मनी / एशिया की सभी करेंसी पर भारी पड़ा भारतीय रुपया, आई जोरदार तेजी

दुनियाभर की बड़ी अर्थव्यवस्था की करेंसी के मुकाबले भारतीय रुपये में जोरदार तेजी आई है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले दिसंबर में ये एक फीसदी से ज्यादा मज़बूत हुआ है। इस दौरान एशिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की करेंसी में भारतीय रुपये ने सबसे ज्यादा मज़बूती दिखाई है। हालांकि, अक्टूबर और नवंबर महीने में भारतीय रुपया 1 फीसदी से ज्यादा तक कमजोर हुआ था।

मुंबई। दुनियाभर की बड़ी अर्थव्यवस्था की करेंसी के मुकाबले भारतीय रुपये (Indian Rupee Best Performing in December) में जोरदार तेजी आई है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले दिसंबर में ये एक फीसदी से ज्यादा मज़बूत हुआ है। इस दौरान एशिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की करेंसी में भारतीय रुपये (Rupee strong against Dollar)  ने सबसे ज्यादा मज़बूती दिखाई है। हालांकि, अक्टूबर और नवंबर महीने में भारतीय रुपया 1 फीसदी से ज्यादा तक कमजोर हुआ था। आपको बता दें कि भारतीय रुपये की मजबूती का सीधा असर पेट्रोल-डीज़ल की कीमत पर होता है। क्योंकि भारत अपनी जरुरत का 80 फीसदी विदेशों से खरीदता है। ऐसे में भारतीय तेल कंपनियों को विदेशों से कच्चा तेल खरीदने के लिए कम डॉलर खर्च करने होंगे। लिहाजा इसका फायदा घरेलू ग्राहकों को भी मिलेगा।

एशिया में सबसे बेहतर प्रदर्शन करने वाली करेंसी बनी भारतीय रुपया- न्यूज एजेंसी ब्लूमबर्ग के मुताबिक, अक्टूबर और नवंबर में भारतीय रुपया सबसे ज्यादा कमजोर हुआ था। लेकिन कॉर्पोरेट टैक्स कटौती के बाद विदेशी निवेशकों ने शेयर बाजार में जमकर खरीदारी की है। इसी का फायदा रुपये को मिला है। पिछले एक महीने में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 72।15 से मजबूत होकर 71।16 के स्तर पर पहुंच गया है।

आम आदमी पर क्या होगा असर

भारत अपनी जरूरत का करीब 80 फीसदी पेट्रोलियम प्रोडक्‍ट आयात करता है।

>> रुपये में मजबूती से पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स का आयात सस्ता हो जाएगा।

>> तेल कंपनियां पेट्रोल-डीजल की घरेलू कीमतों में कमी कर सकती हैं।>> डीजल के दाम गिरने से माल ढुलाई बढ़ जाएगी, जिसके चलते महंगाई में कमी आ सकती है।

>> इसके अलावा, भारत बड़े पैमाने पर खाद्य तेलों और दालों का भी आयात करता है।

>> रुपये के मजबूत होने से घरेलू बाजार में खाद्य तेलों और दालों की कीमतें घट सकती हैं।

कैसे मजबूत और कमजोर होता है भारतीय रुपया-रुपये की कीमत पूरी तरह डिमांड एवं सप्लाई पर निर्भर करती है। इस पर इंपोर्ट और एक्सपोर्ट का भी असर पड़ता है। हर देश के पास दूसरे देशों की मुद्रा का भंडार होता है, जिससे वे लेनदेन यानी सौदा (आयात-निर्यात) करते हैं। इसे विदेशी मुद्रा भंडार कहते हैं। समय-समय पर इसके आंकड़े रिजर्व बैंक की तरफ से जारी होते हैं।

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(I) अगर आसान शब्दों में समझें तो मान लीजिए भारत अमेरिका से कुछ कारोबार कर रहा हैं। अमेरिका के पास 67,000 रुपए हैं और हमारे पास 1000 डॉलर। अगर आज डॉलर का भाव 67 रुपये है तो दोनों के पास फिलहाल बराबर रकम है। अब अगर हमें अमेरिका से भारत में कोई ऐसी चीज मंगानी है, जिसका भाव हमारी करेंसी के हिसाब से 6,700 रुपये है तो हमें इसके लिए 100 डॉलर चुकाने होंगे।

II) अब हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में सिर्फ 900 डॉलर बचे हैं। अमेरिका के पास 74,800 रुपये। इस हिसाब से अमेरिका के विदेशी मुद्रा भंडार में भारत के जो 67,000 रुपए थे, वो तो हैं ही, लेकिन भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में पड़े 100 डॉलर भी उसके पास पहुंच गए।

(III) अगर भारत इतनी ही इनकम यानी 100 डॉलर का सामान अमेरिका को दे देगा तो उसकी स्थिति ठीक हो जाएगी। यह स्थिति जब बड़े पैमाने पर होती है तो हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में मौजूद करेंसी में कमजोरी आती है।

(IV) इस समय अगर हम अंतर्राष्ट्रीय बाजार से डॉलर खरीदना चाहते हैं, तो हमें उसके लिए अधिक रुपये खर्च करने पड़ते हैं। इस तरह की स्थितियों में देश का केंद्रीय बैंक RBI अपने भंडार और विदेश से खरीदकर बाजार में डॉलर की आपूर्ति सुनिश्चित करता है।