Rupee vs Dollar / रुपए में ऐतिहासिक गिरावट: डॉलर के मुकाबले पहली बार 91 के पार

मंगलवार को भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले पहली बार 91 के स्तर को पार कर गया, जो एक ऐतिहासिक गिरावट है। सिर्फ 10 कारोबारी दिनों में यह 90 से 91 के स्तर पर पहुंच गया। विदेशी निवेशकों की निकासी और व्यापार समझौते में देरी को गिरावट का मुख्य कारण बताया जा रहा है।

मंगलवार को भारतीय करेंसी मार्केट में एक बार फिर तबाही का मंजर देखने को मिला, जब रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपने अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया और यह पहली बार हुआ है कि भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले 91 के मनोवैज्ञानिक स्तर को पार कर गया। इस ऐतिहासिक गिरावट ने निवेशकों और अर्थशास्त्रियों दोनों को चिंतित कर दिया है। दिन के कारोबार के दौरान, रुपया 36 पैसे गिरकर 91. 14 प्रति अमेरिकी डॉलर पर कारोबार कर रहा था, जो पिछले बंद भाव से काफी नीचे था।

गिरावट का तात्कालिक कारण

रुपए में इस तीव्र गिरावट का तात्कालिक कारण विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) द्वारा लगातार की जा रही मुनाफावसूली और भारतीय बाजारों से पूंजी की निकासी है और इसके अतिरिक्त, भारत और अमेरिका के बीच प्रस्तावित व्यापार समझौते में हो रही देरी और अनिश्चितता ने भी रुपए पर दबाव बढ़ाया है। जानकारों का मानना है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प कृषि मुद्दों के बिना किसी समझौते के इच्छुक नहीं दिख। रहे हैं, जबकि भारत ने इसका स्पष्ट रूप से विरोध किया है, जिससे समझौते की संभावना धूमिल हो गई है। यह अनिश्चितता रुपए की कमजोरी को और बढ़ा रही है।

तेजी से बढ़ता अवमूल्यन

रुपए की गिरावट की गति विशेष रूप से चिंताजनक है। आंकड़ों के अनुसार, भारतीय रुपया सिर्फ 10 कारोबारी दिनों में डॉलर। के मुकाबले 90 से 91 के स्तर को पार कर गया है। डॉलर के मुकाबले रुपया पहली बार 2 नवंबर को 90। के पार गया था, और तब से इसकी गिरावट जारी है। मौजूदा साल में डॉलर के मुकाबले रुपए में 6. 42 फीसदी से अधिक की गिरावट दर्ज की जा चुकी है, जो इसकी कमजोरी को दर्शाता है। पिछले पांच सत्रों में ही स्थानीय मुद्रा अमेरिकी डॉलर के मुकाबले। 1 प्रतिशत गिर गई है, जो बाजार में घबराहट का संकेत है। फिनरेक्स ट्रेजरी एडवाइजर्स एलएलपी के ट्रेजरी प्रमुख और कार्यकारी निदेशक अनिल कुमार भंसाली ने रुपए की गिरावट पर अपनी चिंता व्यक्त की और उन्होंने कहा कि अमेरिका-भारत व्यापार समझौता जल्द होने की संभावना नहीं है, क्योंकि ट्रम्प कृषि मुद्दों पर अड़े हुए हैं और भारत इसका विरोध कर रहा है। इसी वजह से रुपया 91 के पार चला गया और उन्होंने आशंका जताई कि यह इसी महीने 92 के स्तर को भी पार कर सकता है और यह भविष्यवाणी बाजार में और अधिक अस्थिरता का संकेत देती है।

गिरावट के अन्य प्रमुख कारण

भंसाली ने रुपए में गिरावट के कई अन्य कारणों पर भी प्रकाश डाला। इनमें खरीद-बिक्री में उतार-चढ़ाव, कर निकासी के कारण रुपए की कमी, सट्टेबाजों द्वारा तेल की खरीद, व्यापार समझौते का न होना, निर्यातकों द्वारा डॉलर का भंडारण और विदेशी निवेशकों द्वारा धन की निकासी शामिल हैं और इसके अलावा, ऋण विक्रय भी रुपए की कमजोरी में योगदान दे रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि सोमवार को व्यापार घाटे में कमी आने के बावजूद भी स्थानीय मुद्रा में कोई सुधार नहीं हुआ, जो दर्शाता है कि बाजार में अन्य मजबूत नकारात्मक कारक हावी हैं।

आर्थिक संकेतकों का प्रभाव

रुपए की गिरावट के साथ-साथ अन्य आर्थिक संकेतकों में भी अस्थिरता देखी गई और एक्सचेंज के आंकड़ों के अनुसार, सोमवार को विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजारों से 1,468. 32 करोड़ रुपये के शेयर बेचे, जिससे पूंजी की निकासी का दबाव और बढ़ गया। थोक मूल्य महंगाई (WPI) नवंबर में लगातार दूसरे महीने नेगेटिव (-) 0. 32 फीसदी पर बनी रही, हालांकि दालों और सब्जियों जैसे खाद्य पदार्थों की कीमतों में महीने-दर-महीने वृद्धि हुई थी और डॉलर सूचकांक, जो छह प्रमुख मुद्राओं की बास्केट के मुकाबले डॉलर की मजबूती को मापता है, 0. 03 फीसदी गिरकर 98 और 27 पर कारोबार कर रहा था।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के बावजूद, ब्रेंट क्रूड वायदा कारोबार में 0. 61 फीसदी गिरकर 60. 19 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रहा था, जो सामान्यतः रुपए के लिए सकारात्मक होता है, लेकिन वर्तमान स्थिति में इसका कोई खास असर नहीं दिख रहा है। घरेलू शेयर बाजार भी इस दबाव से अछूते नहीं रहे, जहां 30 शेयरों वाला बेंचमार्क सूचकांक सेंसेक्स शुरुआती कारोबार में 363. 92 अंक गिरकर 84,849 और 44 पर आ गया, जबकि निफ्टी 106. 65 अंक गिरकर 25,920. 65 पर पहुंच गया। यह सब मिलकर भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक चुनौतीपूर्ण परिदृश्य प्रस्तुत करता है।