भारतीय रुपये ने शुक्रवार को डॉलर के मुकाबले एक ऐतिहासिक वापसी दर्ज की, जिसने पिछले तीन सालों की सबसे बड़ी एकदिनी रिकवरी को चिह्नित किया। सप्ताह की शुरुआत में जब रुपया 91 के स्तर को पार कर गया था, तब बाजार में चिंता का माहौल था, लेकिन केंद्रीय बैंक के निर्णायक हस्तक्षेप ने तस्वीर पूरी तरह बदल दी। दिन के कारोबार में रुपये ने लगभग 2% की मजबूती दिखाई और आखिरकार 89. 27 के स्तर पर बंद हुआ, जो एक ही दिन में 1. 1% की बड़ी छलांग मानी जा रही है और यह रिकवरी न केवल निवेशकों के लिए राहत लेकर आई, बल्कि अर्थव्यवस्था के लिए भी एक सकारात्मक संकेत है।
सप्ताह की शुरुआत में चिंताएं
पिछले हफ्ते विदेशी मुद्रा बाजार में जो कुछ हुआ, उसने निवेशकों से लेकर आम आदमी तक सभी का ध्यान खींचा। हफ्ते की शुरुआत में जब डॉलर के मुकाबले रुपया 91 के पार फिसल गया, तो यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं था, बल्कि इसके गहरे आर्थिक निहितार्थ थे। इस गिरावट को महंगे आयात, बढ़ती महंगाई और कमजोर होती अर्थव्यवस्था की आशंका का संकेत माना जाने लगा। बाजार में बेचैनी बढ़ गई, ट्रेडर्स सतर्क हो गए और निवेशकों की नजर सीधे भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) पर टिक गई कि वह इस स्थिति को संभालने के लिए क्या कदम उठाता है। रुपये की लगातार गिरावट ने एक अनिश्चितता का माहौल बना दिया था, जिससे आर्थिक स्थिरता पर सवाल उठने लगे थे।
शुक्रवार का नाटकीय बदलाव
हालांकि, हफ्ते के आखिरी कारोबारी दिन, शुक्रवार को स्थिति में नाटकीय बदलाव आया और रुपया ने डॉलर के मुकाबले जोरदार वापसी करते हुए करीब 2% की मजबूती दिखाई। यह बीते तीन सालों की सबसे बड़ी एकदिनी रिकवरी मानी जा रही है, जिसने बाजार को चौंका दिया। शुक्रवार को रुपया 89. 27 के स्तर पर बंद हुआ, जो एक दिन पहले की तुलना में 1. 1% की बड़ी छलांग है। कुछ ही घंटों में 91 के पार कमजोर दिख रहा रुपया फिर से मजबूत नजर आने लगा। यह तेज और निर्णायक रिकवरी बाजार में एक मजबूत संदेश लेकर आई कि रुपये की स्थिरता के लिए केंद्रीय बैंक पूरी तरह प्रतिबद्ध है।
RBI का आक्रामक हस्तक्षेप
इस ऐतिहासिक रिकवरी के पीछे सबसे बड़ी वजह भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) का आक्रामक एक्शन रहा। केंद्रीय बैंक ने सरकारी बैंकों के जरिए भारी मात्रा में डॉलर की बिक्री की, जिससे बाजार में साफ संदेश चला गया कि रुपये के खिलाफ एकतरफा सट्टेबाजी अब आसान नहीं होगी। इस कदम का असर इतना तेज था कि महज तीन मिनट के भीतर रुपया 89 और 25 के हाई लेवल तक पहुंच गया। हाल के वर्षों में इतनी तेज और निर्णायक रिकवरी कम ही देखने को मिली है। असल में, बाजार में कुछ सट्टेबाज रुपये के और कमजोर होने की उम्मीद में बड़ी पोजिशन बना चुके थे। RBI का मकसद इन्हीं पोजिशनों को तोड़ना था, ताकि सट्टेबाजी पर लगाम लगाई जा सके और रुपये को अनावश्यक गिरावट से बचाया जा सके। बुधवार को भी केंद्रीय बैंक ने दखल दिया था, लेकिन शुक्रवार की कार्रवाई ने सट्टेबाजों। की रणनीति पूरी तरह उलट दी और उन्हें अपनी पोजिशन काटने पर मजबूर कर दिया।
गवर्नर मल्होत्रा का बयान
RBI के हस्तक्षेप के साथ-साथ, RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा का यह बयान भी अहम रहा कि बैंक ने रुपये के लिए कोई तय ‘टारगेट लेवल’ नहीं रखा है। इस बयान ने बाजार को यह साफ संकेत दिया कि RBI जरूरत पड़ने पर हस्तक्षेप करेगा, लेकिन बाजार की ताकतों को भी काम करने देगा। यह एक संतुलित दृष्टिकोण था, जिसने बाजार में विश्वास बहाल किया और यह स्पष्ट किया कि केंद्रीय बैंक। केवल अत्यधिक अस्थिरता को रोकने के लिए हस्तक्षेप करेगा, न कि किसी विशेष स्तर को बनाए रखने के लिए। इस बयान ने सट्टेबाजों को भी यह सोचने पर मजबूर किया कि वे RBI की रणनीति का अनुमान नहीं लगा सकते।
विदेशी निवेशकों का सकारात्मक रुख
रुपये की मजबूती के पीछे विदेशी निवेशकों का बदला रुख भी एक अहम कारण बना और लंबे समय से भारतीय शेयर बाजार से बिकवाली कर रहे विदेशी संस्थागत निवेशकों (FIIs) ने एक बार फिर खरीदारी की है। यह बदलाव भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक संकेत माना जा रहा है, जो यह दर्शाता है कि विदेशी निवेशक भारत की आर्थिक संभावनाओं पर फिर से भरोसा कर रहे हैं। विदेशी पूंजी का प्रवाह रुपये को और मजबूती प्रदान करता है और बाजार में सकारात्मक धारणा को बढ़ावा देता है और यह दर्शाता है कि वैश्विक निवेशक भारत की आर्थिक नीतियों और विकास की संभावनाओं को लेकर आशावादी हैं।
आगे की राह और बाजार का अनुमान
आगे की राह की बात करें तो मार्केट एनालिस्ट का मानना है कि RBI की। सक्रिय मौजूदगी के चलते निकट भविष्य में रुपये में ज्यादातर उतार-चढ़ाव की संभावना कम है। केंद्रीय बैंक की सतर्कता और हस्तक्षेप की क्षमता रुपये को एक स्थिर दायरे में रखने में मदद करेगी और विश्लेषकों के अनुसार, 89. 25 का स्तर रुपये के लिए एक मजबूत सपोर्ट के रूप में काम करेगा, जबकि 89. 90 के आसपास ऊपरी सीमा अहम मानी जा रही है। यह संकेत देता है कि रुपये के लिए एक निश्चित ट्रेडिंग रेंज बन सकती है, जिसमें बड़ी गिरावट या बढ़ोतरी की संभावना कम होगी। RBI की यह रणनीति रुपये की स्थिरता बनाए रखने और आर्थिक अनिश्चितताओं को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।