Modi 3.0 Government / भारत बनेगा समंदर का राजा, सरकार ने बनाया 1.30 लाख करोड़ का प्लान!

भारत वैश्विक निर्यातक बनने की राह पर है और समुद्री शक्ति इसका आधार बनेगी। इसके लिए सरकार 1.3 लाख करोड़ रुपये की लागत से 200 नए जहाज खरीदने की योजना बना रही है। मौजूदा योजना विफल रही है, इसलिए घरेलू जहाज उद्योग को नया बल देने की कोशिश तेज हो गई है।

Modi 3.0 Government: ये बात किसी से छिपी नहीं है कि भारत दुनिया का एक बड़ा इंपोर्टर देश है। लेकिन अब भारत ने निर्यातक (एक्सपोर्टर) बनने की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं। इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य का रास्ता समुद्र से होकर गुजरता है, क्योंकि वैश्विक व्यापार में अग्रणी बनने के लिए समुद्री शक्ति का मजबूत होना अनिवार्य है। इसके लिए भारत को चाहिए सैकड़ों नए जहाज, और सरकार ने इस दिशा में एक नई योजना शुरू कर दी है।

नई योजना का उदय

पिछली योजना, जिसका उद्देश्य भारतीय झंडे वाले जहाजों (इंडियन फ्लैग्ड शिप्स) को बढ़ावा देना था, अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में असफल रही। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस योजना के तहत केवल 330 करोड़ रुपये ही वितरित किए गए, और भारतीय जहाजों की हिस्सेदारी आयात में मात्र 8% पर अटकी रही। इस असफलता ने सरकार को नई रणनीति बनाने के लिए प्रेरित किया।

पोर्ट्स, शिपिंग और जलमार्ग मंत्रालय ने हाल ही में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, इस्पात, और उर्वरक मंत्रालयों के साथ मिलकर एक नई योजना पर काम शुरू किया है। इस योजना के तहत 200 नए जहाजों की मांग सामने आई है, जिनका कुल वजन 8.6 मिलियन ग्रॉस टन (GT) होगा और लागत लगभग 1.3 लाख करोड़ रुपये होगी। ये जहाज पब्लिक सेक्टर यूनिट्स (PSU) के संयुक्त स्वामित्व में होंगे और अगले कुछ वर्षों में भारतीय शिपयार्ड में निर्मित किए जाएंगे।

मौजूदा योजना क्यों रही नाकाम?

वित्त वर्ष 2022 के बजट में घोषित और जुलाई 2021 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा मंजूर 1,624 करोड़ रुपये की योजना का लक्ष्य था कि भारतीय जहाजों को वैश्विक टेंडरों में 15% तक की सब्सिडी दी जाए। यह सब्सिडी कच्चे तेल, एलपीजी, कोयला, और उर्वरक जैसे सरकारी माल के आयात के लिए थी। हालांकि, इस योजना के बावजूद, भारतीय जहाजों की हिस्सेदारी 1987-88 के 40.7% से गिरकर 2023-24 में मात्र 7.8% रह गई।

इसके परिणामस्वरूप, भारत को विदेशी शिपिंग लाइनों पर निर्भरता के कारण हर साल लगभग 70 बिलियन डॉलर का विदेशी मुद्रा व्यय करना पड़ रहा है। भारतीय बंदरगाहों ने 2023-24 में 1540.34 मिलियन मीट्रिक टन (MMT) कार्गो संभाला, जो पिछले वर्ष की तुलना में 7.5% अधिक है, लेकिन भारतीय जहाजों की हिस्सेदारी इसमें नगण्य रही।

चुनौतियां और बाधाएं

भारतीय झंडे वाले जहाजों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इनमें शामिल हैं:

  1. उच्च परिचालन लागत: भारतीय जहाजों को भारतीय नाविकों को नियुक्त करना अनिवार्य है, जो घरेलू कराधान और कॉर्पोरेट कानूनों के अधीन हैं। इससे परिचालन लागत में 20% तक की वृद्धि होती है।

  2. उच्च ऋण लागत और कम अवधि: डेट फंड्स की उच्च लागत और कम ऋण अवधि (लोन टेन्योर) भारतीय शिपिंग कंपनियों के लिए वित्तीय बोझ बढ़ाते हैं।

  3. कराधान का बोझ: भारतीय जहाजों पर इंटीग्रेटेड जीएसटी, जीएसटी टैक्स क्रेडिट की बाधाएं, और दो भारतीय बंदरगाहों के बीच सेवाओं पर भेदभावपूर्ण जीएसटी लागू होती है, जो विदेशी जहाजों पर लागू नहीं होती।

  4. प्रतिस्पर्धात्मकता में कमी: इंडियन नेशनल शिपऑनर्स एसोसिएशन के सीईओ अनिल देवली के अनुसार, इन करों और शुल्कों के बोझ ने भारतीय जहाजों की प्रतिस्पर्धात्मकता को कम किया है।

आगे की राह

सरकार की नई योजना न केवल भारतीय शिपयार्ड को बढ़ावा देगी, बल्कि भारतीय झंडे वाले जहाजों की हिस्सेदारी बढ़ाने में भी मदद करेगी। इन 200 नए जहाजों के निर्माण से न केवल समुद्री व्यापार में भारत की स्थिति मजबूत होगी, बल्कि हजारों नौकरियां भी सृजित होंगी। साथ ही, यह योजना घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहन देगी और विदेशी मुद्रा के व्यय को कम करने में सहायक होगी।