India-China / क्या चीन टकराव को टाल रहा है, या भारत पर काउंटर-अटैक के लिए सीक्रेट प्लानिंग में जुटा

AajTak : Sep 20, 2020, 06:27 AM
Delhi: पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे पर अहम रणनीतिक ऊंचाइयों (हाइट्स) पर 29-30 अगस्त की मध्य रात को भारत के कब्जे और उसके बाद 7-8 सितंबर को वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर गोलीबारी की घटनाएं भारत-चीन सीमा गतिरोध में तनाव के नए दौर की प्रतीक हैं। ये गतिरोध मई के शुरू से चला आ रहा है। 

चीन सरकार ने इन घटनाक्रमों पर उस आधिकारिक संचार रणनीति में बदलाव करके अपनी नाराजगी व्यक्त की, जिसने उसे गतिरोध की शुरुआत से अपना रखा था। चीन ने सरहद पर घटनाक्रमों का अपने हिसाब से ब्यौरा जारी कर पब्लिक ओपिनियन बनाने के लिए पहले आक्रामक तेवर दिखाए, फिर एलएसी पर विवादित पॉइंट्स के लिए चीनी नामों के साथ सामने आना शुरू किया।  

चीन के सरकारी मीडिया ने भी धमकियों की कड़ी में कहना शुरू किया- भारत ने "सभी हदों को पार कर लिया है", "यह अजब ढंग से एक चट्टान के किनारे पर खड़ा है", "भारतीय सेना पीएलए के  लिए अहम प्रतिद्वंद्वी होने लायक भी नहीं है।" इसलिए उसके लिए बेहतर राय यही है कि वह अपने सैनिकों को "बिना शर्त" वापस हटा ले या युद्ध के मैदान में "सफाए" के लिए तैयार रहे। 

एक तरफ जहां बीजिंग युद्ध के ढोल पीटता दिख रहा है, वहीं चीन के भीतर कई लोगों की राय है कि इस मोड़ पर चीन की भारत को लेकर नीति में मजबूती की कमी है और भारत के खिलाफ उसका सैन्य प्रतिरोध लगातार बेअसर होता दिख रहा है। 

चीनी रणनीतिक हलकों के बीच सवाल उठ रहे हैं कि गलवान घाटी की घटना के बाद भारत के "ऑल-आउट हमले" (राजनीतिक-आर्थिक-सैन्य) के बावजूद चीन ने अभी तक जमीन पर ‘बराबर’ और ‘जवाबी’ कदम क्यों नहीं उठाए? दोनों देशों के राजनयिक अभी तक क्यों सद्भावना का आदान-प्रदान कर रहे हैं? ट्रेंड को देखते हुए कुछ चीनी रणनीतिकार अटकलें लगा रहे हैं कि चीनी सरकार या तो टकराव को टाल रही है या भारत पर काउंटर अटैक के लिए सीक्रेट तौर पर गहन प्लानिंग कर रही है। 


टकराव से चीन के बचने के पीछे तर्क 

यह देखना दिलचस्प है कि गर्म माहौल और विद्वेष के चरम पर होने के बावजूद चीन के लीडिंग थिंकटैंक भारत से टकराव टालने की राय दे रहे हैं। फुडन विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर साउथ एशियन स्टडीज से झांग जिआडोंग और लिन मिनवांग, सिंघुआ विश्वविद्यालय से कियान फेंग, चाइनीज एकेडमी ऑफ सोशल एकेडमी से झांग गुवांगकिंग अन्यों के साथ  जोर दे रहे हैं कि 'चीन को भारत के विद्वेष को ओवरएस्टीमेट करके देखने और फिर ओवररिएक्ट करने की जरूरत नहीं है' क्योंकि भारत के ‘एहतियातन’ मिलिट्री एक्शन्स, 'उकसावे वाले भाव' जैसे कि चेतावनी के तौर पर शॉट्स आदि चीन के क्षेत्र पर कब्जे या युद्ध छेड़ने के इरादे से नहीं हैं, बल्कि वो चीन के साथ आगे बातचीत में खुद को अनुकूल सौदेबाजी की स्थिति में लाने के लिए है।  

