India-China Relations / भारत-चीन कैसे बने थे दुश्मन, कितनी पुरानी रंजिश? अब दोनों दोस्ती की राह पर

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत-रूस संबंधों पर बयानों और टैरिफ घोषणा के बीच पीएम नरेंद्र मोदी महीने के अंत में चीन जाएंगे। वे शंघाई सहयोग संगठन सम्मेलन में भाग लेंगे। 2018 के बाद यह पहली चीन यात्रा होगी, जो दोनों देशों के बिगड़े रिश्तों में सुधार का संकेत है।

India-China Relations: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से भारत-रूस संबंधों को लेकर लगातार दिए जा रहे बयानों, टैरिफ और जुर्माने की घोषणा के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी महीने के अंत में चीन की यात्रा पर जाएंगे। वहां वह शंघाई सहयोग संगठन (SCO) सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। इस यात्रा के बारे में सरकार जल्द आधिकारिक घोषणा कर सकती है। साल 2018 के बाद भारतीय प्रधानमंत्री की यह पहली चीन यात्रा होगी। साल 2020 में गलवान घाटी में चीन के सैनिकों की घुसपैठ के बाद दोनों देशों के रिश्ते काफी खराब हो गए थे। हालांकि, अब इसमें सुधार होता दिख रहा है। आइए जानते हैं कि भारत और चीन की दुश्मनी कितनी पुरानी है और यह कैसे शुरू हुई थी।

रिश्तों में सुधार के संकेत

भारत-चीन के बीच दुश्मनी के बावजूद हाल के दिनों में रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलती दिखाई दे रही है। पिछले साल रूस के कजान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच मुलाकात के बाद इसमें और सुधार देखने को मिला है। अब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर टैरिफ लगाने की घोषणा के बाद चीन ने कड़ी नाराजगी जताई है। चीन के विदेश मंत्री ने अमेरिका की इस घोषणा को अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन बताया है। चीन का कहना है कि अमेरिका दूसरे देशों को दबाने के लिए टैरिफ का सहारा ले रहा है। अब चर्चा है कि दोनों देश रूस के साथ मिलकर ट्रंप को जवाब दे सकते हैं।

भारत-चीन दुश्मनी की जड़ें: तिब्बत और मैकमोहन रेखा

भारत और चीन के बीच दुश्मनी की जड़ें काफी गहरी हैं और इसका कारण तिब्बत है। यह कहानी ब्रिटिश शासनकाल से शुरू होती है। साल 1914 में तत्कालीन भारत सरकार (ब्रिटिश शासन) और तिब्बत के बीच शिमला समझौता हुआ था। इस समझौते पर ब्रिटिश प्रशासक सर हेनरी मैकमोहन और तिब्बत के प्रतिनिधियों ने दस्तखत किए थे। इस समझौते के तहत तवांग सहित पूर्वोत्तर सीमांत क्षेत्र और बाहरी तिब्बत के बीच एक सीमा रेखा खींची गई, जिसे मैकमोहन रेखा के नाम से जाना जाता है। ब्रिटिश हुकूमत ने साल 1938 में इस रेखा को दर्शाता हुआ एक नक्शा भी प्रकाशित किया था।

आजादी के बाद बढ़ा तनाव

साल 1947 में भारत को स्व complexe और साल 1949 में पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का गठन हुआ। इसके बाद चीन ने शिमला समझौते को खारिज करना शुरू कर दिया। उसका कहना था कि तिब्बत पर उसका हक है और वहां की सरकार और अंग्रेजों के बीच हुए किसी समझौते को वह नहीं मानेगा। साल 1951 में चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया, जिसके बाद हालात और बिगड़ गए। भारत ने तिब्बत को एक अलग देश के रूप में मान्यता दी थी, जबकि चीन का दावा था कि वह तिब्बत को आजादी दिला रहा है।

साल 1972 में भारत ने नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी को केंद्र शासित प्रदेश बनाकर इसका नाम अरुणाचल प्रदेश रखा और 1987 में इसे पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया। इससे चीन की बौखलाहट और बढ़ गई। उसने मैकमोहन रेखा का उल्लंघन शुरू कर दिया और लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) के आसपास अपनी गतिविधियां बढ़ाने लगा। इतना ही नहीं, चीन ने कई बार ऐसे नक्शे जारी किए, जिसमें उसने अरुणाचल प्रदेश के कई क्षेत्रों को अपना बताया।

1958 में बढ़ा विवाद

साल 1958 में चीन ने सारी हदें पार कर दीं। उसने एक नया आधिकारिक नक्शा प्रकाशित किया, जिसमें उसने भारत के पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र, लद्दाख, उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश पर अपना हक जता दिया। चीन ने भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से इन क्षेत्रों का सर्वे कराने की मांग की, जिसे नेहरू ने 14 दिसंबर 1958 को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने स्पष्ट कहा कि ये सभी क्षेत्र भारत के हिस्से हैं और इस पर किसी को शंका नहीं होनी चाहिए।

1962 का युद्ध और उसके बाद

इन क्षेत्रों पर दावा ठोंकते हुए चीन बार-बार घुसपैठ करता रहा। इसी तनाव के चलते 20 अक्टूबर 1962 को चीन ने भारत पर हमला कर दिया। यह हमला लद्दाख और मैकमोहन रेखा पर एक साथ हुआ था। युद्ध 21 नवंबर तक चला, जिसके बाद चीन ने खुद ही अपने पैर पीछे खींच लिए। इसके बाद से दोनों देशों के बीच तनाव बना रहा। सीमा पर दोनों ओर के सैनिकों में झड़पें होती रहती हैं। हालांकि, हाल के दिनों में इसमें कुछ कमी देखने को मिली है।