भारतीय रुपया इस साल अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपनी कीमत में लगातार गिरावट का सामना कर रहा है, जिससे दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक की मुद्रा की ऐसी दुर्दशा किसी ने नहीं सोची थी। मौजूदा साल में, रुपया डॉलर के मुकाबले लगभग 6 प्रतिशत तक टूट चुका है, जो तीन साल में सबसे बड़ी गिरावट है। यह गिरावट न केवल चिंताजनक है, बल्कि इसने भारतीय रुपये को मौजूदा साल में डॉलर के मुकाबले एशिया की सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली करेंसी भी बना दिया है। इस ऐतिहासिक गिरावट के पीछे तीन प्रमुख संकट जिम्मेदार हैं, जो भारतीय अर्थव्यवस्था और उसकी मुद्रा के लिए गंभीर चुनौतियां पेश कर रहे हैं।
रुपए की मौजूदा स्थिति
रुपए में लगातार गिरावट का सिलसिला जारी है, जिसने निवेशकों और नीति निर्माताओं दोनों को चिंतित कर दिया है। शुक्रवार को भी भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले एक और ऐतिहासिक निचले स्तर पर बंद हुआ, जो 90 और 41 का आंकड़ा था। यह दूसरा रिकॉर्ड निचला स्तर था, जिसने बाजार में हड़कंप मचा दिया। दिन की शुरुआत में, घरेलू मुद्रा अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 90. 31 के ऐतिहासिक निचले स्तर पर खुली थी, लेकिन शुरुआती कारोबार में यह और कमजोर होकर 90. 55 के ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंच गई। इस गिरावट का मुख्य कारण अमेरिका के साथ व्यापार समझौते में हो रही देरी को माना जा रहा है। दोपहर के सत्र में, रुपये में मामूली सुधार देखने को मिला और यह 90 और 37 पर पहुंच गया, लेकिन बाजार बंद होने तक यह फिर से कमजोर होकर 90. 41 के नए ऐतिहासिक निचले स्तर पर बंद हुआ और इस सप्ताह डॉलर के मुकाबले रुपये में 0. 50 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है, जो इसकी कमजोर होती स्थिति को दर्शाता है।
अमेरिका के साथ ट्रेड डील में देरी
भारतीय रुपये के कमजोर होने का एक प्रमुख कारण अमेरिका के साथ व्यापार समझौते में हो रही देरी है। हाल ही में, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने द्विपक्षीय सहयोग पर चर्चा की, लेकिन टैरिफ में किसी भी तरह की राहत का कोई ठोस संकेत नहीं मिला और विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ के बाद से ही रुपये पर लगातार दबाव बना हुआ है, और इसका असर साल के अंत तक और अधिक स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगेगा। बाजार अमेरिका के साथ एक अंतिम व्यापार समझौते की घोषणा का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं, क्योंकि यह समझौता रुपये की दिशा निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। विश्लेषकों का कहना है कि रुपये की मजबूती अब इस बात पर निर्भर करेगी कि भारत सरकार अमेरिका के साथ अंतिम व्यापार समझौते की घोषणा कब करती है और इस अनिश्चितता ने निवेशकों के विश्वास को कमजोर किया है और रुपये पर नकारात्मक दबाव डाला है।
विदेशी निवेशकों की मुनाफावसूली
विदेशी निवेशकों द्वारा घरेलू शेयरों की लगातार बिक्री भी भारतीय रुपये पर दबाव बढ़ा रही है। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, विदेशी निवेशकों ने इस वर्ष भारतीय शेयर बाजार से कुल 18 अरब डॉलर मूल्य के शेयर निकाले हैं। यह एक बहुत बड़ी राशि है, जो भारतीय बाजार से पूंजी के बहिर्वाह को दर्शाती है और यदि हम मौजूदा महीने की बात करें, तो विदेशी निवेशकों ने लगभग 18 हजार करोड़ रुपये की बिकवाली की है। दिसंबर मौजूदा साल का आठवां महीना है जब विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से बिकवाली कर रहे हैं। इसके विपरीत, केवल चार महीने ऐसे रहे जब निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार में पैसा डाला। पिछले 15 महीनों में से 10 महीनों में विदेशी निवेशकों ने शेयर बाजार से अपना पैसा निकाला। है, और इस अवधि के दौरान डॉलर के मुकाबले रुपया लगभग 8 प्रतिशत तक टूट चुका है। विदेशी पूंजी के इस लगातार बहिर्वाह से रुपये की मांग कम हो जाती है और इसकी कीमत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
डॉलर की जमकर खरीदारी
रुपये की कमजोरी का तीसरा प्रमुख कारण स्थानीय कंपनियों द्वारा डॉलर की भारी खरीदारी है। साल के अंत के भुगतान पूरे करने के लिए, भारतीय कंपनियां बड़ी मात्रा में डॉलर खरीद रही हैं, जिससे अमेरिकी मुद्रा की मांग बढ़ गई है और भारतीय रुपये पर और दबाव पड़ा है। व्यापारियों का कहना है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने इस स्थिति में हस्तक्षेप किया है, लेकिन केंद्रीय बैंक ने रुपये के लिए कोई विशिष्ट लक्ष्य स्तर निर्धारित नहीं किया है। आरबीआई ने 16 दिसंबर को करेंसी स्वैपिंग के तहत बैंकों से डॉलर खरीदने और बैंकिंग सिस्टम को कई हजार करोड़ रुपये देने की घोषणा की है। इस कदम से रुपये को मामूली समर्थन मिल सकता है, लेकिन यह समर्थन सीमित रहने की संभावना है, क्योंकि डॉलर की मांग अभी भी मजबूत बनी हुई है।
रुपए का भविष्य कैसा रह सकता है?
रुपये के भविष्य पर बोलते हुए, कोटक सिक्योरिटीज के करेंसी एंड कमोडिटी हेड अनिंद्या बनर्जी ने अपनी राय व्यक्त की। उन्होंने कहा कि बॉन्ड और इक्विटी दोनों में लगातार विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (एफपीआई) की निकासी के कारण USDINR पर दबाव बना हुआ है और वैश्विक यील्ड में वृद्धि के साथ, USD और JPY के कैरी ट्रेडों के अनवाइंडिंग से भारतीय बॉन्डों पर दबाव बढ़ रहा है। हालांकि, भारत-अमेरिका व्यापार समझौते को लेकर कुछ सकारात्मक पहलू भी। हैं, जो रुपये को बीच-बीच में राहत प्रदान कर सकते हैं। बनर्जी ने आगे कहा कि कुल मिलाकर, हम स्पॉट पर 89. 50-91. 00 के व्यापक ट्रेडिंग दायरे की उम्मीद करते हैं। यह दर्शाता है कि निकट भविष्य में रुपया इसी दायरे में उतार-चढ़ाव कर सकता है, जब तक कि कोई बड़ा नीतिगत बदलाव या वैश्विक आर्थिक घटनाक्रम सामने नहीं आता।