वो कहते हैं कि भारत की चीन के प्रति रणनीति 'लड़ाई बिना ब्रेकिंग, सौहार्द लेकिन मतभेद के साथ' वाली है। ठीक वैसे ही जैसे चीन ने अमेरिका को लेकर अपनाई हुई है। 

उनमें से कुछ रणनीतिकार- मौजूदा बॉर्डर संकट के नतीजे के तौर पर भारत-चीन संबंधों में अचानक टर्न अराउंड (कायापलट) की संभावना से इनकार नहीं कर रहे हैं। यह तर्क दिया जा रहा है कि 1987 में बॉर्डर टकराव के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी 1988 में चीन के दौरे पर गए, उसके बाद दोनों देशों के संबंधों में एक नया अध्याय शुरू हुआ, या 1998 में भारत के परमाणु परीक्षण के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी 2003 में चीन यात्रा पर गए और सरहद से जुड़े मुद्दों पर कई फैसले लिए गए। युद्ध के कगार तक पहुंचने की स्थिति के बाद दोनों देशों के रिश्ते हमेशा और मजबूत हुए हैं। 

मौजूदा टकराव पर भी वे तर्क देते हैं कि अगर दोनों देशों के नेतृत्व ने इस "संकट को एक अवसर" में बदलना चाहा तो अतीत की तरह फिर आम सहमति पर पहुंचा जा सकता है। इसके लिए मुद्दों को सुलझाने और आम सहमति पर पहुंचने के लिए दोनों देशों को आगे संवाद करते रहना होगा। 


क्यों शांति की बात कर रहे हैं चीन के कुछ टॉप रणनीतिकार? 

अंतरराष्ट्रीय दबाव और चीन के अलग थलग हो जाने की चिंता, यह एक और अहम कारण है जो चीन को भारतीय दबाव के बावजूद सैन्य टकराव के रास्ते पर जाने से रोक रहा है। इसके लिए चीन के पश्चिमी फ्रंटियर पर उसकी सैन्य तैनाती को लेकर ‘गंभीर संख्यात्मक प्रतिकूल स्थिति’ भी वजह हो सकती है।  

चीन की आंतरिक बहस और चर्चाओं में लगातार इस बात को दोहराया जा रहा है कि कि भारत ने कैसे चीन और पाकिस्तान के साथ उत्तर और उत्तर-पश्चिम सीमाओं को सबसे गंभीर राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौती माना और उसी के हिसाब से सावधानीपूर्वक तैयारी की। भारत ने दिखाया कि कैसे समान तैनाती ही एक ही समय में दो विरोधियों से सुरक्षा प्रदान कर सकती है। दूसरी ओर, चीन नेशनल डिफेंस का फोकस पिछले 70 वर्षों में उत्तर से दक्षिण और दक्षिण-पूर्व में शिफ्ट हुआ, लेकिन दक्षिण-पश्चिम की ओर कुछ खास नहीं।  

2017 की डोकलाम घटना के बाद से, कई चीनी रणनीतिकार यह चिंता जता रहे हैं कि चीन अपने दक्षिण-पश्चिम में सैन्य संघर्ष के लिए पर्याप्त रूप से तैयार नहीं हो सकता है,  वो अभी भी चीन-भारत सीमा के साथ स्थानीय सैन्य लाभ की स्थिति में नहीं है और वह यहां छोटी लड़ाई की जीत का समर्थन नहीं कर सकता। 

चीन की पश्चिमी सीमा पर बेहतर तैनाती की सख्त जरूरत है, लेकिन चीन का अभूतपूर्व जनसंख्या संकट स्थिति को और बदतर बनाता है। माओवादी लाइनेज वाली वेबसाइट Honggehui में एक आर्टिकल में लिखा गया है, "एक बच्चे की नीति के 40 वर्षों ने चीन की जनसांख्यिकी (डेमोग्राफी) में एक गैप छोड़ दिया है, जहां युद्ध के मैदान में बड़े पैमाने पर तैनाती और अन्य आर्थिक गतिविधियों के लिए युवा आबादी काफी अपर्याप्त है।" 

