दुनिया भर में इन दिनों सोने की कीमतों में लगातार उछाल देखा जा रहा है, और इस बढ़ती प्रवृत्ति के बीच, कई केंद्रीय बैंक अपने सोने के भंडार को तेजी से बढ़ा रहे हैं. वैश्विक तनाव और आर्थिक अनिश्चितता के माहौल में, सोना एक सुरक्षित निवेश के रूप में देखा जाता है और भारत सहित कई देश इस दौड़ में शामिल हैं, लेकिन इस मामले में चीन सबसे आगे है. हालांकि, चीन की सोने की खरीदारी का तरीका रहस्यमय बना हुआ है, क्योंकि वह अपनी वास्तविक खरीद को आधिकारिक आंकड़ों में बहुत कम दिखाता है. यह स्थिति कई सवाल खड़े करती है: क्या चीन अपनी अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए ऐसा? कर रहा है, या इसके पीछे अमेरिका को आर्थिक रूप से पीछे छोड़ने की कोई बड़ी योजना है?
आंकड़ों में विसंगति और वास्तविक खरीद
चीन ने इस साल बड़ी मात्रा में सोना खरीदा है, लेकिन आधिकारिक आंकड़ों में इसकी खरीद बहुत कम दिखाई गई है. अनुमानों के अनुसार, चीन अब तक लगभग 240 टन सोना खरीद चुका है, जबकि उसने आधिकारिक तौर पर केवल 24 टन की खरीद दर्ज की है. यह एक महत्वपूर्ण अंतर है जो चीन के वास्तविक सोने के भंडार के बारे में संदेह पैदा करता है. सरकार के अनुसार, चीन के पास 2,304 टन सोने का भंडार है, लेकिन व्यापक रूप से यह माना जाता है कि उसका असली भंडार इस आंकड़े से कई गुना अधिक है. यह विसंगति वैश्विक वित्तीय बाजारों में चीन की रणनीति को लेकर अटकलों को जन्म देती है.
गोल्डमैन सैक्स की रिपोर्ट और छिपी हुई खरीदारी
गोल्डमैन सैक्स की एक रिपोर्ट ने चीन की छिपी हुई सोने की खरीदारी पर और प्रकाश डाला है. रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने सितंबर में 15 टन सोना खरीदा था, लेकिन उसने अपने रिकॉर्ड में केवल 1. 5 टन दिखाया, जिसका अर्थ है कि वास्तविक खरीदारी आधिकारिक आंकड़े से 10 गुना अधिक थी. इसी तरह, अप्रैल में भी चीन ने 27 टन सोना. खरीदा था, जो आधिकारिक आंकड़ों से 13 गुना अधिक था. अक्टूबर के रिकॉर्ड में केवल 0. 9 टन की खरीद दिखाई गई है, जिससे कुल आधिकारिक सोना भंडार 2,304. 5 टन हो गया है. यह पैटर्न दर्शाता है कि चीन जानबूझकर अपनी सोने की खरीद को. कम करके आंक रहा है, जिससे उसके इरादों पर सवाल उठते हैं.
चीन के सोने की खरीदारी के पीछे के संभावित कारण
चीन की इस रहस्यमय सोने की खरीदारी के पीछे कई संभावित कारण हो सकते हैं. एक मुख्य कारण अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करना और अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करना हो सकता है. वैश्विक व्यापार में डॉलर का प्रभुत्व चीन के लिए एक चिंता का विषय रहा है, और सोने का. भंडार बढ़ाना अपनी मुद्रा को मजबूत करने और बाहरी झटकों से बचाने का एक तरीका हो सकता है. इसके अलावा, भू-राजनीतिक तनाव के बीच, सोना एक सुरक्षित हेवन संपत्ति के रूप में कार्य करता है, जो चीन को वैश्विक अनिश्चितताओं के खिलाफ एक बफर प्रदान करता है.
वैश्विक सोने के भंडार में चीन की स्थिति
वर्तमान में, दुनिया में पांच देशों के पास चीन से अधिक सोना है. अमेरिका के पास सबसे बड़ा सोने का भंडार है, जो 8,133 टन है, और यह उसके कुल विदेशी भंडार का 78% हिस्सा है. पिछले 25 वर्षों में अमेरिका के सोने के भंडार में ज्यादा बदलाव नहीं आया है, जो उसकी आर्थिक स्थिरता को दर्शाता है. जर्मनी 3,350 टन के साथ दूसरे स्थान पर है, उसके बाद इटली (2,452 टन), फ्रांस (2,437 टन) और रूस (2,330 टन) हैं और आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, चीन 2,304. 5 टन के साथ छठे स्थान पर आता है और हालांकि, यदि चीन के वास्तविक भंडार को ध्यान में रखा जाए, तो उसकी स्थिति काफी बेहतर हो सकती है.
चीन की महत्वाकांक्षाएं और भविष्य की संभावनाएं
चीन के कुल विदेशी भंडार का आकार 3. 34 ट्रिलियन डॉलर है, जिसमें सोने की हिस्सेदारी केवल 7% है, जबकि दुनिया का औसत 22% है. यह दर्शाता है कि चीन के पास अभी भी अपने विदेशी भंडार में सोने की हिस्सेदारी बढ़ाने की काफी गुंजाइश है. साल 2009 में, चीन गोल्ड एसोसिएशन के एक अधिकारी ने कहा था कि चीन को कम से कम 5,000 टन सोने का भंडार रखना चाहिए. यदि चीन इस लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है, तो वह अमेरिका के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा सोना भंडार वाला देश बन जाएगा. विशेषज्ञों का मानना है कि यदि चीन आने वाले दशकों में दुनिया की नंबर-1. अर्थव्यवस्था बनना चाहता है, तो उसके पास 8,000 टन या उससे अधिक सोना होना चाहिए. चीन इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ता दिख रहा है, लेकिन अमेरिका को पीछे छोड़ना. अभी भी एक बड़ी चुनौती होगी, खासकर उसके विशाल और स्थिर सोने के भंडार को देखते हुए.