व

यह फैसला भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली में स्थानीय निकायों के महत्व को दर्शाता है। शहरी निकाय और पंचायती राज संस्थाएं जमीनी स्तर पर लोकतंत्र की रीढ़ होती हैं, जो नागरिकों को सीधे शासन में भाग लेने का अवसर प्रदान करती हैं और इन चुनावों में देरी से न केवल निर्वाचित प्रतिनिधियों की अनुपस्थिति में प्रशासनिक शून्यता पैदा होती है, बल्कि यह नागरिकों के अधिकारों और उनकी आकांक्षाओं को भी प्रभावित करता है। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय यह सुनिश्चित करता है कि लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं समय पर पूरी हों और नागरिकों को अपने प्रतिनिधियों को चुनने का अधिकार मिले।

प्रशासकों का कार्यकाल जारी

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद यह भी स्पष्ट हो गया है कि शहरी निकायों और पंचायती राज संस्थाओं में नियुक्त प्रशासक चुनाव प्रक्रिया पूरी होने तक अपने पदों पर बने रहेंगे और यह व्यवस्था तब तक जारी रहेगी जब तक नए निर्वाचित प्रतिनिधि अपना कार्यभार नहीं संभाल लेते। प्रशासकों की निरंतरता यह सुनिश्चित करेगी कि स्थानीय प्रशासन में कोई व्यवधान न आए और आवश्यक सेवाएं तथा विकास कार्य सुचारु रूप से चलते रहें। यह एक अंतरिम व्यवस्था है जो लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए प्रतिनिधियों के आने तक प्रशासनिक स्थिरता बनाए रखने के लिए आवश्यक है।

आगे की राह

सुप्रीम कोर्ट के इस स्पष्ट निर्देश के बाद, राजस्थान सरकार को अब 15 अप्रैल की समय-सीमा के भीतर शहरी निकाय और पंचायत चुनाव संपन्न कराने होंगे। यह एक बड़ी चुनौती हो सकती है, लेकिन सरकार ने स्वयं अदालत को आश्वासन दिया है कि वह इस समय-सीमा का पालन करेगी। इस फैसले से राज्य में स्थानीय स्वशासन को मजबूती मिलेगी और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में लोगों का विश्वास और बढ़ेगा। अब सभी की निगाहें राज्य चुनाव आयोग और सरकार पर होंगी कि वे किस तरह से इस आदेश का पालन करते हुए समय पर चुनाव संपन्न कराते हैं। यह निर्णय राजस्थान के राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण मोड़। साबित होगा, जो स्थानीय स्तर पर लोकतंत्र को सशक्त करेगा।