इस पृष्ठभूमि में, LAC पर भारत की विशाल सैन्य तैनाती को लेकर चीनी सामरिक हलकों के बीच  असहजता साफ दिखाई देती है। विभिन्न अवसरों पर इस बात को गंभीरता से नोट किया गया है कि भारत ने 200,000 से अधिक सैनिकों की कथित तैनाती सीमा पर कर रखी है। ऐसे में भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच LAC पर अनुपात "4: 1, 5: 1 या संभवतः इससे भी अधिक" हो सकता है। 

झांग जिआडोंग इस मुद्दे पर आगे तर्क देते हैं, “अतीत में, चीन सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे को लेकर फायदे की स्थिति में था जबकि भारत मानव संसाधन को लेकर। ऐसे में दोनों पक्षों में एक मोटा संतुलन बना रहा। लेकिन, हालिया वर्षों में, (जबकि चीन को अभी तक भारत के साथ सीमा पर तैनाती को लेकर बड़ा कदम उठाना है) भारत के बुनियादी ढांचे का तेजी से विकास हो रहा है। इसने सीमा पर शक्ति के मूल संतुलन को तोड़ दिया है, भारत अब चीन के समग्र रणनीतिक लाभों को काउंटर करने के लिए अपने सामरिक लाभों का इस्तेमाल करना चाहता है।”

चीनी इंटरनेट पर विभिन्न टीका-टिप्पणियों में इस चिंता को हल्का करने की कोशिश में ये तर्क दिया जा रहा है कि मॉडर्न वारफेयर में विज्ञान और प्रौद्योगिकी ही सब कुछ है, जहां सटीक निर्देशित हथियारों के सामने सैनिक सिर्फ "लिविंग टारगेट/कैनन फोडर" हैं।  

अधिक ऊंचाई वाले ऑपरेशन्स के संदर्भ में, उपकरण, सप्लाई और मोबिलिटी मैनपावर से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं। कुछ अन्य भारत पर प्रहार कर रहे हैं कि "सर्दियों की पर्याप्त तैयारी के बिना इतनी बड़ी संख्या में सैनिकों को भेजा गया", वे साथ ही मानव जीवन को अधिक मूल्य न देने के लिए भारतीय संस्कृति की आलोचना कर रहे हैं। जीवन के बलिदान के लिए खुद को चाबुक मारने की प्रशंसा की प्रवृत्ति की निंदा कर रहे हैं। उनके मुताबिक चीनी संस्कृति में इस बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। और ये चीन के हैंडल करने के लिए बहुत मुश्किल स्थिति है।   

कुछ चीनी आर्टिकल्स में फ्रंटियर पर भारत की भारी सैन्य तैनाती और कठोर सर्दियां LAC पर बिताने के फैसले की तुलना स्वतंत्रता आंदोलन में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ असहयोग आंदोलन से की गई है। चीन में अवधारणा के मुताबिक भारतीयों की खुद को चाबुक मारने की प्रवृत्ति ने ब्रिटिश हुकूमत को असहज स्थिति में डाल दिया और वो भारत को आखिरकार स्वतंत्रता देने के लिए तैयार हो गए। 

लिन मिनवांग कहते हैं, “चीन को भारत को कमतर नहीं आंकना चाहिए। इसके ट्रैक रिकॉर्ड (स्वतंत्रता दिवस आंदोलन) को देखा जाए और कैसे इसने सियाचिन ग्लेशियर को लेकर पाकिस्तान को चुनौती दी, कैसे इसने वर्षों तक अपने सैनिकों को कड़ाके की ठंड में रहने की इजाजत दी।” चीनी रणनीतिकारों के मुताबिक भारतीय सेना के पास बलिदान के जज्बे वाले सैकड़ों हजार सैनिक हैं और वो आसानी से मैदान छोड़ने वे नहीं है। 


क्या चीन सीक्रेट तौर पर काउंटर अटैक का प्लान बना रहा है? 

