Climate Change / हिमालय में पिघल रही बर्फ से समुद्र को खतरा, सैटेलाइट से दिखी ये चीज

AajTak : May 07, 2020, 05:19 PM
दिल्ली:  प्रकृति अजूबा है। कई बार हैरान कर देने वाली घटनाएं होती हैं। अब एक नई घटना सामने आई है, जिसमें कहा जा रहा है कि हिमालय के पिघलते हुए बर्फ और ग्लेशियर की वजह से अरब सागर में खतरनाक चीज पैदा हो रही है। इसकी वजह से अरब सागर का फूड चेन बिगड़ जाएगा। अरब सागर के जीवों को ऑक्सीजन और खाने की कमी हो जाएगी। 

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) ने अरब सागर में बढ़ती हुई इस हरे रंग की एल्गी की तस्वीर इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) से ली है। इसमें साफ-साफ दिखाई दे रहा है कि अरब सागर में हरे रंग का शैवाल बहुत तेजी से बढ़ रहा है। जो अरब सागर के फूड चेन के लिए बेहद खतरनाक है। (फोटोः नासा)

इस एल्गी का नाम है नॉक्टीलुका सिन्टीलैंस (Noctiluca Scintillans)। यह एक मिलीमीटर आकार की होती है। इसे सी-स्पार्कल (Sea Sparkle) भी कहते हैं। यह अरब सागर के किनारों की तरफ काफी ज्यादा मात्रा में दिखाई दे रही हैं। ये भारत-पाकिस्तान, ओमान, ईरान समेत अरब सागर से सटे हुए देशों के तटीय इलाकों में फैल रही हैं।

हैरत की बात ये है कि 20 साल पहले इसे एल्गी के बारे में कोई जानता भी नहीं था। लेकिन अब ये नॉक्टीलुका सिन्टीलैंस अरब सागर के प्लैंकटॉन्स को खत्म कर रही है। प्लैंकटॉन्स खत्म हो जाएंगे तो समुद्र में ऑक्सीजन की कमी होगी। इससे पूरे अरब सागर की फूड चेन बिगड़ जाएगी।

नॉक्टीलुका सिन्टीलैंस की एक खास बात ये भी है कि यह रात में चमकता भी है। इसके लिए ये समुद्र से और ज्यादा ऑक्सीजन और खाना लेता है। जिससे समुद्र के जीवों को खतरा बढ़ता जा रहा है। इससे मछलियां मरने लगेंगी। इस बारे में साइंस मैगजीन नेचर में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी।

नॉक्टीलुका सिन्टीलैंस की बढ़ती हुई मात्रा से अरब सागर के किनारे रहने वाले करीब 15 करोड़ लोगों का जीवनयापन करना मुश्किल हो जाएगा। क्योंकि ये लोग समुद्री जीवों और मछलियों का व्यापार करते हैं। ये एल्गी बढ़ती रही तो मछलियां मर जाएंगी और लोगों के लिए मुश्किल होगी।

सर्दियों में जब हिमालय की तरफ से ठंडी हवा चलती है तब अरब सागर का पानी ठंडा होने लगता है। इसके बाद समुद्र के नीचे मौजूद गर्म और पोषक तत्वों से भरा पानी ऊपर आता है। इसी समय फाइटोप्लैंकटॉन तेजी से पनपते हैं। जिन्हें मछलियां बड़े चाव से खाती हैं। 

लेकिन हिमालय से पिघल रही बर्फ और ग्लेशियर की वजह से मॉनसून के सीजन में बहने वाली गर्म और उमस भरी हवा अरब सागर के पानी की ऊपरी सतह को नुकसान पहुंचाती हैं। फाइटोप्लैंकटॉन पनप नहीं पाते। साथ ही पानी का पोषक तत्व भी खत्म होता है। इससे मछलियों के लिए दिक्कत हो जाती है। 

बस इसी मौके की तलाश में रहते हैं नॉक्टीलुका सिन्टीलैंस। क्योंकि इन्हें सूरज की रोशनी या पानी के पोषक तत्वों की जरूरत नहीं होती। ये किसी भी सूक्ष्मजीव को खा सकते हैं। ये फाइटोप्लैंकटॉन्स को खाना शुरू कर देते हैं।

नॉक्टीलुका सिन्टीलैंस समुद्र के ऊपरी हिस्से पर तैरने लगते हैं। सागर की ऊपरी सतह को पूरी तरह से ढंक लेते हैं। इतनी तेजी से फोटोसिंथेसिस की प्रक्रिया को बढ़ा देते हैं कि अन्य समुद्री जीवों को ये प्रक्रिया करने के लिए पर्याप्त रोशनी और ईंधन नहीं बचता।

समुद्र में दो तरह से ऊर्जा हासिल करने की वजह से नॉक्टीलुका सिन्टीलैंस की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। भारत, पाकिस्तान, ओमान, यमन, सोमालिया के तटों को नीले से हरे रंग में बदल रहे हैं। इन्हें रोकने के लिए कई देश डिसैलिनेशन प्लांट भी लगा रहे हैं। 

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