पैंगोंग सो के दक्षिण किनारे की अहम सामरिक ऊंचाइयों, खास तौर पर ब्लैक टॉप, पर कब्जा करके, भारतीय सेनाओं ने चीनी रणनीतिक हलकों में दुखती रग को छू लिया लगता है। 

इस तथ्य पर बहुत नाराजगी है कि 1962 में, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने कथित तौर पर "82 हताहतों" के बाद इस हाइलैंड पर कब्जा किया था, लेकिन अब भारत की ओर से "बिना एक भी गोली चलाए" इसे दोबारा हासिल कर लिया गया है , जो कि चीनी रणनीतिकारों की नजर में "पूरी तरह से अस्वीकार्य है।"  

आगे यह तर्क दिया गया है कि भारतीय सेना की तैयारियों की वर्तमान स्थिति को देखते हुए, हाथ से हाथ की लड़ाई के जरिए इस हाइलैंड को फिर से हासिल करना बहुत कठिन है। साथ ही भारत से बातचीत के माध्यम से इसके वापस हासिल करने की उम्मीद करना भी उतना ही हकीकत से परे है। ऐसे में भारत के खिलाफ एक जबरदस्त पलटवार के लिए चीनी सैन्य हलकों के सुर तेज हो रहे हैं।  

इसके अलावा, चीन-भारत सीमा टकराव में भारत की ओर से स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (SFF) का इस्तेमाल भी ऐसा मुद्दा है जो चीन के गले नहीं उतर रहा। चीनी रणनीतिकारों के बीच इस मुद्दे पर सर्वसम्मति यह लगती है कि "चीन के लिए नफरत पर आधारित प्रतिक्रियावादी बल", भारत के कृपापात्रों, को केवल शारीरिक रूप से समाप्त किया जा सकता है।” 

हालांकि, कुछ चीनी रणनीतिकारों का मानना है कि तुरंत प्रतिक्रिया नहीं देने से, चीनी सेना PLA असल में समय खरीद रही है, मजबूत सुरक्षा और किलेबंदी का निर्माण किया जा रहा है ताकि अधिक उपयुक्त समय में अधिक ताकत के साथ काउंटर अटैक किया जा सके।  

चीनी इंटरनेट पर अटकलें लगाई जा रही हैं कि चीन की ओर से अमेरिका में चुनाव वाले समय का इस्तेमाल या तो ताइवान या भारत के खिलाफ सैन्य अभियान छेड़ने में किया जाएगा। क्रिसमस के समय को भारत के खिलाफ एक पलटवार के लिए एक उपयुक्त क्षण के तौर पर चीनी इंटरनेट पर देखा जा रहा है। इनके मुताबिक अमेरिका उस वक्त यहां अधिक फोकस करने की स्थिति में नहीं होगा और भारी बर्फ के कारण भारत को भी असुविधा होगी। 

इस तरह का आइडिया "सामरिक स्तर पर एक छोटे पैमाने पर संघर्ष" या चीनी क्षेत्र में भारतीय सैनिकों को लुभा कर लाने के बाद घात लगाकर हमला करने से जुड़ा है। हालांकि, अगर यह स्थिति बड़े सैन्य संघर्ष में तब्दील होती है, तो चीन के नानजिंग सैन्य क्षेत्र के पूर्व डिप्टी कमांडर वांग होंगगुआंग जैसे चीनी जनरलों ने, भारत के साथ डील करने के लिए चार सूत्री रणनीति पर जोर दिया है।

पहला, लद्दाख में हवाई वर्चस्व (एयर सुप्रीमेसी) को जब्त किया जाए, साथ ही इलेक्ट्रॉनिक कंट्रोल सिस्टम्स पर कब्जा किया जाए। भारत के कमांड नेटवर्क, एयर डिफेंस नेटवर्क (रडार नेटवर्क), और एयर कमांड नेटवर्क को नष्ट किया जाए। 

दूसरा, भारत के अहम इंफ्रास्ट्रक्चर,  आर्टिलरी पोजीशन्स, बख्तरबंद क्लस्टर, लॉजिस्टिक्स स्टोरेज वेयरहाउस, तेल डिपो आदि को टारगेट किया जाए। 

तीसरा, प्रमुख रणनीतिक ऊंचाइयों पर कब्जा करना। डेपसांग मैदान और सियाचिन ग्लेशियर को काटकर भारतीय तैनाती को बांटना और फंसाना। 

चौथा और आखिर में, श्रीनगर से लेह तक राष्ट्रीय राजमार्ग 1 पर कब्जा करना, जिससे लद्दाख का बाहरी दुनिया से संपर्क कट जाए, इस तरह चीन अगर चाहता है तो बड़े पैमाने पर सैन्य संघर्ष के दौरान उसका पूरे लद्दाख पर कब्जा हो सकता है। 

इसी तरह, चीनी इंटरनेट पर ऐसी टीका-टिप्पणियों की भरमार है जिनमें पीएलए से कहा जा रहा है कि वो अपनी प्रोपेगेंडा मशीनरी का इस्तेमाल भारतीय सेना में जाति और धर्म-आधारित फाल्ट लाइन्स का दोहन करने में करे, साथ ही भारतीय बलों का मनोबल गिराने के लिए अधिकारियों और सैनिकों के बीच दरार पैदा करने के लिए भी इस प्रोपेगेंडा मशीनरी के इस्तेमाल की राय दी जा रही है। कुछ चीनी इंटरनेट यूजर्स पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और अन्य के साथ एक संयुक्त मोर्चे के गठन पर जोर दे रहे हैं जिसमें भारत के खिलाफ एक संयुक्त आक्रमण शुरू किया जाए, “जिससे कि चीन लद्दाख, अरुणाचल और उत्तर-पूर्व को रिकवर कर सके, पाकिस्तान कश्मीर पर कब्जा कर ले और नेपाल को अपनी दावा की गई जमीन मिल जाए। सिक्किम अलग हो जाए, बांग्लादेश को पश्चिम बंगाल मिल जाए। भूटान भारत की छाया से बाहर आए और भारत राजे-रजवाड़े वाले राज्यों में सीमित रह जाए।” 

चीन  तनाव बढ़ाने या घटाने का कोई भी रास्ता चुने, एलएसी पर मौजूदा गतिरोध को देखते हुए भारत में हमें इस तथ्य पर ध्यान देना चाहिए कि वर्तमान संकट और उससे पहले 2017 के डोकलाम गतिरोध से, चीनी रणनीतिक हलकों में भारत को लेकर क्या धारणा बनी है। वो मानते हैं कि पश्चिम में भारत, 3 मिलियन वर्ग किलोमीटर भूमि क्षेत्र वाला देश है जो व्यापक राष्ट्रीय ताकत के साथ दुनिया में चौथे स्थान पर है, जिसकी औसत आयु 27 साल है, जिसमें 1।3 अरब लोग हैं, जो हमेशा चीन को एक विरोधी मानता है, वो (भारत) पूर्व में अमेरिका के मुकाबले चीन के उदय के लिए एक बड़ा खतरा है,  क्योंकि अमेरिका अपेक्षाकृत बूढ़ा समाज है, उसके सैनिक विश्व स्तर पर फैले हुए हैं और जिसके खिलाफ चीन मानता है कि उसे स्थानीय सैन्य एडवांटेज हासिल है। 

इसलिए, "रणनीतिक रूप से कमतर" मानने के बावजूद भारत के लिए चीनी रणनीतिकारों को लगता है “सामरिक तौर पर भारत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।” 

असल में, चीन में आम सहमति बढ़ती जा रही है कि चीन-भारत संघर्ष कुछ हद तक अपरिहार्य है, अगर अभी नहीं, तो भविष्य में। बहुत अधिक संभावना ये नौबत चीन-अमेरिकी संघर्ष से पहले आने की है और यदि चीन इसे अपने हक में हैंडल करता है तो वैश्विक स्तर पर चीन को लाभ होगा, लेकिन अगर वो लड़खड़ाता है, तो "नए युग में चीन-भारत संघर्ष चीन के पतन की शुरुआत को चिह्नित करेगा।” 

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